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आजमगढ़ : हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी ?

 

आजमगढ़ : हम कौन  थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी ?

राजीव कुमार उपाध्याय

अमित शाह गुजरात से हैं इस लिए शायद उन्होंने मैथिली शरण गुप्त की यह कविता नहीं पढ़ी हो

हम कौन  थे , क्या हो गए और क्या होंगे अभी

आओ मिल करके विचारें आज यह हम सभी

आजमगढ़ पर अमित शाह की टिप्पिनी बुरी लग सकती है. क्योंकि आज़मगढ़ का एक गर्व योग्य इतिहास है . इस लिए अपने को मात्र आतंक का गढ़ कहे जाने से वहां के निवासियों का तिलमिलाना उचित है . परन्तु जैसे अपने को सोने की चिड़िया कह कर भारत अपने गुलामी के इतिहास की वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ सकता इसी तरह आज़म गढ़ अपने स्वर्णिम इतिहास को याद कर आज की वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ सकता.

आजाम गढ़ कभी कौशल प्रदेश का हिस्सा होता था . गौतम बुद्ध के युग मैं यह भारत के चार प्रमुख राज्यों का हिस्सा था . ११९२ के पृथ्वीराज के तराई  युद्ध के पश्चात यह मुस्लिम आक्रान्ताओं के कब्ज़े मैं आ गया. वर्तमान शहर १६६५ मैं आज़म खान के नाम पर बसा है . पास मैं ही उसके भाई अजमत खान का किला भी बना था .यहाँ की मुख्य इस्लामिक पहचान शिबली कॉलेज है जो इस्लामिक बरेलवी शाखा का उतना ही बड़ा गढ़ है जितना देव बंद . इसके अलावा यहाँ दो लड़कों के डिग्री कॉलेज ,एक लड़कियों का डिग्री कॉलेज , एक एग्रीकल्चर व् होमियोपैथी का कॉलेज , एक अस्पताल , एक पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज है . शिबली नेशनल डिग्री कॉलेज अलीगढ विश्व विद्यालय के समकक्ष ही विद्या का केंद्र है . शिबली स्वयं सर सैय्यद  अहमद खान व् पंडित मदन मोहन मालवीय की तरह ही शिक्षा को समर्पित थे व् बहुत विद्वान् व् राष्ट्र भक्त व्यक्ती थे . इससे साफ़ दीख जाता है की आज़म गढ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश मैं शिक्षा एक बड़ा गढ़ है .

१८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम मैं आज़म गढ़ की सैनिकों ने बहुत बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.१९२० मैं महात्मा गाँधी के आंदोलनों का विशेषतः साइमन कमीशन के विरोध का यहाँ व्यापक समर्थन मिला .१८९३ के गौ रक्षा अभियान के अतिरिक्त यहाँ कभी हिन्दू मुस्लिम दंगे भी नहीं हुए. भारत छोडो आन्दोलन मैं आज़म गढ़ ने पूरा हिस्सा लिया और अंग्रेजों ने इस शहर पर एक लाख रूपये का जुर्माना वसूला. १९७२ मैं ४७२ व्यक्तियों को यहाँ ताम्र पात्र मिला .

हिंदी के दो प्रचंड विद्वान् राहुल संस्कृतायन  व् अयोध्या सिंह हरी औध यहीं के निवासी थे .उर्दू के प्रसिद्द शायर कैफ़ी आज़मी भी यहाँ के निवासी थे . आज़म गढ़ ने बहुत संसद सदस्य दिए हैं .shibli college

इस लिए जब अमित शाह चुनावी सभा मैं जब आज़म गढ़ को आतंक का गढ़ बताते हैं तो यहाँ के निवासियों का क्रोधित होना स्वाभिक ही है .

परन्तु अमित शाह ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिसमें झूठ या असत्य हो .

पिछले दस वर्षों की वास्तविकता यह है कि  आज़म गढ़ से हर बड़े आतंकी हमलावरों के तार जुड़े मिल जाते हैं . इसलिए भारतवासियों की दृष्टि से आज़म गढ़ इस समय सिर्फ आतंक का दूसरा पर्याय बन गया है .

आतंक की नींव आज़म गढ़ मैं १९८५ मैं पडी जब आज़म गौरी ( आन्ध्र प्रदेश ) व् अब्दुल करीम टुंडा ने यहाँ लश्करे तैबा का सेल बनाया . गौरी , अंसारी व् टुंडा ने बम्बई मैं १९९३ मैं भयंकर धमाके किये व् आज़म गढ़ का नाम आतंकी शहरों मैं जोड़ दिया. अबू सालेम दूसरा कुख्यात नाम था जिसने आज़म गढ़ की आतंकी पहचान को और पक्का कर दिया . फिर गुजरात के बारह धमाकों के तार आज़म गढ़ से जुड़ गए . उसके बाद बटाला काण्ड ने फिर आज़म गढ़ को सुर्ख़ियों मैं ला दिया क्योंकि तीनों आतंकी लड़के आज़म गढ़ के ही थे हालाँकि इस पर राजनीती होती रहती है मुख्तार अन्सारी कुख्यात डॉन भी यहाँ से पास ही का है.

इस एक के बाद एक सब बड़ी आतंकी घटनाओं मैं कहीं न कहीं से आज़म गढ़ का नाम जुड़ जाता है . तो फिर अमित शाह  ने सिर्फ सच बोलने का गुनाह ही तो किया है जो डर से और लोग नहीं बोल पाते हैं !

यह चुनाव तो १६ मई के बाद इतिहास बन जायेंगे पर आजमगढ़ की आतंकी पहचान कहीं नहीं जाने वाली . अन्तंतः जैसे आज पाकिस्तानी अपने को विश्व मैं कहीं भी पाकिस्तानी कहने मैं झिझकते हैं वैसे ही आज़म गढ़ के निवासी होना एक कुख्यात बिल्ला हो जाएगा जो कहीं भी अच्छी नौकरी या व्यापार चलाने मैं बाधक हो जाएगा.

इस लिए अच्छा होगा की आज़म गढ़ के निवासी इस समस्या का समाधान सच्चाई व् इमानदारी से ढूंढें . राज नेताओं की बातों मैं फंसने से स्थिति और जटिल हो जायेगी . वह इस की जड़ गरीबी और बेरोज़गारी मैं ढूढने लगेंगे . यदि गरीबी या बेरोजगारी ही आतंकवाद को जन्मती तो सारे बिहार , उत्तरांचल इत्यादि को आतंकी हो जाना चाहिए था. या फिर उसे बाबरी मस्जिद से जोड़ देंगे .उसे भी तो बीस वर्ष हो गए और वह तो अयोध्या में  थी . शिक्षित  युवक तो आजम गढ़ के  बेरोजगार हैं  कभी अलीगढ को टक्कर देने वाला शिबली कॉलेज तो आज आतंकी अड्डा माना जा रहा है .

समस्या इस्लाम के बिगड़े स्वरुप मैं व्याख्या से उपजी है जिसमें  आतंकवाद को जिहाद से जोड़ा जाता है और इसका समाधान भी शिबली से ही गहन चिन्तन से निकलेगा .

 

क्या आज़म गढ़ इस गहन चिंतन के लिए तैयार है ?

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