In the first part we examine ancient hindu view of 84 lac yonis and need to do good deeds in human life . Aquestion can be raised where from 84 lac yonis figure came? 
Padmpuraan gives some details which our modern science is approaching slowly . Inspite of science , it can be said science is still evolving to know the full depth of hiduism .
In other parts we will know investigations by Western scholars .
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दोस्तों आपने अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों के मुख से ये तो अवश्य ही सुना होगा :
“84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए” अर्थात 84 लाख प्रकार के जीवों की योनि में जन्म भोगने के पश्चात मनुष्य जीवन मिलता है ।
अब सवाल ये है की उनके पास 84 लाख जैसा बड़ा आंकड़ा आया कहाँ से ? और क्या इसमें कुछ दम है ? और दूसरा ये है एक योनि(जीवन) से दूसरी योनि में प्रवेश करना (पुनर्जन्म)। इन दोनों बातो पर हम विचार करेंगे ।
इस प्रथ्वी पर एककोशिकीय, बहुकोशिकीय, थल चर, जल चर तथा नभ चर आदि कोटि के जिव मिलते है। इनकी न केवल संख्या अपितु वर्गीकरण की जानकारी भी हमें पद्म पुराण में मिलती है ।
पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है
स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)
सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million)
स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
मानवीय नस्ल के (human-like animals) – 4 लाख 0.4 million
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। …गीता २ /२ २
गीता २ .२ २ में भगवान कृष्ण ने कहा है :
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है
As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new. ८ ४ लाख जीवों में एक मनुष्य ही है जो सबसे उतम बताया गया है इसके अतरिक्त सभी भोग योनि में है । इसी लिए मानवीय जीवन का उपयोग अच्छे कार्यों में लगाने ही हिदायत दी जाती है ।
Since being born as a human is such a rare opportunity, one should make complete use of this human life, and devout one’s lifetime to do good things, earn knowledge, help others, serve the society and try to attain moksha (salvation). सर्वप्रथम जीवआत्मा अध्यात्मिक अवस्था में होती है तथा वही जीवआत्मा देह धारण करती है तथा उसी देह द्वारा किया गये उच्च अथवा नीच कर्मों के अनुसार गति को प्राप्त होती है जैसे कोई जिव-जंतु पेड़ पोधा आदि । तथा पूर्ण ८ ४ लाख योनियों में भटकने के पश्चात पुनः मानव शरीर ग्रहण करती है और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकलने का एक अवसर और प्राप्त करती है । इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति तक इसी कालचक्र में फंसी रहती है । – श्रीमदभागवत 4.29.2
महर्षि कपिल के सांख्यशास्त्र के अनुसार :-
जीव शरीर का निर्माण इस रीति से हुआ कि :- त्रिगुणात्मक प्रकृति से बुद्धि, अहंकार,मन, सात्विक अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), ताम्सिक अहंकार से पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) पाँच विषय (रूप,रस,गंध,स्पर्श,दृष्य) और इस चौबिस प्रकार के अचेतन जगत के अतिरिक्त पच्चीसवाँ चेतन पुरुष (आत्मा) ।
शरीर के दो भेद हैं :- सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन ] स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]
जब मृत्यु होती है तब केवल स्थूल शरीर ही छूटता है, पर सूक्ष्म शरीर पूरे एक सृष्टि काल (4320000000 वर्ष) तक आत्मा के साथ सदा युक्त रहता है और प्रलय के समय में यह सूक्ष्म शरीर भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है । बार बार जन्म और मृत्यु का यह क्रम चलता रहता है शरीर पर शरीर बदलता रहता है पर आत्मा से युक्त वह शूक्ष्म शरीर सदा वही रहता है जो कि सृष्टि रचना के समय आत्मा को मिला था , पर हर नये जन्म पर नया स्थूल शरीर जीवात्मा को मिलता रहता है । जिस कारण हर जन्म के कुछ न कुछ विषय हमारी शूक्ष्म बुद्धि में बसे रहते हैं और कोई न कोई किसी न किसी जन्म में कभी न कभी वह विषय पुनः जागृत हो जाते हैं जिस कारण वह लोग जिनको कि शरीर परिवर्तन का वह विज्ञान नहीं पता वह लोग इसको भूत बाधा या कोई शैतान आदि का साया समझ कर भयभीत होते रहते हैं । कभी किसी मानव की मृत्यु के बाद जब उसे दूसरा शरीर मिलता है तब कई बार किसी विषय कि पुनावृत्ति होने से पुरानी यादें जाग उठती हैं , और उसका रूप एकदम बदल जाता है और आवाज़ भारी हो जाने के कारन लोग यह सोचने लगते हैं कि इसको किसी दूसरी आत्मा ने वश में कर लिया है , या कोई भयानक प्रेत इसके शरीर में प्रवेश कर गया है । परन्तु यह सब सत्य ना जानने का ही परिणाम है कि लोग भूत प्रेत, डायन, चुड़ैल,परी आदि का साया समझ भय खाते रहते हैं । पृथ्वी के सभी जीवों में यह बात देखी जाती है कि जिस विषय का अनुभव उनको होता है उस विषय कि जब पुनावृत्ति का आभास जब उन्हें होता है तब उनकी बुद्धि उस विषय में सतर्क रहती है । और देखा गया है कि पृथ्वी का हर जीव मृत्यु नामक दुख से भयभीत होता है और बचने के लिये यत्न करता है , वह उस स्थान से दूर चला जाना चाहता है जहाँ पर मृत्यु की आशंका है , उसे लगता है कि कहीं और चले जाने से उसका इस मृत्यु दुख से छुटकारा हो जायेगा । अब यहाँ समझने वाली बात यह है कि किसने उस जीव को यह प्रेरणा दी यह सब करने कि? तो यही तथ्य सामने आता है कि यह सब उसके पूर्व मृत्यु के अनुभव के कारण ही है, क्योंकि मृत्यु का अनुभव उसे पूर्व जन्म में हो चुका है जिस कारण वह अनुभव का ज्ञान जो उसकी सूक्ष्म बुद्धि में छुपा था वह उस विषय कि पुनावृत्ति के होने से दुबारा जाग्रत हो गया है । जैसा कि पहले भी कहा गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की हुआ करती है , तो सूक्ष्म शरीर तो वही है जो पहले था और अब भी वही है । जिस कारण यह सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध है http://www.parami.org/buddhistanswers/when_we_die.htm पुनर्जन्म वेदों में :
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| Rebirth in Vedas |
अधिक जानने के लिए यहाँ जायें : http://agniveer.com/why-rebirth-is-necessary-hi/
आधुनिक विज्ञान का मत : यधपि पुनर्जन्म का सत्यापन विज्ञानं द्वारा या उपकरणों, यंत्रों आदि द्वारा किया जाना समभव तो नही परन्तु इसे Einstein के इस सिधांत द्वारा समझा जा सकता है :
Energy cannot be created or destroyed, it can only be changed from one form to another
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है
As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new. – Bhagavad-Gita 2.22
Einstein ने उपरोक्त दोनों श्लोकों को मिला दिया तथा Soul को energy कहा बाकि सारा ज्यों का त्यों चेप दिया और अपना सिधांत कह कर जगत में ढंढ़ोंरा पिटा ।“When I read the Bhagavad-Gita and reflect about how God created this universe everything else seems so superfluous.” ― Albert Einstein
खेर मुद्दे पर आते है । ऐसे कई प्रमाण अवश्य है जिनमे लोगो को अपने पूर्व जन्म का आंशिक से लेकर पूर्ण स्मरण हो आया ।
इससे सम्बंधित दुनियां भर की जानकारी इन्टरनेट पर भरी पड़ी है किन्तु हम ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई जाँच पड़ताल देखते है जिस पर मुझे तो पूर्ण विश्वास है । इसी प्रकार के एक केस का अध्ययन किया वेद विज्ञानं मंडल, पुणे के डॉ० पद्माकर विष्णु वार्तक जी ने ।
वार्तक जी ऐसा केस देख कर आश्चर्य चकित हुए इसी कारण उन्होंने इसे अपने पाठकों से बाँटने के लिए अपनी साईट पर भी डाला । वार्तक जी के इस केस में एक 4.5 वर्ष के बालक को अपने पूर्व जन्म (10 वर्ष पूर्व मृत्यु का ) पूर्ण रूप से स्मरण हो गया तथा उनसे अपने पूर्व जन्म के माता पिता को पहचान लिया तथा अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां दी । वर्तक जी ने इस केस को सत्यता की कसोटी पर पूर्ण रूप से खरा उतरने के बाद सब के समक्ष प्रस्तुत किया और हेरान कर देने वाली घटना और हुई जब उस बालक ने वो घटनाये भी बताई जो उसके पूर्व शरीर की मृत्यु के बाद उसके परिवार में घटित हुई । इससे ये भी सिद्ध है की आत्मा देखने में भी सक्षम होती है ।
Presence of Soul who can see even after death is proved by this case. It is also proved that memories can be preserved and transferred without brain. कृपया पूरा लेख यहाँ पढ़े : https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/rebrith
गूगल पर rebirth scientific evidence लिखे और देखें इस प्रकार हमारे बुजुर्गों द्वारा कही बात “84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए” सिद्ध होती है !!!
TIME TO BACK TO VEDAS वेदों की ओर लौटो । सत्यम् शिवम् सुन्दरम्




