Trump Zelensky Meet : Superior Analysis By Pakistani Channels Compared To India : देश को अफीम के नशे मैं डालना घातक होगा

Trump Zelensky Meet : Superior Analysis By Pakistani Channels Compared To India : देश को अफीम के नशे में डालना अंततः घातक होगा

Rajiv Upadhyay

अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प व यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की  की की वाहिट  हाउस की मीटिंग, जो अभूतपूर्व ढंग से टीवी चेलस पर लाइव प्रसारित की गयी, एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय धमाका थी जिसने विश्व भर को हिला दिया . सब देशों मैं इसकी चर्चा हुयी और यूरोप मैं तो बहुत कड़ी प्रतिक्रिया हुई. लन्दन मैं यूरोप के सब देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मीटिंग हुई जिसमें ज़ेलेंस्की  को भी बुलाया गया . सभी बड़े देशों ने इस अपमानित करने की और अंतर्राष्ट्रीय   कूटनीति के मानकों का मखौल उड़ाने वाले लहजे की भर्त्सना भी हुई .

परन्तु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण था यूरोप का अमरीका से मोह भंग व उसकी वैश्विक परिणामों का आंकलन  .

दुर्भाग्य से भारत के यू ट्यूब  चेनेलों ने इसका बहुत बचकाना विवरण दिया और देश की जनता को इसके दूरगामी परिणामों से अवगत करने के बजाय अधिकाँश ने ज़ेलेंस्की  के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया और उसको कुछ ने उन्हें जिम्मेवार  भी करार तक कर दिया . किसी ने इस मीटिंग के दूरगामी परिणामों का बहुत ज्ञान पूर्वक आंकलन  भी नहीं किया . इसमें चाहें मेजर गौरव आर्या हों या जनरल बक्षी या पालकी शर्मा सभी का बहुत सतही विश्लेषण  था .

इसके विपरीत पाकिस्तानी चैनलों का विश्लेषण बहुत बेहतर था . समा टीवी पर पूर्व प्रधान मंत्री शाहिद खाक्कान अबासी ने इसकी तुलाना १९३५ कि परिस्थितियों से की और अब बहु राष्ट्रीय  सहमती के बजाय  bilateralism का उदय बताया . नजम सेठी ने भी समा टीवी पर बहुत सधा हुआ और Might Is Right का संतुलित विश्लेषण किया . डॉ शहीद मसूद के शो मैं पूर्व मंत्री मुशाहिद हुसैन ने Deep State की  भी बहुत संतुलित प्रतिक्रया दी जिससे पाकिस्तान की जनता को इस महत्व पूर्ण घटना के वैश्विक परिणामों को समझने मैं बहुत मदद मिलेगी . इसके विपरीत एक पाकिस्तानी यू ट्यूब पत्रकार आरज़ू काजमी ने भारतीय विदेश सेवा के भूत पूर्व अफसर दीपक वोहरा को बुलाया . पर वोहरा जी ने विषय की गहराई मैं जाने का प्रयास भी नहीं किया जैसे शाहिद  खकान अबासी  अबासी या नजम सेठी ने किया था . उनकी भाषा भी संतुलित नहीं थी , सभी ज़ेलेंस्की  को दोषी ठहराने  की मुहीम मैं लगे थे . हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जाफरी साख कि बराबरी तो शायद भारतीय न कर पायें पर हमारे पूर्व एन एस  ऐ शिव शंकर मेनन  बहुत अच्छी समझ रखते हें . उनके जैसा ही बोल देते .

पिछले कुछ वर्षों मैं भारत के मीडिया का बहुत पतन हुआ है और अब निष्पक्ष व सारगर्भिक विश्लेषण देखने को नहीं मिलता .शेखर गुप्ता का Cut The Clutter  , कभी कभी कारन थापर के आर्थिक प्रोग्राम या वायर के प्रोग्राम अच्छे मिल जाते हें . मीडिया के सेठों के हाथों जाने से अब सब टीआर पी के दीवाने हो गए हें और अब आर्ट फिल्म के बजाय बेहद घटिया मसाला फिल्म ही टी वी पर परोसी जा रही हें .

क्या जनता को अफीम के नशे मैं रखना ही राष्ट्र हित है. इसका दूरगामी असर क्या होगा ? इस सरकार के आर्थिक  विफलताओं का एक प्रमुख कारण देश मैं जी हजूरी और दह्शत का बोलबाला होना है . पर अब यह आदत बन गयी है .अंततः आर्थिक विकास के झूठे  आंकड़ों की तरह अब बाक़ी विभाग भी अब झूठ पर आश्रित हो जायेंगे .अंततः देश गर्त मैं गिरता जाएगा .

इसका प्रमुख उदाहरण हाल की ट्रम्प ज़ेलेंस्की मीटिंग के कार्य क्रम है . हम बेशक क्रिकेट मैं पाकिस्तान से जीत गए हों पर पत्रकारिता के स्तर मैं  अब पाकिस्तान हम से आगे होने लगा है .

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