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कलंक से बचना चाहते हैं तो न करें चंद्र दर्शन आज जानें श्री कृष्ण कैसे बने थे इसका ग्रास : 29.8.14

कलंक से बचना चाहते हैं तो न करें चंद्र दर्शन आज जानें श्री कृष्ण कैसे बने थे इसका ग्रास : 29.8.14

krishna shyamantak maniशास्त्रों  में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को कलंक चतुर्थी कहकर संबोधित किया गया है।  इस  दिन चंद्रमा का दर्शन करना निषेध माना गया है क्योंकि इस गणेश चतुर्थी पर  चंद्रमा के दर्शन करने से किसी को भी कलंक लग सकता है। गणेश पुराण में  वर्णित अभिशप्त चंद्रमा की कथा के अनुसार गणेश जी द्वारा चंद्रमा को  श्रापित किया गया है।

चंद्रमा क्यों हुए श्रापित: पौराणिक कथा के  अनुसार एक दिन कैलाश पर ब्रह्म देव महादेव के दर्शन हेतु गए तभी वहां  देवर्षि नारद ने प्रकट होकर अतिस्वादिष्ट फल भगवान शंकर को अर्पित किया।  तभी कार्तिकेय व गणेश दोनों महादेव से उस फल की मांग करने लगे। तब ब्रह्म  देव ने महादेव को परामर्श देते हुए कहा के फल को छोटे षडानन अर्थात  कार्तिकेय को दे दें। अत: महादेव ने वह फल कार्तिकेय को दे दिया। इससे  गजानन ब्रह्म देव पर कुपित होकर उनकी सृष्टि रचना के कार्य में विध्न ड़ालने  लगे। गणपति के उग्र रूप के कारण ब्रह्म देव भयभीत हो गए। इस दृश्य को  देखकर चंद्र देव हंस पड़े। चंद्रमा की हंसी सुन कर गणेश जी क्रोधित हो उठे  तथा उन्होंने चंद्र को श्राप दे दिया। श्राप के अनुसार चंद्र देव किसी को  देखने के योग्य नहीं रहे तथा किसी द्वारा देखे जाने पर वह व्यक्ति पाप का  भागी हो जाता। श्रापित चंद्र ने बारह वर्ष तक गणेश जी का तप किया जिससे  गणपति जी ने प्रसन्न होकर चंद्र देव के श्राप को मंद कर दिया तथा मंद श्राप  के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी जो व्यक्ति चंद्रमा को देखता है, वह  निश्चय ही अभिशाप का भागी होता है तथा उस पर मिथ्यारोपण लगते हैं।

श्री  कृष्ण भगवान पर भी लगा था मिथ्यारोप: भगवान श्री कृष्ण पर द्वारकापुरी में  सूर्य भक्त सत्राजित ने स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगाया था। स्वयं  श्रीकृष्ण ने भागवत-10/56/31 में इसे “मिथ्याभिशाप” कहकर मिथ्या कलंक का ही  संकेत दिया था। देवर्षि नारद ने भी श्रीकृष्ण को भाद्रपद शुक्लपक्ष की  चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र दर्शन करने के फलस्वरूप व्यर्थ कलंक लगने की बात  कही थी। नारद पुराण के अनुसार ये श्लोक इस प्रकार है – “त्वया भाद्रपदे  शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम्। कृतं येनेह भगवन्! वृथा शापमवाप्तवान्”।

स्कंदपुराण  के अनुसार: स्कंदपुराण में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के  शुक्लपक्ष के चंद्र दर्शन मैंने गोखुर के जल में किया जिसके फलस्वरूप मुझ  पर मणि की चोरी का कलंक लगा “मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चंद्रदर्शनं  गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता”।

रामचरितमानस के अनुसार: रामचरितमानस के सुंदरकांड में गोस्वामी जी के अनुसार “सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चौथि के चंद की नाईं”

अर्थात भादवा की शुक्लचतुर्थी के चंद्रदर्शन से लगे कलंक का सत्यता से कोई संबंध नहीं होता परंतु इसका दर्शन त्याज्य है।

विष्णुपुराण  के अनुसार: भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रदर्शन से कलंक लगने के शमन हेतु  विष्णुपुराण में वर्णित स्यमंतक मणि का उल्लेख है जिसके सुनने या पढऩे से  यह दोष समाप्त होता है। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध में  57वें अध्याय में है।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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