Reversal Of LGBTQ and Ultra Feminism Judgements By Parliament Is Essential : समलैंगिक लोगों का गोद लिया बच्चा बड़ा होकर अपमानित जीवन व्यतीत करेगा !

Reversal Of LGBTQ and Ultra Feminist Judgements, By Parliament, Is Essential : समलैंगिक लोगों का गोद लिया बच्चा बड़ा होकर अपमानित जीवन व्यतीत करेगा !

Rajiv Upadhyay

सर्वोच्च न्यायालय के एक और फैसले ने भारतीय संस्कृति व पारिवारिक व्यवस्था को बड़ी ठेस पहुंचाई है .

इस फैसले से उन्होंने समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दे दिया है . इसका कारण दिया है कि समलैंगिक जोड़े भी बच्चे का ठीक लालन पालन कर सकते हें . यदि लालन पालन मैं भोजन व शिक्षा प्रधान हें तो निस्संदेह अमीर समलैंगिक जोड़े बच्चे का गरीब माँ बाप से भी अच्छा पालन पोषण कर सकते हें . अविवाहित लोग भी बच्चा गोद ले सकते हें जैसे करण जोहर , एलोन मस्क , सुष्मिता सेन इत्यादि ने किया है . यदि अविवाहित लोग बच्चा गोद ले सकते हें तो समलैंगिक क्यों नहीं ?  किसी अनाथालय मैं बड़ा होने से तो किसी घर मैं बड़ा होना ज्यादा अच्छा है चाहे वह समलैंगिक की क्यों न हो ?

सर्वोच्च न्यायलय का फैसला तर्क हीन नहीं है .

परन्तु इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि समलैंगिकों का गोद लिया बच्चा जीवन भर मानसिक प्रताड़ना का शिकार रहेगा . स्कूल से मरने तक उसका अपमान किया जाएगा . इसको न्यायलय नहीं बचा सकता . मैं और मेरे जैसे अधिकाँश भारत वासी नहीं चाहेंगे  कि हमारे  बच्चे ऐसे बच्चों के साथ खेलें या स्कूल जाएँ . हम नहीं चाहते कि वह बड़े होकर समलैंगिक बनें या उसे उचित समझें .

यह कोर्ट की सामान्य जन जीवन मैं अनावश्यक दखलंदाजी है .  भारत ने  समलैंगिकता को स्वीकारा नहीं है. कोई बंद कमरे मैं क्या करता है उसे अपराध से मुक्त करना ठीक था व पुलिस की प्रताड़ना  से मुक्त करना ठीक था . समलैंगिकता एक जीन्स का प्रभाव हो सकती है जिस पर किसी का वश नहीं है . इसलिए समलैंगिको को बाहरी रूप से सामान्य जीवन व्यतीत करने देना ठीक है . पर इसकी पब्लिसिटी या सार्वजनिक  प्रचार  करना उचित नहीं है .

विशेषतः किसी बच्चे को जीवन भर के मानसिक तनाव मैं डालना उचित नहीं है . संसद को इस फैसले को सुधारना चाहिए क्योंकि विदेशी प्रभाव मैं हमारे जज धीरे धीरे समलैंगिकता को भारतीय समाज मैं प्रतिष्ठित करने का प्रयास करते रहेंगे .जज भी मनुष्य होते हें और उनकी अपनी कमजोरियां होती हें . विदेशी इन कमजोरियों का फायदा उठा कर भारतीय संस्कृति को नष्ट कर देंगे .

यही हाल महिला अधिकारों का है . विदेशी प्रभाव से भारत में न्यायालयों ने बढ़ बढ़ कर नारी मुक्ति के नाम पर पुरुषों का वैवाहिक शोषण  को घर घर की समस्या  बना दिया और पुरुषों का जीवन हराम कर दिया है . दहेज़ व झूठे बलात्कार की शिकायतों से हजारों परुषों  व्यर्थ ही  जेल मैं बंद है . पत्नी के कर्तव्यों की कोई बात ही नहीं करता ! क्यों आदमी किसी औरत को जिन्दगी भर घर में पाले यदि वह अपना कोई काम ही नहीं करेगी. हिन्दू विवाह मैं दोनों पक्षों की दायित्वो का वर्णन है . नारी अपने सब दायित्वों से मुक्त कर दी गयी है .पुरुष अब विवाह की जेल मैं बंद हो गया है .यदि वह तलाक  चाहती है तो ले पर पुरुष उसे क्यों जीवन भर कोई पैसा दे ? तलाक   शुदा औरत को उसके परिवार वाले पालें जैसे वह विवाह के पहले करते थे . वैसे भी उसका गलत लालन पालन के दोषी हें जिन्होंने उसे परिवार मैं मिल कर रहना नहीं सिखाया . वही उससे अपना बुढापा संवारना चाहते हें .

हद तो तब हो गयी जब एक जज ने लड़के के माँ बाप के घर पर भी बहु का अधिकार बता दिया ! अब तो लड़के को घर पर भी नहीं रख सकते क्योंकि बहु हर समय तलक की धमकी देती रहती है . यह नहीं है कि इससे औरतों को फायदा हो रहा है . पहले माँ बाप बच्चे के विकास के लिए सब कुछ न्योछावर कर देते थे . बुढापे मैं बच्चे माँ बाप की सेवा करते थे . पितृ ऋण उतरना एक कर्तव्य था और श्रवण कुमार की कहानी हर किसी को बचपन से पढाई जाती थी . अब नयी बहुओं ने मौज मस्ती व घूमने फिरने को जीवन का लक्ष्य बना लिया है. देर से उठना , घर के काम को उलटा सीधा जल्दी से निपटा देना और व्यर्थ के मोबाइल और फेसबुक पर परिवार से अधिक ध्यान देना ,अच्छा तो  बहुत लगता है पर इससे परिवार की उन्नति बाधित होती है . पहले कम आय मैं भी औरत मेहनत  से अच्छा घर चला लेती थी  .अब इस क्रेडिट कार्ड के युग मैं हर कोई आय से अधिक खर्च कर न माँ बाप के लिए धन या समय दे पाता  है .

यह पश्चिम मैं बहुत पहले हो गया . अब वहां माँ बाप घर को गिरवी रख बुढ़ापा व्यतीत करते हें . कॉलेज कि पढाई लोन से करवाते हें . यहाँ तक की घर मैं रहने का किराया भी बच्चों से लेते हें .

क्या हम भारत से इसे श्रेष्ठ समझते हें ? यदि नहीं तो ‘ जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय ‘ . लड़कियों को देर से उठने देना , घर के काम की कोई ट्रैनिंग  न देना , असहिष्णु बनाना, वि वाह उपरान्त परिवार के प्रति दायित्व को न समझाना ही वह विष बीज है जो हमारी बची खुची श्रेष्ठ पारिवारिक व्यवस्था को छिन्न भिन्र कर देगा . सब बूढ़े होंगे और सब माँ व बाप अपने किये पर पछतायेंगे .

इसमें न्यायालय सबसे आगे हें और वोट बैंक राजनीती भी इसका प्रमुख कारण है . भारतीय समाज की मूल अच्छाइयों मैं हमारी पारिवारिक व्यवस्था है . इसको खो दिया तो कुछ नहीं बचेगा .

संसद को आगे आके इसको तुरंत सुधारना चाहिए .

 

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