सिबल दंश : वार्षिक परीक्षा वापिस कर स्कूल शिक्षा को पुनः ढर्रे पर लाओ
स्मृति ईरानी जी की शिक्षा को ले कर उठे विवाद ने इसे दबा दिया की गत वर्षों मैं कपिल सिबल के दंश से ग्रसित भारत की स्कूली शिक्षा तहस नहस हो गयी है . उस का पुनरवलोकन नए शिक्षा मंत्री की प्राथमिकता होनी कहिये . वैसे भी गणित व् सामान्य ज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षाओं मैं भारत कहीं नहीं है .चीनी इस मैं भी कहीं आगे हैं जब की गणि…त का ज्ञान हमारी ताकत था . तुलसी ने कहा था की ‘ भय बिन प्रीत न होत गोसाईं ‘ .छात्रों के लिए परीक्षा का भय अत्यंत आवश्यक है . हम जब आई आई टी कानपूर मैं पढ़ते थे( १९६७) तो क्विज की तलवार सदा लटकती रहती थी जो कभी भी बिना बताये हो सकता था . इसलिए छात्र साल के आखिर मैं रट्टा लगा के पास नहीं हो सकते थे . और आज की पढाई आज ही समझने के लिए बाध्य होते थे . पढाई का बोझ इतना था की कुछ छात्र आत्महत्या तक कर लेते थे . खेलने के लिए बड़ी मुश्किल से समय निकलता था .डिप्टी डायरेक्टर का अत्यंत कठोर शासन था . आज जो हमारी अमरीका मैं धाक है और जो माइक्रोसॉफ्ट या नासा मैं भारतीय भरे हुए हैं वह इस कठोरता के के करण ही हैं . मैं पढ़ाई को आत्म ह्त्या तक धकका देने की वकालत नहीं कर रहा हूँ परन्तु परीक्षा को हटा कर जो हमारी स्कूली शिक्षा का सत्यानाश हुआ है उसके तुरंत पुनरावलोकन की मांग कर रहा हूँ .शिक्षक का कठोर होना भी आवश्यक होता है . हमारी गणित की कुशलता को जो भास्कराचार्य के युग से स्थापित है किसी कपिल सिबल के दंश से समाप्त नहीं होने दिया जा सकता .
इसी तरह विश्व के लगभग सबसे ज्यादा स्कूलो व विश्वविद्यालयों वाला देश उच्च स्तर की पाठ्य पुस्तकें क्यों नहीं लिख सकता . हमारी कितनी पुस्तकें इकोनोमिक्स के समुएल्सन की पुस्तक के समकक्ष है जो सौ देशों मैं पढाई जाती हैं .ती है . हमारी पी एच डी विश्व मैं सबसे कम पढी जाती है . हमारी तकनिकी शिक्षा मैं व्यवहारिक ज्ञान बहुत कम है .सिर्फ खाना पूरी की जाती है .यथार्थ स्थिति मैं कुछ अपवाद अवश्य हैं परन्तु वास्तव मैं हमारी शिक्षा बहुत निम्न स्तर की हो गयी है . इसे सुधारने के लिए कठिन निर्णयों की आवश्यकता होती है . कपिल सिबल के सब को खुश करने वाले परिक्षा हटाओ फैसलों से देश का बहुत नुक्सान हुआ है . आशा है की स्मृति इरानी जी इस स्थिति से देश की शिक्षा को जरूर उबारेंगी .
राजीव उपाध्याय पूर्व महा प्रबंधक रेलवे
स्मृति ईरानी जी की शिक्षा को ले कर उठे विवाद ने इसे दबा दिया की गत वर्षों मैं कपिल सिबल के दंश से ग्रसित भारत की स्कूली शिक्षा तहस नहस हो गयी है . उस का पुनरवलोकन नए शिक्षा मंत्री की प्राथमिकता होनी कहिये . वैसे भी गणित व् सामान्य ज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षाओं मैं भारत कहीं नहीं है .चीनी इस मैं भी कहीं आगे हैं जब की गणि…त का ज्ञान हमारी ताकत था . तुलसी ने कहा था की ‘ भय बिन प्रीत न होत गोसाईं ‘ .छात्रों के लिए परीक्षा का भय अत्यंत आवश्यक है . हम जब आई आई टी कानपूर मैं पढ़ते थे( १९६७) तो क्विज की तलवार सदा लटकती रहती थी जो कभी भी बिना बताये हो सकता था . इसलिए छात्र साल के आखिर मैं रट्टा लगा के पास नहीं हो सकते थे . और आज की पढाई आज ही समझने के लिए बाध्य होते थे . पढाई का बोझ इतना था की कुछ छात्र आत्महत्या तक कर लेते थे . खेलने के लिए बड़ी मुश्किल से समय निकलता था .डिप्टी डायरेक्टर का अत्यंत कठोर शासन था . आज जो हमारी अमरीका मैं धाक है और जो माइक्रोसॉफ्ट या नासा मैं भारतीय भरे हुए हैं वह इस कठोरता के के करण ही हैं . मैं पढ़ाई को आत्म ह्त्या तक धकका देने की वकालत नहीं कर रहा हूँ परन्तु परीक्षा को हटा कर जो हमारी स्कूली शिक्षा का सत्यानाश हुआ है उसके तुरंत पुनरावलोकन की मांग कर रहा हूँ .शिक्षक का कठोर होना भी आवश्यक होता है . हमारी गणित की कुशलता को जो भास्कराचार्य के युग से स्थापित है किसी कपिल सिबल के दंश से समाप्त नहीं होने दिया जा सकता .
इसी तरह विश्व के लगभग सबसे ज्यादा स्कूलो व विश्वविद्यालयों वाला देश उच्च स्तर की पाठ्य पुस्तकें क्यों नहीं लिख सकता . हमारी कितनी पुस्तकें इकोनोमिक्स के समुएल्सन की पुस्तक के समकक्ष है जो सौ देशों मैं पढाई जाती हैं .ती है . हमारी पी एच डी विश्व मैं सबसे कम पढी जाती है . हमारी तकनिकी शिक्षा मैं व्यवहारिक ज्ञान बहुत कम है .सिर्फ खाना पूरी की जाती है .यथार्थ स्थिति मैं कुछ अपवाद अवश्य हैं परन्तु वास्तव मैं हमारी शिक्षा बहुत निम्न स्तर की हो गयी है . इसे सुधारने के लिए कठिन निर्णयों की आवश्यकता होती है . कपिल सिबल के सब को खुश करने वाले परिक्षा हटाओ फैसलों से देश का बहुत नुक्सान हुआ है . आशा है की स्मृति इरानी जी इस स्थिति से देश की शिक्षा को जरूर उबारेंगी .
राजीव उपाध्याय पूर्व महा प्रबंधक रेलवे