मन्ना डे : एक प्रतिभा के साथ एक युग का अंत

manna deyआज मन्ना डे के निधन की खबर सुन बहुत दुःख हुआ .मन्ना डे उस युग के एक मात्र जीवित प्रतिनिधी थे जिसे  हिंदी  सिनेमा के संगीत का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है. कभी कभी बीरबल की छोटी व् बड़ी लाइन की तरह , अत्यंत प्रतिभा शाली मन्ना उस युग के दिनासोरों जैसे लता व् रफ़ी से दब गए थे .पर उनकी शास्त्री गायन की अद्भुत प्रतिभा का लोहा सब मानते थे.  उन्हें उनके क्षेत्र मैं  कोई नहीं हरा सकता था .हालाँकि स्वर कोकिला लता उस युग की आधारशिला की तरह अभी बची हैं परन्तु ‘ लागा चुनरी मैं दाग ‘ तो किसी के बस का गाना नहीं था.

फूल गेंदवा न मारो व् लागा चुनरी मैं दाग उनकी सर्व श्रेष्ठ रचनाओं मैं थी . वैसे ऐ मेरी जोहरा ज़बीं जैसे गाने गा कर उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया .उनके पूछो न कैसे मैंने रेन बितायी तो ट्रेड मार्क गानों मैं थे .

एक बार बडबोले नए संगीतकार ने कह दिया की नौशाद आज भी ज़िंदा हैं अब उनसे क्यों कोई गाने नहीं बनवा रहा . आज वह संगीत कार भी लगभग गुमनामी के अँधेरे मैं जा चुके हैं . यह बात सच है की लोगों की रूचि बदल गयी है  . अब मुग़ल कालीन  चौबीस घंटे मैं उपलों पर पकी दाल नहीं बल्कि पांच मिनिट मैं बने पिजा का युग है. संगीत व् गाने भी इसी विडम्बना के शिकार हो चुके हैं . परन्तु हमारा शास्त्रीय  संगीत सदाबहार हैं क्योंकि वह मानव जीवन के शाश्वत नियमों पर आधारित है.

कुछ दिनों के लिए बदले स्वाद को फिर हमारी परम्पराओं मैं आना होगा.

मुझे आशा है की मन्ना डे की तरह प्रतिभा शाली  लोग फिर हमारे अन्तरिक्ष पर उभरेंगे व् भारत को एक कर्ण प्रिय संगीत की दुनिया मैं वापिस ले जायेंगे.

 

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