The Story of Jyotirlings 6 -Trayambkeshwar , Nasik : त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

traymbkeshwar
Tryambkeshwar jyotirling temple is located in hiils near the Godavari river , twenty eight kilometers from Nasik . It was constructed by Balaji Bajirao from 1755 to 1786 AD. In contrast to other temples here three lings represent Brahma , VIshnu and Mahesh . During Ramayan era Sitaji used to take bath in Godavari river as it is considered very auspices. Godavari river’s origin is supposed to be from Brahmgiri hills nearby . Shiva had to tandav nritya to get Ganges at Brahmgiri and later at Trambkeshwar as per the legend . Gautam rishi used to have his Ashram here.

The temple apart from being a very important holy place is also located in very picturesque surroundings and has very good architecture.

 

 

 

A very good description is given in blog below . Please click on the link to read .

त्रम्ब्केश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर —   रेखा श्रीवास्तव

http://merasarokar.blogspot.in/2010/06/blog-post_30.html

. नासिक रोड स्टेशन से लगभग २८ किलोमीटर कि दूरी पर पहाड़ियों के बीच में स्थित है. यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है.

इस स्थान का विहंगम दृश्य देख कर ही पता चलता है कि इसकी सुन्दरता तो  अद्भुत ही है, साथ ही इसके लिए हिन्दू धर्म में जो आस्था जुड़ी है उसने इसको और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है. भारत भूमि पर स्थित १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक यहाँ पर है. यहाँ पर दर्शन के लिए लाइन में लगे लोगों को देख कर ही वहाँ के लोग बता देते हैं कि अभी ४ घंटे की लाइन लगी है. यहाँ पर सिर्फ त्रयम्बकेश्वर का ही महत्व नहीं हैं बल्कि गोदावरी नदी और ब्रह्मगिरी पर्वत को भी उतना ही महत्वपूर्ण मना जाता है.

त्रयम्बकेश्वर मंदिर का निर्माण नासिक  के  समीप  त्रयम्बक नामक  स्थान पर  श्रीमंत बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहिब  पेशवा द्वारा १७५५ में आरम्भ किया गया था और १९८६  में इसका कार्य पूर्ण हुआ था. . उस समय इस मंदिर के निर्माण में १६ लाख मुद्रा और ३१ वर्ष का समय लगा था.
इसमें जो ३ लिंग स्थापित है , वे ब्रह्मा (सृष्टि के सृजक), विष्णु ( सृष्टि के पालक ) और महेश (सृष्टि के संहारक) के प्रतीक माने जाते हैं. शेष ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ भगवान शिव के लिंग को ही देखा जा सकता है.  ये लिंग प्राकृतिक हैं और गंगा का पवित्र जल शिवलिंग के ऊपर बहता है. ये लिंग जल के नीचे ही रहते हैं. पुजारी यहाँ पर दिन में तीन बार पूजा करते हैं और इसके लिए उनको १००० रुपये का प्रतिदिन का अनुदान प्राप्त होता है. प्रदोष काल  में विशेष पूजा का प्रावधान है.
इस मंदिर कि वास्तु काला और प्राचीन स्थापत्य काल को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्थरों पर की गयी उत्कीर्णन का कार्य कितना उत्कृष्ट और अनुपम होता था. सदियों से खड़ा ये मंदिर आज भी अपनी  कथा स्वयं कह रहा है .
मंदिर  की स्थापत्य  काला  का  नमूना यहीं  देख  सकते  हैं .
  
त्रयम्बक में स्थित ये कुण्ड गोदावरी नदी के उद्गम से बना स्थल मान  जाता है. गोदावरी नदी का उद्गम ब्रहाम्गिरी पर्वत से ही माना जाता है और इसको गंगा की  तरह ही पवित्रतम नदी माना जाता है. रामायण युग में सीता के इस गोदावरी में स्नान के लिए विशेष प्रेम की कथाएं सुनने को मिलती हैं.
इस बारे में इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अगर देर रात्रि नासिक से त्रयम्बक पहुंचना हो तो वहाँ के रास्ते इतने सुनसान हैं कि किसी भी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है. चारों ओर पहाड़ियों के बीच होने के कारण वहाँ पर जन जीवन भी बहुत अधिक नहीं है. वहाँ पर पूजा और धार्मिक संस्कारों से जुड़े कार्यों के लिए विशेष महत्व का स्थान माना जाता है.

 

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