Honeymoon Murder : भारतीय नारी को सीता से शूर्पनखा बनाने का दोषी कौन : न्यायालय , संसद , वोट बैंक कि राजनीती , मीडिया या माता पिता ?

Honeymoon Murder : भारतीय नारी को सीता से शूर्पनखा बनाने का दोषी कौन : न्यायालय , संसद , वोट बैंक कि राजनीती , मीडिया या माता पिता ?

राजीव उपाध्याय

आज कल अखबारों मैं राजा रघुवंशी की उनकी पत्नी सोनम के द्वारा हनी मून मैं की गयी ह्त्या सब अखबार की सुर्ख़ियों मैं है .इस ह्त्या का कारण सोनम का शादी से पहले का प्रेम सम्बन्ध था. इसके पहले मेरठ की मुस्कान ने अपने पति सौरभ को अपने पूर्व प्रेमी साहिल के द्वारा शादी के दस दिनों मैं कटवा कर दीवार मैं चिनवा दिया था.इसके कुछ दिन पहले केरल की विद्या लक्ष्मी ने अपने पति अनंत रमण को मुन्नार मैं हनीमून मैं पूर्व प्रेमी से मरवा दिया था. विद्यालक्ष्मी ने ह्त्या बहुत चालाकी से की थी परन्तु पोलिस ने अंत मैं सत्य पता लगा लिया .

प्रश्न यह उठता है कि जब एक तरफ हम राम मंदिर बनवा कर गौरवान्वित  महसूस करते है तो दूसरी और माता सीता के आदर्शों पर चलने वाली भारतीय नारी के कामवासना ग्रसित शूर्पनखा बन जाने पर चुप क्यों हें . यह इक्का दुक्का घटनाएँ नहीं हें बल्कि अब यह प्रचलन हो गया है . इस परिवर्तन कि गहरायी मैं जाएँ तो चार मुख्य दोषी संस्थाएं हैं .

सबसे अधिक गलती हमारी न्यायालयों की है . जजों को अपने विचारों से ऊपर उठ कर अपराध कि गंभीरता के अनुसार दंड देना चाहिए . परन्तु आज जज अखबारों कि वाह वाही के लिए महिलाओं के जघन्य अपराधों को गौण मन कर बहुत कम सज़ा देते हें . मार्च मैं सुप्रीम कोर्ट ने अपने पति को मार कर सूट केस मैं डालने वाली पत्नी को इस लिए जमानत पर छोड़ दिया कि उसे अपने छोटे बच्चे को देखना है . इंग्लैंड के एक प्रसिद्द केस मैं पति कि हत्यारिनी किरण अहलुवालिया को दो साल बाद छोड़ दिया और आज वह नारी मुक्ति आन्दोलन का प्रतीक बनी हुयी है . अब तो तलाक के नौ साल बाद भी मुआवजा बढ़ा देने की अजीब फैसले आने लगे हें . इन सब से नारियां बहुत उच्छ्रिखल हो गयी हें और हमारी पारिवारिक व्यवस्था चरमरा गयी है . इसका प्रथम दोषी हमारी न्यायपालिका का पक्षपात पूर्ण रवैय्या है .

दूसरा दोष हमारी राजनितिक व्यवस्था का है जिसने नारी को एक वोट बैंक बना दिया है . हर पार्टी अति स्वार्थी , आलसी घर को छोड़ पार्टियों को जीवन मानने वाली नारी को भी देवी बना कर संसद मैं प्रस्तुत कर रही है . परिवार के प्रति समर्पित नारी तो अब अपने को हीन मानने लगी है क्योंकि चाहे पति से चौथाई ही तनख्वाह हो अब लड़कियां घर पर बच्चों को नहीं संभालना चाह रही है और नेता इसे प्रोत्साहन दे रहे हें .

इसी कड़ी मैं पश्चिम कि नक़ल करता हमारा मीडिया WOKE संस्कृति का गुणगान करने लगा है . भारतीय संस्कृति को दकियानूसी करार कर वह नयी पीढी को बर्बाद कर रहा है .

परन्तु इन सबके ऊपर भी मैं लड़कियों के माँ बाप को अधिक दोषी मानता हूँ . आज लडकियां सवेरे बहुत देर से उठती हें . घर गृहस्थी  का कोई काम नहीं सीखना चाहती हें . लड़के से तो सब ऊंची तनख्वाह चाहते हें पर अपनी लड़कियों को आलसी ,जाहिल , कामचोर और नाकारा बनाने को लाड़ प्यार मान बैठे हें .  अब दो बच्चे होने से यदि लड़की तलाक के बाद घर आ जाये तो उसके माँ बाप को सहूलियत ही हो जाती है . साथ मैं यदि एक छोटा बच्चा हो तो पति कि कमी किसी को नहीं खटकती .

प्रश्न है कि क्या हम अमरीका की तरह टूटे परिवारों का समाज चाहते हें या किशोर अवस्था के प्रेम वश  छोटी लड़कियों को गर्भवती देखना चाहते  हें ? भारत मैं पश्चिम की तरह लोगों की कमी नहीं है .यहाँ औरतों का काम करना जरूरी नहीं है . पति तो आज भी पहले कि तरह मेहनत  कर रहा है औरत ही  आलसी और काम चोर होती जा रही है .

पूरे भारतीय समाज को इस स्थिति को मिल कर बदलना होगा अन्यथा  यह देश सीता के बजाय शूर्पनखाओं  को पूजने कगेगा .

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