भिक्षुक – निराला की कविता

वह आता– दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक,

मुट्ठी भर दाने को ‌‌- भूख मिटाने को

मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-

दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,

यें से वे मलते हुए पेट को चलते,

और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।

भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?

— घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।

चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,

और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!

 

 

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