BRICS Currency And Expansion : संभावनाएं व सीमाएं : अमरीका से गिरकर चीन मैं न अटक जाएँ
प्रधान मंत्री 22 – 24 August को दक्षिण अफ्रीका मैं ब्रिक्स के राष्ट्राध्यक्षों की मीटिंग मैं भाग लेंगे . मीटिंग के दो प्रमुख एजेंडे हें . पहला नए देशों की सदस्यता व दूसरा ब्रिक्स की यूरो की तरह एक अपनी मुद्रा बनाना . सुनते हें की बीस देश ब्रिक्स की सदस्यता चाहते हें . परन्तु हम लोग तो ASEAN के साथ RCEP समझौते से भी दूर रहे क्योंकि हम चीन को फ्री ट्रेड नहीं दे सकते थे . युक्रेन युद्ध के बाद रूस भी पूरी तरह चीन पर आश्रित हो गया है . भारत भी उसके लिए आवश्यक है पर चीन तो हमसे कई गुना ज्यादा माल खरीद रहा है . इसलिए ब्रिक्स मैं अभी रूस चीन का ही समर्थन करेगा . चीन ब्रिक्स को भी अपने पैसे के दम पर ‘ शंघाई संगठन ‘ की तरह खरीद लेगा . जब हम श्री लंका व नेपाल मैं चीन से नहीं जीत सके तो ब्रिक्स मैं कैसे जीत पायेंगे .
चीन अपने पिछलगुओं को ब्रिक्स कि सदस्यता देना चाहता है जिन मैं पाकिस्तान भी शामिल है .रूस और चीन अमरीकी सैंक्शन से निजात चाहते है .यह तो भारत समेत विश्व के अनेक देश चाहते हें .परन्तु इसके लिए बड़े दिल की जरूरत है .चीन तो बेहद स्वार्थी साहूकार के तरीके से व्यवहार कर रहा है . यदि ब्रिक्स चीनी मह्त्वाकांक्षा मैं फंस गया तो फिर विश्व को अमरीकी दादागिरी को रोकने का यह मौक़ा दुबारा नहीं मिलेगा . भारत को भी रूस ब्राज़ील व दक्षिण अफ्रीका को दूर दृष्टि देनी होगी और उनको समझा कर ब्रिक्स को टूटने से बचाना होगा परन्तु चीनी चुंगल से अलग रह कर. इसके लिए रूसी अर्थ व्यवस्था को बचाना भी बहुत आवश्यक है .
अभी ब्रिक्स की अपनी मुद्रा का समय नहीं आया है . ब्रिक्स देशों कि विश्व की चालीस प्रतिशत आबादी मात्र १६ प्रतिशत व्यापार करती है . अभी यह देश टकनोलोजी मैं भी पीछे हें . सिर्फ चीन निर्यत मैं आगे है.पहले इन्हें आपस का व्याप[र अपनी राष्ट्रीय मुद्रा मैं पूरा करना होगा . ब्रिक्स का अपना डेबिट कार्ड शुरू किया जा सकता है जो सारे विश्व में चल सके. जब ब्रिक्स देशों का आपसी व्यापार पूर्णतः अपनी मुद्रा मैं होगा तब मुद्राओं के आपस मैं बदलने या क्रय विक्रय को शुरू करना होगा . वर्तमान के पांच देश पहले आपसी व्यापार ब्रिक्स मुद्रा मैं तो कर लें और उसकी समस्यायों को सुलझा लें ..बाद में ब्रिक्स का क्रेडिट / डेबिट कार्ड व टूरिस्ट को अपने ब्रिक्स के क्रेडिट कार्ड पर अंतर राष्ट्रीय शौपिंग की सुविधा देनी होगी . तेल ,सोने , खाद्यान्न , लिथियम , दवाओं के इत्यादि के बड़े भण्डार बनाने होंगे. Petro Bricks भी एक विकल्प है परन्तु ब्रिक्स देशों का निर्यात साधारण क्वालिटी का है . हर सदस्य को पश्चिमी संक्षन से जनता के जीवन कि सुरक्षा विकसित करनी होगी. पांच देशो मैं ब्रिक्स को सफल बना कर ही ब्रिक्स का बड़ा किया जा सकता है . तब तक देशों को ब्रिक्स बैंक मैं दाखिला व मीटिंग मैं मेहमान की तरह बुलाया जा सकता है .
अभी ब्रिक्स World bank की तुलना मैं बहुत कम कर्जा दे रहा है . ब्रिक्रस देशों के पास उधार देने के लिए बहुत पैसा भी नहीं है. उधार की सुरक्षा के लिए हमें IMF जैसी ही शर्तें रखनी होंगी . परन्तु IMF /World Bank की तरह लूट रोकनी होगी.अभी तो चीन अपने युआन कों अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बनाने मैं व्यस्त रहेगा .भारत को भी अपने रूपये को आगे बढ़ाना होगा पर इसमें पांच साल कम से कम और लगेंगे . हमारा सोने के भण्डार और अन्य भंडारण क्षमता बहुत बढानी होगी . व्यापार को दुगना व निर्यात को कम से कम १.५- २ ट्रिलियन डॉलर का तो होना होगा . अंततः चीन से मुकाबला तो चीन जितना बड़ा होकर ही होगा .तभी हम चीन के कुछ समकक्ष बन पायेंगे .
इसलिए प्रधान मंत्री को दक्षिण अफ्रीका मैं बिना चीन को अलग किये ब्रिक्स को बचाना होगा परन्तु चीन की दादा गिरी को एकदम रोकना होगा . परन्तु उससे भी अधिक आवश्यक है ब्रिक्स की सही दिशा निर्धारण करना . उसके उद्देश्य व शक्ति मैं संतुलन बनाना . युक्रेन ने रूस चीन की आँखों पर पट्टी बाँध दी है .
संगठन को युक्रेन के आगे दूरदृष्टि से सोचना होगा .