RSS In Hundred Years : विशुद्ध आदर्शवाद से सत्ता की दीमक से आक्रांत होने तक का सफ़र : भविष्य कि चुनौतियों के लिए आदर्शों कि नयी व्याख्या की आवश्यकताएं

RSS In Hundred Years : विशुद्ध आदर्शवाद से सत्ता की दीमक से आक्रांत होने तक का सफ़र : भविष्य कि चुनौतियों कि लिए पुराने आदर्शों की नयी व्याख्या की        आश्यकता

राजीव उपाध्याय

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का इतिहास निश्चय ही गौरवशाली है . किसी स्वयं सेवी संस्था कि इतने वर्षों तक इतने  विशाल रूप मैं अक्षुण्य रहना स्वयं मैं उसके शाश्वत सिद्धांतों के प्रति लाखों स्वयं  सेवकों का समर्पित रहना एक बड़ी उपलब्धि है .

आज बढ़ बढ़ कर व्यर्थ के तंज कसने वालों ने १९१० – १९४७ के वह दिन नहीं देखे हें जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक मात्र संस्था थी जो हिन्दुओं को मुस्लिम सामूहिक आतंक से बचा रही थी . पाकिस्तान से आये रिफुजियों की भी आर एस एस के स्वयं सेवकों ने अत्यंत समर्पण से सहायता की थी. १९६२ और १९६५ कि लडाई मैं स्वयं सेवकों ने सेना के कंधे से कंधा मिला कर काम किया जो तत्कालीन प्रधान मंत्रियों ने भी सराहा . डॉक्टर हेग्देवर  व गुरु गोल्वालकर ने जो विलक्षण संगठन शक्ति दिखाई वह निश्चय ही प्रशंसनीय थी . इमरजेंसी का संगठित विरोध भी आर एस एस के सदस्यों ने किया था जिसके लिए अनेकों को जेल मैं ठूंस दिया था . उसके बाद एकल व शिशु विद्यालय एवं वनवासी कल्याण समेत अनेकों संस्थाओं ने इसके संरक्षण मैं आज भी कार्यरत हें . वनवासी लोगों को ईसाई मिशनरी अनेकों प्रलोभन दे  कर धर्म परिवर्तन कर रहे थे जिसका दुश्प्रप्भाव आज भी अजगर कि तरह पूर्वोत्तर राज्यों मैं दीख रहा है . आर एस एस के निस्वार्थ सेवा से इस पर  रोक लगी है . इसी प्रकार मिनाक्षी पुरम मैं सामूहिक इस्लाम मैं धर्म परिवर्तन के प्रबल विरोध से ऐसी घटनाओं की पुनरावृति पर रोक लगी है . कश्मीर मैं भी यद्यपि हम निष्कासन को नहीं रोक सके पर पीड़ित लोगों कि बहुत सहायता की थी .

आज आर एस एस कि आज विश्व भर मैं शाखाएं हें जो हिन्दू व भारतीय हितों की रक्षा मैं संलग्न है .

अयोध्या आन्दोलन,  जिसने देश की राजनीती बदल कर हिन्दू हितों को तुष्टिकरण के विषैले प्रभाव से बचाया , मूलतः संघ का ही था .

अयोध्या आन्दोलन तक संघ कि भूमिका निश्चय ही बहुत प्रभावी व सावरकर , हेगदेवर व गुरु गोलवलकर के आदर्शों के अनुरूप ही थी .

परन्तु सत्ता कि राजनीती कि अपनी आवश्यकताएं थीं . गुरू  गोवलकर व हेग्देवर ने स्वतंत्र्ता   आन्दोलन कि कठिन परिस्थितियों मैं भी संघ को राजनीती से बचे रखा . पर बी जे पी के सत्ता मैं आने के साथ और उसके सानिध्य से संघ मैं भी राजनीती का घुन लग गया . जिस प्रकार कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद और देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यों के पहले हक़ के सिद्धांतों को तुष्टिकरण की हद के पर जा कर   कार्यान्वित किया  किया उसने हिन्दू हितों को धुल धूसरित कर दिया , उससे संघ का राजनीती मैं सक्रीय सहयोग उतना ही आवश्यक हो गया जितना इमरजेंसी मैं जय प्रकाश जी को आगे लाने मैं था .

कांग्रेस को सत्ता से रोके रखना  भी एक राष्ट्रीय आवश्यकता  बन गया . यहीं से संघ के आदर्शों से विमुख होने का सफ़र शुरू हुआ .

संघ मैं भी जातिवादी जहर घुलने लगा . रिजर्वेशन ने इतनी मुश्किल से जोड़े गए हिन्दू समाज को टुकड़ों  मैं फिर बाँट दिया . यद्यपि यह विश्व नाथ प्रताप सिंह ने शुरू किया था पर इसने चौधरी चरण सिंह के अजगर ( अहीर , जाट , गुजर , राजपूत ) दृष्टान्त को पुर्जीवित कर दिया . उधर लालू , मुलायम, मायावती  व ममता खुल कर तुष्टिकरण व जातिवाद आधारित राजनीती कर रहे थे .बी  जे पी भी इसी जातीय समीकरण की राजनीती मैं फँस गयी . उधर सामूहिक नेत्रित्व कि परम्परा को इंदिरा गाँधी कि तरह व्यक्ति पूजन कि परम्परा मैं बदल दिया . यहाँ तक कि अयोध्या आन्दोलन के निर्विवाद स्तंभ लाल कृषण अडवाणी भी पाकिस्तान जा कर जिन्ना के गुणगान करने लगे . सरसंघ चालक सुदर्शन की अडवानी जी को हटाना आर एस एस की आखिरी उपलब्धि थी .38 Indian Opposition Leader Lal Krishna Advani Visits Pakistan Photos ...

हम करोड़ों बांग्लादेशियों के भारत मैं घुसने को नहीं रोक पाए . कश्मीर व पूर्वोत्तर को छोड़ें  केरल व बंगाल मैं हिन्दू दमन को नहीं रोक पाए . इसके अलावा भी अनेक असफलताएं मुंह बाए खडी  हें . टीवी पर परोसे जाने वाले पाश्चात्य प्रभाव से अगली पीढी को रोक पाने मैं हम एक दम असमर्थ हो गए . अब हिंदुत्व  जीवन मूल्यों के  उपयोगी स्वरुप को पुर्स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है .

इसके बाद तो आर एस एस भी शनै शनै सत्ता के दलालों के चुंगुल मैं फँस गयी . धीरे धीरे वह अपने आदर्शवादी स्वरुप को छोड़ बीजेपी की बी टीम बन गयी . बी जे पी अध्यक्ष जे   पी नद्दा की अत्यंत शर्मनाक टिप्पणी को सहजता से स्वीकारने के बाद सामान्य कार्यकर्ता के संघ के शीर्ष नेत्रित्र्व  से मोह भंग हो गया . नद्दा आज भी स्वयं सेवकों की  छाती पर मूंग दल रहे हें . संघ के नेताओं मैं पुरानी सहजता व  सादगी कि जगह  सत्ता का घमंड भी आ गया और वह कार्यकर्ताओं से दूर होते गए . सरसंघ चालक को गुरु गोलवलकर  की तरह संघ को राजनीति  से दूर कर आदर्शवाद को पुनः स्थापित करना होगा अन्यथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक आत्मा विहीन शरीर हो जाएगा जिसका अंततः क्रिया कर्म ही नियति हो जायेगी .

पर इससे भी बड़ी एक और समस्या है . जिस प्रकार आर्य समाज बाल विवाह , विधवा विवाह इत्यादि के सर्वमान्य होने के बाद नए आदर्श नहीं ढूंढ सका इसी प्रकार इसकी पुनरावृति को रोकने के लिए सावरकर के हिंदुत्व को एक हिन्दुओं कि विश्व  विजयी क्षमता विकसित करने की और मोड़ना होगा . भारत को मात्र हिन्दू राष्ट्र बल्कि चन्द्रगुप्त मौर्या वाला हिन्दू राष्ट्र बनाने ध्येय संघ का नया आदर्श होना चिह्ये जिससे अगली पीढी भी अपने भारतीय व हिन्दू होने पर गौरव कर सके .

इसी आदर्श को संघ का दीप स्तम्भ बनाना ही सरसंघ चालक का परम कर्तव्य है .

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