वही बरेली शहर , दो दंगे , दो सरकारें , वही एक दोषी पर मुख्य मंत्री योगी  ने क्या बदल दिया ?

वही बरेली शहर , दो दंगे , दो सरकारें , वही एक दोषी पर मुख्य मंत्री योगी  ने क्या बदल दिया ?

राजीव उपाध्याय

बरेली शहर पहले १९६६ कि फिल्म  मेरा साया के गाने ‘ झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार मैं ‘ मैं से देश भर मैं चर्चा मैं आया था . पर २०१0 मैं जब प्रदेश मैं मायावती जी की सरकार थी तो पहली बार एक भयंकर साम्रदायिक दंगे कि चपेट मैं आ गया . तब १२ दिन तक शहर मैं कर्फयु लगा रहा , करोड़ों की सम्पत्ती व दुकानें जला दी गयीं और साठ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए .

दंगा तब भी दो मार्च २०१० को मुसलमानों के बरेलवी धड़े के बारहवफात के जलूस को लेकर हुआ था . सामान्यतः प्रोफेट मोहम्मेद का जन्म दिन मनाया जाता है . जो कि इस बार २० फरवरी को मन चुका था . पर मौलाना के लोगों ने मार्च दो को भी एक और जलूस निकालने का निर्णय लिया . इसके लिए मोरादाबाद , संभल इत्यादि से अनेक मुस्लिम युवकों को बुलाया गया था . अचानक उन्होंने जलूस का रास्ता बदल दिया जिसकी अनुमति पोलिस ने नहीं दी थी . मौलाना ताकीर राजा एक पचास हज़ार लोगों का जलूस अन्य जगह ले जा रहे थे . उन्होंने एक बहुत भड़काऊ भाषण दिया और उत्तेजित भीड़ ने भयंकर हथियारों से निहत्थे शांति प्रिय लोगों पर हमला ही नहीं किया बल्कि पुलिस स्टेशन भी जला दिया .

तब भी आज के आरोपी मौलाना तौकीर राजा को गिरफ्तार तो किया पर राजनितिक दबाब मैं छोड़ दिया गया . उन पर तब भी पिछले बीस वर्षों से अनेक आपराधिक मुकद्दमे दर्ज थे पर कोई उनका बाल बांका नहीं कर सकता था . उसके बाद मौलाना ताकीर रजा बिना ताज बरेली के बादशाह बन गए जिन्हें कोई चुनौती नहीं दे सकता था .

उन्होंने यही दंगा २६ सितम्बर को  करवाया  . ४०००० लोगों को बाहर से बुलाने  की प्लानिंग थी . उनको लगभग ३९० मस्जिदों मैं ठहराया  जाना था .   अगर दंगाई सफल हो जाते तो बरेली तो जल कर राख हो जाता पर इसके अलावा यही ब्लू प्रिंट देश भर मैं अन्य स्थानों पर प्रयोग किया जाता . और फिर कोई अंतर्राष्ट्रीय संस्था या क़तर सरीखा छोटा देश भारत को न्याय का पाठ पढ़ा रहा होता !

पर इस बार यू पी मैं  योगी की सरकार थी . न कोई कर्फयू  लगा, न धारा १४४ . दंगे के बाद तुरंत तौकीर रजा को गिरफ्तार कर बरेली से बाहर भेज दिया और चुन चुन कर उपद्रवियों को जेल डाला जाने लगा . अब बुल्दोजर भी आ गया . अभी चुन चुन कर ढूंढा जा रहा है . कभी शेर कि तरह जुर्म कर बेख़ौफ़ घूमने वाले अपराधी आज कानून की दुहाई दे रहे हें . कोई भी हो जो दंगे मैं था उसे नहीं बख्शा जा रहा . अब अनेक वर्षों तक बरेली शांत रहेगा जब तक प्रदेश मैं फिर कोई दंगा प्रेमी  ढूलमुल सरकार न आ जाए .

यदि एक योगी यह कर सकता है तो देश क्यों नहीं अनेक योगियों को सत्ता दे रहा है . इसी प्रश्न को ध्यान से समझने  की जरूरत है .

जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय !

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