5:32 pm - Tuesday November 23, 0027

कोल गेट , रेल गेट , इंडिया गेट : गेट यानी घोटाला -श्री शुभ्रांशु की कविता

देख कर न्यूज़ चैनलों की बकबक

श्रीमती जी थीं स्तब्ध हकबक

देखते-देखते एक न्यूज़ शो

अचानक ही बोल पड़ीं वो

अजी ये क्या होता है कोल गेट

क्या कोई नया टूथपेस्ट आया है

या किसी पुराने ब्रांड में ही कोयला मिलाया है

नमक वाला टूथपेस्ट तो सुना था

क्या अब कोयले से दाँत माँजने के समय आया है

और ये क्या है रेल गेट

क्या स्टेशन पर खुला नया कोई फाटक है

या जनता को फुसलाने का नया कोई नाटक है

अभी-अभी जो सुना था टू जी का स्पेक्ट्रम गेट

अजी क्या भौतिकी का कोई नया पाठ है

या सतरंगी किरणों की कोई नई बंदर-बाँट है

और ये कौन है फणीश मूर्ति उसका भी है आई-गेट

लगता है सबकुछ हो रहा है मटियामेट

मैं चुप हो सुन रहा था

श्रीमती जी के सामान्य ज्ञान को गुन रहा था

ज़्यादा देर तक बोलीं तो न्यूज़ निकल जाएगा

इसी बीच कोई नया गेट खुल जाएगा

सोचा अनसुना करूँगा तो चुप हो जाएँगी

अपने मुँह का गेट बंद कर रसोई जाएँगी

थोड़ी खुश हुईं तो चाय भी पिलाएँगी

पर वो टलने वाली नहीं थी

बिना समझे हिलने वाली नहीं थी

बोलीं, चुप क्यों हो कुछ तो बताओ

इतने सारे गेट खोल रखे हैं

चोर घुसे जा रहे हैं, कुछ बंद भी कराओ

रात को दरवाजे बंद करके जाँचते हो

सुरक्षा की पोथी जो घर में बाँचते हो

इन गेटों से जो लूट मची है

क्यों नहीं बंद कराते

एक बंद नहीं होता कि दूसरा खुल जाता है

मोटी सांकल या सिटकनी क्यों नहीं लगाते

मैं बोला, भागवान, अब क्या-क्या गिनाऊँ

किस-किस गेट, किस घोटाले की कथा सुनाऊँ

कैसे-कैसे कांड प्रकरण कैसे तुम्हें बताऊँ

सब कुछ सड़ गया है देश में

डाकू घूम रहे हैं साधुओं के वेश में

ये गेटों का मायाजाल तुम क्या समझोगीIndia Gate
चलो एक बार इंडिया गेट ही दिखा लाऊँ

—ooo—

कोलगेट का मायने है कोयले में घोटाला

रेलगेट का मतलब रेल में गड़बड़झाला

सुनहले-रुपहले सब आदान-प्रदान

अतः छोड़ने के पहले मैदान

अँग्रेज़ों ने पूरा इंडिया गेट ही बना डाला

Filed in: Literature

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