India &America : स्वाभिमान , स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए यदि दर्द हुआ तो दर्द अच्छा है परन्त अब एक सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय वाली नयी पहल की आवश्यकता है

India &America : स्वाभिमान , स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए यदि दर्द हुआ तो दर्द अच्छा है परन्तु अब नयी सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय  पहल  की आवश्यकता है

राजीव उपाध्याय

वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल की एक और अमरीका यात्रा विफल हो गयी क्योंकि न अमरीका न ही भारत अपने हितों को छोड़ना चाह रहे हें . अमरीका के लिए कुछ हथियार , मक्का या तेल छोटी बातें हें परन्तु भारत के लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है . इसी प्रकार चीन तो पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार सस्ते मैं दे देता है परन्तु भारत के लिए सस्ते व प्रभावी  हथियारों का सिर्फ रूस ही एक मात्र विकल्प है . कमजोर भारत को तो पाकिस्तान व चीन कच्चा चबा जायेंगे . हम अपनी सुरक्षा भी अमरीका के मंहगे व अनुपयोगी हथियार खरीदने मैं दांव पर नहीं लगा सकते . अब अमरीका का भी हम से मोह भंग हो गया है. हम F 35 नहीं ले सकते .QUAD मैं भी हम अमरीका के लिए उपयोगी नहीं सिद्ध हुए. इसलिए वह पाकिस्तान व सऊदी के साथ नए विकल्प खोज रहा है . परन्तु ४०० करोड़ का हवाई जहाज देकर भी क़तर को क्या मिला ? अमरीका के लिए हमारे १४० करोड़ लोग मात्र बाज़ार हें हमारे लिए तो वही हमारा अस्तित्व  हें  और उनका का हित सर्वोपरी है .

भारत ने अमरीका को बहुत विकल्प दिए पर उनकी GM Maize जो यूरोप भी नहीं खाता उसे हम क्यों अपने लोगों को खाने को दें . इसी प्रकार हम अपने किसानों , जो हजारों कि संख्या मैं पहले ही आत्महत्या कर रहे हें , अमरीका की बलि वेदी पर तो नहीं चढ़ा  सकते . यद्यपि यह सच हें कि हम अमरीका से आयत कम करते हें परन्तु  अमरीका के पास हमारे लायक सस्ता कोई सामान नहीं है . हम तो उन्हें विश्व मैं सबसे सस्ता सामान ही तो बेच रहे हें  .७५००० डॉलर प्रति व्यक्ति की आय वाला ट्रम्प का अमरीका ३५०० डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाले भारत से बराबरी कर छोटा बन रहा है !यह पहले शर्मनाक बात होती थी पर अब इसे राष्ट्र हित कहा जाता है.

रूस के तेल की भी यही बात है . रूस तो सिर्फ बहाना है ,वास्तव मैं अमरीका चाहता है कि हम रूस के बजाय उसका मंहगा तेल खरीदें . हमारी अर्थ व्यवस्था पहले ही कम निर्यात से जूझ रही है . हम तेल के आयात का बिल नहीं बढ़ा सकते .

अब यह लड़ाई अमरीका ने मूंछ कि लड़ाई बना ली है .

इसलिए अब कुछ नए परिवर्तन की आवश्यकता है . विदेश मंत्री जय शंकर जी के बयान अब कुछ पुराने हो  गए हें और सुने भी नहीं जा रहे .अमरीका व यूरोप को कुछ नए ढंग से समझाने की जरूरत है . ब्रिक्स को कोई सब देशों को साथ लेने की रणनीति के लिए ‘ सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय  ‘ का  कोई वैकल्पिक प्रस्ताव लाना होगा जो सुर्ख़ियों मैं आ सके . हम अभी विकल्पों पर ध्यान नहीं दे रहे हें .इसे बदलना होगा .

परन्तु स्वाभिमान , स्वतंत्रता व सुरक्षा के लिए सहा दर्द भी अच्छा है .

 

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