इस नयी शताब्दी मैं भारत मैं कुछ ऐसे सामाजिक परिवर्तन जाने अनजाने में आ सकते हैं जिनका दूरगामी प्रभाव समाज के लिए अच्छा नहीं होगा .
पिछली शताब्दी ने संयुक्त परिवार का अंत देखा .बूढ़े माता पिता का साथ रहना कम होते देखा व् परिवार मैं बूढों का आदर विशेषतः सास का आदर बहुत कम होते देखा . पति परमेश्वर से मात्र पति हो गया वह भी विभिन्न नारिओंमुख कानूनों की जकड मैं .परिवार अब पति पत्नी व् बच्चों तक सिमट गया है और इसमें संयुक्त परिवार के किसी और के लिए त्याग व् बलिदान करने की क्षमता अब नहीं बची है . तलाक अब कोई सामाजिक अभिशाप नहीं बचा बल्कि एक व्यक्तिगत फैसला मात्र रह गया है .इन परिवर्तनों के दो कारण थे .पहला था बढ़ता भौतिकवाद व् दूसरा नारी की घटती सहन शक्ति . अब नारी परिवार व् पति के लिए बलिदान नहीं होना चाहती . वह माँ के रूप मैं बच्चों से तो लगाव अब भी करती है परन्तु पुरुष का अब पहले वाला वर्चस्व नहीं बचा इसलिए संयुक्त परिवार नारी की मर्ज़ी या सहनशक्ति पर निर्भर हो गया है. नारी हमेशा से सुख सुविधाओं की तरफ आकर्षित रहती थी अब यह एक अधिकार बन गया है .
इसने पश्चिम मैं कई नयी प्रथाओं को जन्म दिया है जैसे घर का reverse mortgage . अब माँ बाप घर को बुढ़ापे मैं गिरवी रख कर बैंक से क़र्ज़ लेते हैं व् दोनों के मरने पर बैंक घर बेच कर पैसा वसूल कर लेता है . समर्थ के लिए तो कोई उपाय हैं गरीब बूढ़े माँ बाप अब कठिनाई मैं आ गए हैं .
परन्तु यह सब तो पिछली शताब्दी की कहानियां है .
नयी शताब्दी तो नए आयाम बनाएगी .
भारत मैं भी अब विवाह की आवश्यकता पर प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया है. यह शुरू तो पहले गुजरात मैं मैत्री करार के रूप मैं हुआ था जिसका उद्देश्य तलाक के संपत्ति विभाजन के इकतरफा कानूनों से बचना था . परन्तु वास्तव मैं यह परन्तु यह पति पत्नी के शारीरिक संबंधों को कोई धर्म नहीं बल्कि एक समय की जरूरत मानने का प्रारंभ था . इसने इस विवाह रहित शारीरिक सम्बन्ध से एक सामाजिक बुराई की धारणा को अलग कर दिया . परन्तु मैत्री करार बहुत कम थे इसलिए इन पर ज्यादा चर्चा नहीं हुयी . फिर पश्चिम मैं ‘ Live In ‘ का बहुत प्रचलन हुआ जिसमें पति पत्नी कोई भी जिम्मेवारी से मुक्त थे . यदि साथ पसंद आया तो ठीक है नहीं तो दोनों अपने रास्ते अलग चुनने के लिए स्वतंत्र थे . मुश्किल थी तो बच्चों के जन्म व् उन पर अधिकार की जिसे न्यायलय तय करता है . फेसबुक के मालिक मार्क जुबेर ने तो अपने शादी के करार मैं सम्बन्ध विच्छेद होने का प्रावधान भी कर लिया है. यानि शादी के समय तलाक की शर्तें भी तय कर लीं हैं . मुसलमानों मैं तो यह पहले से ‘ मेहर ‘ के रूप मैं प्रचलित था.
इसका अगला चरण सिंगल यानि एकल माँ या बाप का का हुआ जिसमें सिर्फ एक माता या पिता बच्चे की देख भाल करते हैं .
इसका अगला कदम तो स्वाभाविक था जिसमें नारी व् पुरुष संतान हीन जीवन पसंद करने लगे व् धीरे धीरे समस्त पाश्चात्य जगत मैं आबादी कम होनी शुरू हो गयी. इससे युरोपे युराबिया बनाने की स्थिति मैं आ गया . सिंगापुर का भी यही हाल है .
नारी भौतिकवाद मैं और आगे बढ़ी . उसने शादी की आवश्यकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया . हमारे देश मैं अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने बच्चे गोद लेकर एकाकी जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया. नयी टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक ने नारी को एक और सुविधा दी . वह बैंक से शुक्राणु खरीद कर अपना बच्चा पैदा कर सकती है . पुरुष भी किराये की कोख ले कर अपने शुक्राणु से किसी स्त्री का अंडा खरीद कर अपना बच्चा पैदा कर सकता है .
तो अब हम किसे ज्यादा आवश्यक मानने लगे ?
जीवन जो पहले एक सामाजिक जिम्मेवारियों के निर्वाह का माध्यम मात्र था अब मात्र भौतिक सुख का आधार बन गया है .
मैंने विदेशों में एकाकी रह रही कई नारियों से पूछा तो पाया की वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पारिवारिक बंधनों से अधिक महत्त्व देती हैं .
अफ्रीका मैं पुरुष इस तरह की सोच मैं बहुत देर से शादी करते हैं . अब भारत मैं भी करण जोहर जैसे अभिनेताओं ने इस परंपरा की पुरुषों मैं शुरुआत कर दी है .दहेज़ व् अनेकों नारीओं के लिए एक तरफ़ा कानूनों से अब इसका भी प्रचलन बढेगा . समलैंगिक विवाह को विवाह कहने का औचित्य नहीं समझ आता . उस विकृति या रिश्ते को कोई और नाम क्यों नहीं दे सकते .
परन्तु इस सब में एक बात सब मैं है की जीवन एक सुख सुविधा का पर्याय बन गया है . वह पुराना पुरुष जो घिस घिस कर जीवन बिताता था पर छोटे भाइयों व् बहन को पाल लेता था और पत्नी जीवन संगिनी बन यह सहज स्वीकार कर लेती थी अब समाप्त हो जायेगा . मनुष्य ने पहले समाज के बंधनों से मुक्ति पायी अब वह संतान के दायित्व से भी बच रहा है.
क्या भारत के लिए यह अच्छा है ?
मेरे विचार मैं देश मैं इस पर नारी को वोट बैंक मान कर नहीं बल्कि समाज की एक व्यापक व्यवस्था को ध्यान मैं रख कर विचार करने की आवश्य्कता है . विवाह की उपयोगिता सर्व विदित है . उसे कानूनों से मुक्त कर फिर से सामाजिक मूल्यों से बंधने की ज़रुरत है . स्वस्थ समाज आज भी शाश्वत मूल्यों पर ही चल सकता है .इसमें धार्मिक संस्थानों का महत्व बढ़ता है हालाँकि चर्च पश्चिम के पतन को नहीं रोक पाया .
राजनीती को विवाह से तुरंत दूर करने की आवश्यता है .
इसे बचने के लिए चार या पांच तरह के संबंधों का प्रबंध होना चाहिए . इनमें संयुक्त परिवार की जिम्मेवारी , नारी की काम करने व् घर के काम का व् दोनों की आय का बंटवारा , बच्चों को पालने की जिम्मेवारी , पुरानी हिन्दू पारंपरिक शादी , संपत्ति का बंटवारा, पूर्ण स्वतंत्रता इत्यादि चुनने का अधिकार शुरू मैं होना चाहिए व् सम्बन्ध विच्छेद की अवस्था मैं शुरू मैं किये गए समझौतों का महत्व होना चाहिए .
यदि हम ने समय रहते दूरगामी विचार नहीं किया तो भारत भी पश्चिम की तरह अपनी सबसे महत्वपूर्ण धरोहर खो देगा जो की हमारी परिवार की शक्ति है .