अब एक बात तो पक्की है की चाहे मोदी की सरकार बने या नहीं पर देश जाग चुका है .जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय व् कुछ बंगाल के झोलेवालों सरीखे लोगों की छद्म धर्म निरपेक्षता व् वैचारिक आतंकवाद के युग का अंत सोलह मई को अवश्य हो जाएगा .
परन्तु यह पचास साल के वैचारिक आतंकवाद के दौर ने देश व् उसकी संस्कृति का हमेशा के लिए बहुत नुक्सान कर दिया .इस देश की अस्सी प्रतिशत जनता अपने अस्तित्व व् इतिहास पर गौरव नहीं अपितु शर्म करने लगी है.अमरीका या युरोप का इसाई अपने को इसाई कहने मैं गर्व महसूस करता है .पुरे इस्लामी देशों मैं तो इस्लाम के अलावा बाकि सब अधिकारिक रूप से काफिर हैं . वहां का निवासी अपने को गर्व से मुसलमान कहता है.थाईलैंड या श्री लंका या बर्मा / म्य्नामार अपने को गर्व से बौद्ध बताते हैं. यह देश के झोलेवालों का अक्षम्य अपराध है की उन्होंने पिछले साथ वर्षों मैं देश को छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उनहोंने हिन्दू धर्म व् हिन्दूओं के विरोध को सरकारी प्रश्रय व् मान दिला कर आज देश के युवाओं को अपनी विरासत के ज्ञान से वंचित कर दिया है .आज विश्व मैं केवल भारत मैं ही अस्सी प्रतिशत जनता जिस धर्म की रक्षा पर कभी प्राण निछावर करती थी, जिसने राणा प्रताप , शिवाजी , छत्रसाल ,गुरु अर्जुन सिंह जैसे वीर दिए , उस देश का युवक अपने को हिन्दू कहने से डरता है .बल्कि हिन्दू चिन्ह या बात होते ही उसे एक अपराध बोध होने लगता है . स्वंत्रता के बाद से हिन्दुओं का धीरी धीरे दमन शरू हुआ जो पिछले दस वर्षों मैं अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया.
अंततः इस देश की विडम्बना है की अस्सी प्रतिशत हिसंत स्टेफेन का प्रिंसिपल खुले आम बी जे पी को वोट न देने के लिए कहता है . आंध्र व् तमिलनाडु मैं लाखों लोगों को पिछले दस वर्ष मैं इसाई बना दिया. तिरुपति केपैसे से जेरुसलम की तीर्थ येरा शुरू कर दी गयी .हि न्दू आबादी वाले देश के प्रधान मंत्री घोषणा करते हैं की देश के संसाधनों पर पहले अल्पन्खाकों का अधिकार है.गरीब हिन्दुओं की किसी को परवाह नहीं पर जैन , बुद्ध , ईसाई , सिख बाकि सब को एक हिन्दू विरोधी वोट बैंक बनाने की कोशिश की .उन्हें हज़ारों करोड़ों रूपये की छात्रवृतियां बांटी गयीं और गरीब हिन्दू सिर्फ मुंह बाये देखता रहा . हमारे साधू संतो को प्रताड़ित किया गया और हम चुपचाप सहते रहे .कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे .
विश्व मैं कहीं अल्पसंख्यकों को को बहु संख्यकों से ऊपर नहीं रखा जाता . ज्यादा से ज्यादा उनके बराबर रखा जाता है .भारत मैं पिछले साठ वर्षों मैं पाठ्य पुस्तकों से हिन्दू त्योहारों व् महापुरुषों के वर्णन निकाल दिए गए . हि.न्दू त्योहारों की छुटियाँ कम कर दी गयीं .हिन्दू अपने देश मैं अपना दमन सहते रहे .
देश के इस सांस्कृतिक पतन मैं जिन लोगों का विशेषतः हाथ था वह अपने को बुद्धिजीवी बता कर बुद्धि की देवी माँ सरस्वती का कितना अपमान कर रहे हैं यह उन्हें भान नहीं है .
समय आ गया है की हिन्दुओं के अपमान व् पतन के लिए जिम्मेवार इन छद्म प्रपंची इतिहासकारों , लेखकों , चैनल के अन्करों को इतिहास के कूड़ा घ र मैं फेंक दिया जाय .