छुरी खरबूजे की की लड़ाई या स्वाभिमान की रक्षा : ५० % Tarrif By Trump Is Not The End , Coercive Irrationality Will Continue : There Can Be No Going Back On Agriculture , Security and Sovereignty ; Meaningful Negotiations Are A year Away

छुरी खरबूजे की की लड़ाई या स्वाभिमान की रक्षा : ५० % Tarrif By Trump Is Not The End , Coercive Irrationality Will Continue : There Can Be No Going Back On Agriculture , Security and Sovereignty ; Meaningful Negotiations Are A year Away

राजीव उपाध्याय

भारत दुर्भाग्य वश  एक ऐसे दोराहे पर फँस गया है कि उसे बहुत शांत और बुद्धिमान नेत्रित्व  की आवश्यकता है . सौभाग्य से हम हर कदम बहुत सोच समझ कर ले रहे हें . परन्तु अब कोई आसान विकल्प नहीं है . यदि थोड़े से फायदे के लिए हमने कोई जल्दबाजी का निर्णय ले लिया तो उसके लम्बे समय तक दुष्परिणाम  भुगतने पड़ेंगे .

पहली नज़र मैं यह लड़ाई छुरी खरबूजे की लड़ाई लगती है . सब ज्ञानी भारत को खरबूजा बता अमरीकी छुरी से न लड़ने की सलाह दे सकते हें . पर यह आत्मघाती निर्णय होगा . 1985 मैं अमरीका को तेजी से उभरती जापानी अर्थव्यवस्था एक प्लाजा समझौता कर सदा के लिए गुलाम बना दिया . आज तक जापान उस गलती की सज़ा भुगत रहा है . खरबूजे को छुरी से लड़ने के बजाय रास्ता बदल लेना चाहिए . राष्ट्रपति ट्रम्प शायद ही अपना कार्यकाल पूरा कर पायें . उन्हें न तो उकसाना ठीक होगा न उनके सामने आत्मसमर्पण करना .

राष्ट्रपति  ट्रम्प  ने भारत के यूरोप द्वारा ढेर गैस व तेल आयात करने सच्चाई  का आइना दिखने के बावजूद भारत पर ५० % टैरिफ लगा दिया . स्वयं यूरोप ने भी बेशर्मी के साथ भारतीय कंपनी न्यारा रिफाइनरी पर सेक्षण  लगा दिए . भारत का का इस पूरे प्रकरण मैं कोई दोष नहीं है . राष्ट्रपति बिडेन ने भारत को रूस से ६० डॉलर की दर पर तेल खरीदने को कहा था. अगर भारत यह न करता तो भारत व यूरोप सहित सारे तेल आयातक देशों कि अर्थव्यवस्था की धज्जी   उड़ जाती क्योंकि तेल की कीमतें आसमान छु जातीं . भारत ने विश्वव पर अहसान किया है . तो फिर ट्रम्प  क्यों नाराज़ हो रहे हें ?

राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमरीकी तेल लॉबी के लिए भारत का यूरोप को निर्यात समाप्त कर अमरीकी महंगा डीजल तेल  बेचने का प्रयत्न कर रहे हें  . यूरोप तो पहले ही हथियार डा ल चुका है . उसने रूसी गैस के बदले मंहगी अमरीकी गैस खरीदनी शुरू कर दी . अब वह यही डीजल के साथ भी करेगा . तो इसमें ड्रामा करने की क्या जरूरत है ? उसका दूरगामी परिणाम समझिये .

भारत की अर्थ व्यवस्था  अब बड़ी हो गयी है . अमरीका और यूरोप भारत को पिछलग्गू बनाना चाहते हें . पहले वह इराक , अफ़ग़ान युद्ध के लिए सैनिक चाहते थे जो हमने मना कर दिया . फिर ताइवान के लिए चीन से लड़ने के लिए हमने मना कर दिया . अब हम रूस से तेल आयात कर रहे हें . यह सब पश्चिमी देशों को बुरा लग रहा है . वह भारत को Useful Idiot कि तरह रखना चाहते हें . पर स्वयं यूरोप अपने इस दब्बू पने के कारण आज पतन की ओर अग्रसर है . यूक्रेन की लड़ाई अमरीका की थी . उसने व्यर्थ मैं गोर्बाचेव के साथ किये समझौते को तोड़ रूस के बॉर्डर पर नाटो को खडा कर दिया . ज़ेलेंस्की  तो बांग्लादेश के युनुस की तरह अमरीकी मोहरा है . रूस ने आत्मसम्मान चुना और बहुत लम्बी प्लानिंग के बाद बदला लेना शुरू किया . अपनी बेहतरीन प्लानिंग से उसने अब तक अपनी अर्थ व्यवस्था को बचा कर लड़ाई धीरे धीरे जीतता गया .

भारत को भी यह समझना होगा कि भगवान् राम की तरह समुद्र की पूजा अर्चना से यह समस्या नहीं सुलझेगी . इसके लिए शक्ति प्रदर्शन आवश्यक होगा . अगर आज नहीं तो  कल बिना बलिदान के पश्चिमी राष्ट्र भारत को अपने समकक्ष नहीं मानेंगे . पर भारत को अभी पंद्रह साल  और विकास के लिए चाहिए . उसके लिए पश्चिम का पैसा और तकनीक दोनों की आवश्यकता है . अब तक भारत सफलता पूर्वक प्रगति कर रहा था . राष्ट्रपति ट्रम्प एक अपवाद हें . यदि हम चुप रहे तो कोई बड़ी शक्ती उन्हें हटा ही देगी . यदि हम अब डर कर पीछे हट गए तो सौ  प्याज़ और सौ जुते  दोनों खायेंगे .

Neither Russia nor China can fight with USA , BRICS is unprepared so every one is surrendering to Trump except China to an extent .

इसलिए भारत को इस समय बिना Insulting समझौता किये समय को  बीतने देना चाहिए

रहिमन चुप्पी बैठिये देख दिनन केफेर

जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर

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