चुनाव परिणाम : राम मंदिर जीत तो गया पर मंदिर की काफी कमाई अहंकार , चापलूसी व  विकास के झूठे दावों  ने गंवाई

चुनाव परिणाम : राम मंदिर जीत तो गया पर मंदिर की काफी कमाई अहंकार , चापलूसी व  विकास के झूठे दावों  ने गंवाई

Rajiv Upadhyay

चुनाव परिणाम आ गए हें . सब बाधाओं के बाद भी राम मंदिर किसी तरह से  चुनाव जीत गया !

 

बहुतों लोगों के बहुत से शिकवे शिकायत थे  पर राम मंदिर बनने पर  हर्षित जनता  मंदिर बनाने वालों को इनाम देने के लिए एकमत थी और इस लिए बहुत बाधाओं के बाद भी राम मंदिर चुनाव जीत गया .

परन्तु देश के चुनाव परिणामों ने , १९७७  की इमरजेंसी तरह ,सामान्य  जनता के सही निर्णय लेने की विलक्षण क्षमता को फिर सिद्ध  कर दिया है . कश्मीर , राम मंदिर वाले मोदी जी पर जनता को अब भी विश्वास है इसलिए देश की बागडोर पुनः  उन्हीं के हाथों सौंप दी . परन्तु जनता ने उनकी कार्यशैली के कुछ बुरे प्रसंगों पर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी . सांप भी मर गया लाठी भी नहीं टूटी.

१९७७ कि इमरजेंसी की तरह ही जनता ने बीजेपी  के बढ़ते व्यक्ति पूजा व अधिनायक वाद को पूर्णतः नकार दिया है . बीजेपी एक सामूहिक नेत्रित्व की पार्टी थी जिस पर कोई व्यक्ति हावी नहीं होता था . इसमें ‘ मोदी की गारेंटी ‘ ठीक कांग्रेस के  डी के बरुअः के उस बयान कि तरह थी ‘ इंदिरा भारत है और भारत इंदिरा है ‘ और वह फेल हो कर भी देश की बड़ी सेवा कर गयी . पिछले कुछ वर्षों से कार्यकर्ताओं को हांका जा रहा था और पार्टी मैं उनका सम्मान खतम हो गया था.

मुख्य मंत्रियों का ठीक चुनाव से पहले भ्रष्टाचार जैसे संदिग्ध विषय पर गिरफ्तार करना जनता ने नकार दिया क्योंकि सब राजनितिक पार्टियाँ संदिग्ध तरीकों से ही पैसा इकठ्ठा कर चुनाव  लडती हैं . राजनितिक लडाईयाँ सीबीआई व ईडी के दुरूपयोग से नहीं जीती जा सकती . भुट्टो की फांसी  ने उनको अमर कर दिया और पचास साल बाद भी उनके नाम पर सिंध की जनता वोट देती है . स्वर्गीय जय ललिता का जेल ने क्या बिगाड़ लिया ? इलेक्टोरल बांड मैं लाभ के सात प्रतिशत की सीमा को हटा कर उनको एक कमीशन का ज़रिया बना दिया . और जो विरोधियों के दे दे उसको ईडी और सीबीआई  से गिरफ्तार करवा दो ! जनता ने इसे समझ कर नकार दिया यद्यपि शराब घोटाले के आरोप बहुत सही हैं और गंभीर भी  . सत्ता के इस खुले दुरूपयोग ने ही विपक्ष को अपना अस्तित्व बचाने के लिए इकट्ट्ठा  होने को मजबूर कर दिया . इस एकता का सामना बीजेपी नहीं कर सकती. जनता के मन मैं बीजेपी मैं बढ़ते बेहद खतरनाक अधिनायकवाद  का  डर यहीं से शुरू हुआ जो बढ़ता ही गया .

इसी तरह बीजेपी की प्रमुख रीढ़ की हड्डी समान, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अवमूल्यन बीजेपी को भविष्य मैं भी ले डूबेगा . अपने लगभग सौ वर्षों के इतिहास मैं अपने आदर्शों के प्रति  पूर्णतः  समर्पित  राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ ने  बहुत से अमित  शाह देखें हें और कोई उसका मालिक नहीं बन सकता और न ही संघ बीजेपी को उन्हें देश पर थोपने देगा .

संघ जानता है जनता मोदी के बाद योगी को ही चाहती है. और कोई कश्मीर से कन्या कुमारी तक  पूरे देश की जनता मैं इतना लोकप्रिय नहीं है. राजनितिक षड्यंत्रों से यदि योगी को हटा दिया तो यह बीजेपी के अंत की शुरुआत होगी. चतुर केजरीवाल ने लोगों को मोदी के बाद अमित शाह को प्रधान मंत्री  बनाने वाले बयान ने और दिग्रभ्रमित कर दिया . प्रदेश के चुनाव परिणामों को गवाह न बनाया जाय . वह राजनितिक असफलता थी जिसे समझ कर ठीक किया जाय.क्योंकि बीजेपी मैं योगी ही देश कि एकमात्र पसंद हें यद्यपि जातपात व धर्म पीड़ित प्रदेश मैं केवल विकास से  चुनाव जीतना योगी के लिए भी बहुत मुश्किल होगा  .

सालों बाद देश को बदलाव चाहिए और बीजेपी को कुछ नया व विलक्षण करना होगा .  रामदेव का अपमान भी बीजेपी को भारी पड़  गया .जनता सब शिखंडियों के पीछे असली बाण चलाने वाले अर्जुन की वास्तविकता समझती है. बाबुशाही की जिद पर जनरल वी के सिंह को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया और इस चुनाव मैं टिकट  न देना भी एक बड़ी भूल थी .गाज़ियाबाद सीट कि बात नहीं है देश को सेना का अवमूल्यन अच्छा नहीं लगा और विशेषतः राजपूतों को यह पसंद नहीं आया .

वेतन भोगी मध्यम वर्ग को तो अब रोज़ प्रताड़ित किया जा रहा है . उसका तो कोई माई बाप ही इस दूकानदारों की सरकार मैं नहीं बचा . बच्चे तीस लाख खर्च कर इंजीनियरिंग व एम् बी ए कि डिग्री लेकर बेरोजगारी की चक्की मैं पिस रहे हें . और ऊपर से उनको पकोड़े बेचने की सलाह दे कर उनके घावों मैं नमक रगडा जाता है . गैस के सब्सिडी से लेकर जी एस टी तक सब का भार मध्यम वर्ग पर ही थोप दिया जाता है . दस साल से अरुण जेटली के टैक्स कम करने के वादे  को याद कर लेते हें और बढे टैक्स देने के लाइन मैं लग जाते हें . अब तो दूर दूर तक कहीं आशा कि किरण भी नहीं दीखती क्योंकि अम्बानी व अदानी की प्रगति को उनकी प्रगति बताना आर्थिक आकड़ों कि धोखाधड़ी ही है. इस धोखाधड़ी कि खुले आम बेचा जा रहा है जब की बेरोजगारों की फौज को सच का पूर्णतः ज्ञान है.

तब भी NDA के बचे रहने से मोदी जी के पुनः प्रधान मंत्री बनने पर देश आश्वस्त  है . वह मनमोहन सिंह जैसे ज्ञानी नहीं हें और इंदिरा गाँधी वाला अहंकार उनमें भी आ गया है .परन्तु राम   मंदिर . कश्मीर , रूसी तेल , नयी सड़कों का जाल , चंद्रयान बहुत बड़ी उपलब्धि हैं  . विपक्ष का चेहरा तो सब ने दस साल के राज मैं देखा है जब देश मैं दस प्रधान मंत्री होते थे . यह चुनावी एकता कितने दिन चलती है सब जानते हें .भाग्य से उनको एक मन मोहन तारणहार मिल गया था जो अब नहीं है . मोदी जी अपना मनमोहन नहीं ढूंढ पाए और अम्बानी , अदानी के जाल मैं फँस गए . उनकी भी मजबूरी थी . उनके परिचित सेठों , दूकानदारों और  निकम्मे बाबुओं मैं कोई आर्थिक  प्रतिभा नहीं थी . पर इस सरकार से प्रतिभावान लोगों ने कन्नी काट ली थी क्योंकि सेठों और बाबुओं ने मोदी जी को पूरा घेर लिया था और कुर्सी  वालों और पैसे वालों के बीच ज्ञानियों की कोई  सुनवाई नहीं रह गई थी . कांग्रेस के लम्बे  शासकीय अनुभव के चलते उस को होमी भाभा , विक्रम साराभाई , मनमोहन , मोंटेक सिंह , नंदन नीलकेनी जैसे प्रतिभावान लोग सदा मिलते रहे और कांग्रेस को उनका पूरा लाभ उठाने की कला आती थी. इसके विपरीत मोदी जी अकेले राजा , मंत्री  और सेनापति खुद ही बन गए विशेषतः आर्थिक मामलों मैं और न जाने कौन उनसे पकोड़ा छाप वक्तव्य दिलवाता रहा ?

तब भी नितिन गडकरी ,अजित दोवल और जय शंकर की तिकड़ी  ने सरकार की कुछ लाज तो रख ली . राम मंदिर व कश्मीर ऐसी ऐतहासिक उपलब्धियां थीं  जिनके लिए इस सरकार को कम से कम सौ सालों तक याद किया जाएगा.

अगले पांच साल कम से कम नौ प्रतिशत की विकास दर की सर्वाधिक  आवश्यकता है . सरकार को सबसे पहले एक जुट होकर इसी का समाधान ढूंढना है . समस्या जटिल है क्योंकि कर्जे बहुत बढ़ गए हें . इसके लिए किसी विलक्षण प्रतिभा की आवश्यकता है  .

जन मानस मैं सर्व व्यापी  डर विकास का दुश्मन है . बाबुओं ने जो CBI/CVC/ED के डर का साम्राज्य फैलाया है उसी ने देश की आर्थिक दुर्गति की है . हर कोई तुरंत आदेश पालन कर अपने को सफल प्रशासक सिद्ध  कर  सिर्फ अपनी पेंशन बचा रहा है . जो नया बोलेगा या करेगा वही फंसेगा इसलिए बिलकुल चुप रहो और हाँ मैं हाँ मिलाओ ! किसी अनुभवी बाबू से पूछ कर देख लें, सरकार को दो सिलेक्शन के बाद सीनिओरिटी की इज्ज़त करनी चाहिए नहीं तो Merit के नाम पर सिर्फ  चाटुकारिता ही सर्वोपरी हो जाती है और इससे असीमित भ्रष्टाचार ही  फैलता है. यह इमरजेंसी मैं भली भांति सिद्ध हो चुका है. देश की सब ही स्वायत्त संस्थाओं  का अवमूल्रयन हुआ है विशेषतः सेनाध्यक्षों का .

अग्निवीर जैसी गलतियां सेनाओं को शक्तिविहीन कर के ही थोपी जा सकती थीं. अब कहा जा रहा है कि सेनाओं  की ज़मीन बेचनी है यह देश का दुर्भाग्य कि शुरुआत होगी.  सेना का गौरव व सेनाध्यक्षों का आदर करना राष्ट्र हित मैं  बहुत आवश्यक है अन्यथा  राजनीतिग्यों  से १९६२ के जनरल कॉल  ही सेनाध्क्षय चुने  जायेंगे . रक्षा सौदों मैं कमीशन खोरी व जी हजूरी की चाहत को छद्म Merit के आवरण मैं न प्रस्तुत किया जाय. देश याद रखे की ऐसे ही किसी वित्त मंत्रालय के एक जोंक सरीखे बाबु के कलम घसीटने से से अभिनन्दन का जहाज़ गिरा था. अब तो थानेदार भी सेना के ऊपर हो गए हें ! वाजपेयी जी सेनाध्यक्षों का बहुत आदर करते थे और उनसे से अकेले मिलते रहते थे जो बहुत आवश्यक है . उस परम्परा को राष्ट्र हित मैं दुबारा  शुरू किया जाय.

देश को फिर से खुले माहौल की बेहद आवश्यकता है. दस साल सीबीआई / ईडी / सीवीसी / विजिलेंस  का राज देख लिया . जनता से पूछ लीजिये . वह साफ़ बता देगी कि शुरू मैं जो कुछ भ्रष्टाचार कम हुआ था वह फिर वापिस आ गया क्योंकि यह सर्व विदित है कि आज चुनाव बिना भ्रष्टाचार के नहीं जीते जा सकते. आर्थिक विकास के आंकड़ो की हेरा फेरी भी अब फेल हो चुकी है . देश की सामान्य जनता की बढी हुई गरीबी और शिक्षितों  की व्यापक बेरोजगारी अब छुपाई नहीं जा सकती.

इस लिए इन  प्रपंचों को कुछ दिन छुट्टी  भेज कर सर्वव्यापी  डर खतम करें और Creativity and Innovation से विकास कि गंगा भी पुनः बहायें जिससे देश उबरेगा .

बड़े ज्ञानी  अक्सर अकडू होते हें और जी हजूरी नहीं कर सकते. वह अपने क्षेत्र मैं बाबुओं को अज्ञानी मानते हें . उनको सहना सीखना पडेगा क्योंकि दस सालों मैं खोखले परन्तु दम्भी  बाबुओं और अज्ञानी दूकानदारों को बहुत परख लिया है और देश ने शिक्षित बेरोजगारों कि सेना खडी  कर ली है.

आशा है इस नयी सरकार मैं मोदी जी चापलूसों से सावधान रहेंगे और ‘ India Is Indira and Indira is India’  की गलती को दोबारा नहीं घटने देंगे. इसके लिए अपने इर्द गिर्द का स्वार्थियों  के मकड जाल तोड़ कर  बीजेपी को देश के प्रबुद्द्ध  बुद्धिमान वर्ग से पुनः जोड़ेंगे जिससे देश विलक्षण उपलब्धियों से गरीबी  से मुक्त हो सके. यद्यपि राजनीती केवल अर्थशास्त्र नहीं है पर मंहगाई जैसी समस्यायों से देश मैं रोष बढ़ता है. चुनावी राजनीती को भी दुबारा सोचना होगा. २०२९ के चुनाव को २०१४ के मुद्दों या तरीकों से नहीं जीता जा सकता . इसलिए नए नेता व नीतियों की आवश्यकता होगी.

बहुत कठिन है डगर पनघट की .

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