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मुगलिस्तान” और “लाल गलियारा” मिलकर तोड़ेंगे भारत को…

मुगलिस्तान” और “लाल गलियारा” मिलकर तोड़ेंगे भारत को…

Mugalistan and Red Corridor – Threat to Indian Security http://hindutvawadikattar1.wordpress.com/2013/07/05

mugalistan mapगत दिनों असम में हुए उपद्रव और दंगों के दौरान भीड़ द्वारा सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराने की घटनायें हुईं। एक पाकिस्तानी झंडा तो 2-3 दिनों तक एक लैम्प पोस्ट पर लहराता दिखाई दिया था, जिसकी तस्वीरें नेट पर प्रसारित भी हुई थीं। असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने हमेशा की तरह कांग्रेसी (यानी नकली सेकुलर) तरीके से देश को बताने की कोशिश की, कि यह कोई खास बात नहीं है। उसी के बाद असम में भीषण बम-विस्फ़ोट हुए और कई लोग मारे गये। बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण असम, त्रिपुरा और मेघालय के कई इलाकों में स्थिति गम्भीर से भी ज्यादा खतरनाक हो चुकी है, असम अब कश्मीर की राह पर चल पड़ा है, लेकिन जब भी इस प्रकार के कोई आँकड़े पेश करके सिद्ध करने की कोशिश की जाती है तत्काल मामले को या तो “संघी एजेण्डा” कहकर या फ़िर हल्के-फ़ुल्के तौर पर लेकर दबाने की कोशिश तेज हो जाती है, और अब कुछ मूर्ख तो “हिन्दू आतंकवादी” नाम की अवधारणा भी लेकर आ गये हैं। ओसामा बिन लादेन के एक वीडियो में कश्मीर के साथ असम का भी विशेष उल्लेख है (देखें यह समाचार), लेकिन भारत की सरकार, असम की कांग्रेस सरकार और पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार खतरनाक नींद और मुगालते में खोई हुई है इसके प्रमाण लगातार हमें मिलते रहते हैं। विगत 5 साल से “मुगलिस्तान” नाम की नई देशद्रोही अवधारणा मूर्तरूप लेती जा रही है, फ़िर भी सभी राजनैतिक पार्टियाँ गहरी निद्रा में तल्लीन हैं। इस “मुगलिस्तान” की अवधारणा पाकिस्तान की ISI और बांग्लादेश की इस्लामी सरकार ने मिलकर तैयार की है। इस विस्तृत अवधारणा को ओसामा बिन लादेन का फ़िलहाल नैतिक समर्थन हासिल है, तथा दाऊद इब्राहिम जो कि पाकिस्तान के आकाओं की दया पर वहाँ डेरा डाले हुए है उसका आर्थिक और शारीरिक समर्थन मिला हुआ है। विभिन्न वेबसाईटों पर अलग-अलग लेखकों ने इस कथित “मुगलिस्तान” के बारे लिखा हुआ है। जिसमें से (मुख्य वेबसाईट यह है) यह आँकड़े किसी “धर्म-विशेष” के खिलाफ़ नहीं हैं, बल्कि देश पर मंडरा रहे खतरे को सबके सामने रखने की एक कोशिश भर है। “नकली कांग्रेसी सेकुलरों” को तो इन आँकड़ों से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन जो भी देशप्रेमी और हिन्दू हित की बात करने वाले लोग हैं उन्हें समय रहते जाग जाना होगा, वरना…।यह एक ऐतिहासिक तथ्य और सत्य है कि जिस भी क्षेत्र, इलाके

 

या देश विशेष में मुस्लिमों की आबादी बहुसंख्यक हुई है या पहले से रही है, वहाँ अन्य धर्मों को पनपने का कोई मौका नहीं होता। इसका सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि भारत में गरीबों की सेवा के नाम पर ढिंढोरा पीटने वाली मिशनरी संस्थायें किसी इस्लामी देश में तो बहुत दूर की बात है, भारत में ही उन इलाकों में “सेवा”(???) करने नहीं जातीं, जिन जिलों या मोहल्ले में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम पिछड़े, गरीब और अशिक्षित नहीं हैं? और उन्हें मिशनरी सेवा की जरूरत नहीं है?… बिलकुल है, और सेवा करना भी चाहिये, मुस्लिम बस्तियों में विभिन्न शिक्षा प्रकल्प चलाने चाहिये, लेकिन इससे मिशनरी का “असली” मकसद हल नहीं होता, फ़िर भला वे मुस्लिम बहुल इलाकों में सेवा क्यों करने लगीं। हिन्दू-दलित आदिवासियों को बरगलाना आसान होता है, क्योंकि जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक होता है वहाँ धार्मिक स्वतंत्रता होती है, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है, लोकतन्त्र होता है… लेकिन जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक होता है वहाँ…………… तो इस बात को अलग से साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि, धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ाकर और बांग्लादेश के रास्ते घुसपैठ बढ़ाकर भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में मुस्लिम बहुल जिले बढ़ते जा रहे हैं तब देश के सामने क्या चुनौतियाँ हैं।   गत कुछ सालों से एक नाम हवा में तैर रहा है “मुगलिस्तान” यानी मुसलमानों के लिये एक अलग “गृहदेश”। जैसा कि पहले कहा इस (Concept) अवधारणा को अमलीजामा पहनाने का बीड़ा उठाया है पाकिस्तान की ISI ने। इस अवधारणा के अनुसार भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से, पश्चिम बंगाल (जहाँ पहले ही कई जगह मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो चुकी है) को पाकिस्तान से मिलाना, ताकि पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक एक “मुगलिस्तान” बनाया जा सके। इस काम में ISI वामपंथियों, माओवादियों और नक्सलवादियों के बीच प्रसारित “लाल गलियारा” की मदद भी लेने वाली है। जैसा कि सभी जानते हैं कि आंध्रप्रदेश के उत्तरी इलाके, मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कुछ जिले, समूचा

छत्तीसगढ़, आधा उड़ीसा, लगभग आधा झारखण्ड तथा दक्षिणी बिहार के बहुत सारे जिलों में माओवादियों और नक्सलवादियों ने अपना अघोषित साम्राज्य स्थापित कर लिया है और इस गलियारे को नेपाल तक ले जाने की योजना है, जिसे “लाल गलियारा” नाम दिया गया है। नेपाल में तो माओवादी लोकतन्त्र के सहारे (बन्दूक के जोर पर ही सही) सत्ता पाने में कामयाब हो चुके हैं, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा के कई दूरदराज के जिलों में “भारत सरकार” नाम की चीज़ नहीं बची है, ऐसे में सोचा जा सकता है कि ISI और नक्सलवादी-माओवादी का गठबन्धन देश के लिये कितना खतरनाक साबित होगा।

इस समूचे मास्टर-प्लान (जिसे भारत का “दूसरा विभाजन” नाम दिया गया है) को बांग्लादेश की जहाँगीरनगर विश्वविद्यालय में पाकिस्तान की ISI और बांग्लादेश की Director General of Forces Intelligence (DGFI) द्वारा मिलकर तैयार किया गया है। इस योजना के “विचार” को पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के समय से “ऑपरेशन टोपाक” के तहत सतत पैसा दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि जिया-उल-हक का भारत को तोड़ने का सपना अधूरा ही रह गया, लेकिन पाकिस्तान के शासकों ने अभी भी अपने प्रयास कम नहीं किये हैं, पहले “खालिस्तान” को समर्थन, फ़िर कश्मीर में लगातार घुसपैठ और अब बांग्लादेश के साथ मिलकर “मुगलिस्तान” की योजना, यानी कि साठ साल बाद भी “कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी”। दाऊद इब्राहीम, लश्कर-ए-तोयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन मिलकर इस योजना को गुपचुप अंजाम देने में जुटे हुए हैं, भारत में उन्होंने “सिमी” और “इंडियन मुजाहिदीन” जैसे बड़े मजबूत नेटवर्क वाले संगठन तैयार कर लिये हैं। लश्कर-ए-तोयबा के साहित्य और वेबसाईटों पर भारत विरोधी दुष्प्रचार लगातार चलता रहता है। लश्कर और जैश दोनों ही संगठनों का एकमात्र उद्देश्य भारत को तोड़ना और कश्मीर को आजाद(?) करना है। नई रणनीति यह है कि इंडियन मुजाहिदीन कर बम विस्फ़ोट की जिम्मेदारी ले, ताकि पाकिस्तान पर लगने वाले “आतंकवादी देश” के आरोपों से बचा जा सके और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बताया जा सके कि तमाम विस्फ़ोट भारत के अन्दरूनी संगठन ही करवा रहे हैं।

पाकिस्तान की आजादी के बाद वहाँ के घरू हालात सुधारने की बजाय उग्रवादी गुटों को भारत को तोड़ने की ललक ज्यादा है। वे यह नहीं देखते कि पाकिस्तान में भयंकर गरीबी है, देश दीवालिया होने की कगार पर पहुँच चुका है… बल्कि वे लोगों को “जेहाद” के नाम पर चन्दा देने को उकसाते हैं और पाक सरकार भी भारी मात्रा में पैसा देकर उनकी सहायता करती रहती है। हालांकि अमेरिका ने लश्कर और जैश पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, लेकिन उस प्रतिबन्ध को लागू तो पाकिस्तान की सरकार को ही करवाना है, ऐसे में इस प्रतिबन्ध का कोई मतलब नहीं है। इस प्रस्तावित मुगलिस्तान की प्लानिंग के अनुसार भारत भर में लगभग 100 जिले चिन्हित किये गये हैं, जहाँ कि पहले से ही मुस्लिम आबादी 30% से लेकर 60% है और ये जिले भारत के विभिन्न हिस्सों में फ़ैले हुए हैं, इसमें जम्मू-कश्मीर के जिले शामिल नहीं हैं, क्योंकि वहाँ पहले ही कश्मीरी पंडितों को सामूहिक हत्याओं के जरिये भगाया जा चुका है और उनकी सम्पत्तियों पर कब्जा जमाया चुका है। अब ISI की प्राथमिकता है पश्चिम बंगाल और असम पर जहाँ का राजनैतिक वातावरण (वामपंथी और कांग्रेस) उनके अनुकूल है। इन प्रदेशों के जिलों में भारी संख्या में घुसपैठ करवाकर यहाँ का जनसंख्या सन्तुलन काफ़ी हद तक बिगाड़ा जा चुका है और अगले कदम के तौर पर यहाँ बात-बेबात दंगे, मारकाट और तोड़फ़ोड़ आयोजित किये जायेंगे ताकि वहाँ रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दू खुद को असुरक्षित महसूस करके वहाँ से पलायन कर जायें या फ़िर उन्हें मार दिया जाये (जैसा कि कश्मीर में किया गया)। केरल के मलप्पुरम, आंध्रप्रदेश के हैदराबाद दक्षिण जैसे इलाके भी इनके खास निशाने पर हैं।(सभी सन्दर्भ http://www.bengalgenocide.com से साभार)

 

(चित्र से स्पष्ट है कि प्रत्येक दशक में मुस्लिम जनसंख्या ने जन्मदर में हिन्दुओं को पछाड़ा है)(चित्र से स्पष्ट है कि सामरिक महत्व के “चिकन नेक” पर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है)

कश्मीर में नागरिकों (यानी 99% मुसलमानों को) को धारा 370 के अन्तर्गत विशेषाधिकार प्राप्त हैं, इस राज्य से आयकर का न्यूनतम संग्रहण होता है। केन्द्र से प्राप्त कुल राशि का 90% सहायता और 10% का लोन माना जाता है, फ़िर भी यहाँ के लोग “भारत सरकार” को गालियाँ देते हैं और तिरंगा जलाते रहते हैं। बौद्ध बहुल इलाकों (जैसे लेह) के युवाओं को कश्मीर की सिविल सेवा से महरूम रखा जाता है। बौद्ध संगठनो ने कई बार केन्द्र को ज्ञापन देकर उनके प्रति अपनाये जा रहे भेदभाव को लेकर शिकायत की, लेकिन जैसा कि कांग्रेस की “वोट-बैंक” नीति है उसके अनुसार कोई सुनवाई नहीं होती। हालात यहाँ तक बिगड़ चुके हैं कि बौद्धों को मृत्यु के पश्चात मुस्लिम बहुल इलाके कारगिल में दफ़नाने की जगह मिलना मुश्किल हो जाता है।

अपनी आँखों के सामने भारत का नक्शा लाईये, आईये देखते हैं कि कैसे और किन-किन जिलों और इलाकों में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है, उत्तर से चलें तो कश्मीर में लगभग 98% आबादी मुस्लिम हो चुकी है, पुंछ, डोडा, बनिहाल, किश्तवार और भद्रवाह जैसे इलाके पूर्ण मुस्लिम हो चुके हैं। लद्दाख इलाके में कारगिल में मुस्लिम 70-30 के अनुपात में बहुसंख्यक हो चुके हैं। थोड़ा नीचे खिसकें तो हरियाणा-राजस्थान के मेवात इलाके में मुस्लिम आबादी 2005 में 66% हो चुकी थी। मेवात इलाके में गौ-हत्या तो एक मामूली बात बन चुकी है, लेकिन हिन्दुओं का सामाजिक बहिष्कार और उनके साथ दुर्व्यवहार भी अब आम हो चला है। हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने चुपचाप गुड़गाँव इलाके को काट कर एक नया जिला मेवात भी बना दिया। इस इलाके में मुस्लिम परिवारों में औसत जन्म दर प्रति परिवार 12 है, और मोहम्मद ईशाक जैसे भी लोग हैं जिनके 23 बच्चे हैं और उसे इस पर गर्व(?) है। थोड़ा आगे जायें तो पुरानी दिल्ली और मलेरकोटला (पंजाब) भी धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल बनते जा रहे हैं, इसी पट्टी में नीचे उतरते जायें तो उत्तरप्रदेश के आगरा, अलीगढ़, आजमगढ़, मेरठ, बिजनौर, मुज़फ़्फ़रनगर, कानपुर, वाराणसी, बरेली, सहारनपुर, और मुरादाबाद में भी मुस्लिम आबादी न सिर्फ़ तेजी से बढ़ रही है बल्कि गणेश विसर्जन, दुर्गा पूजा आदि उत्सवों पर जुलूसों पर होने वाले पथराव और हमलों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

अगला दरवाजा है हमारे मीडिया दुलारे लालू का प्रदेश बिहार… जहाँ मुस्लिम आबादी 17% तक पहुँच चुकी है। भारत-नेपाल की सीमा के किनारे-किनारे लगभग 1900 मदरसे खोले जा चुके हैं। सशस्त्र सीमा पुलिस के महानिदेशक तिलक काक बताते हैं कि न सिर्फ़ बिहार में बल्कि साथ लगी नेपाल की सीमा के भीतर भी मदरसों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी आई है, यदि इन मदरसों की संख्या की तुलना मुस्लिम जनसंख्या से की जाये तो ऐसा लगेगा कि मानो न सिर्फ़ पूरी मुस्लिम बिरादरी बल्कि हिन्दू बच्चे भी इन मदरसों में पढ़ने जाने लगे हैं। काक के अनुसार यह बेहद खतरनाक संकेत है और कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति कह सकता है कि मदरसों की यह संख्या गैर-आनुपातिक और अचरज में डालने वाली है। लेकिन कांग्रेस-लालू और “सेकुलरों” के कान पर जूँ भी नहीं रेंगने वाली।

सीमा प्रबन्धन की टास्क फ़ोर्स के अनुसार अक्टूबर 2000 से भारत-नेपाल सीमा पर मदरसों और मस्जिदों की बाढ़ आ गई है और ये दिन-दूनी-रात-चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। भारत की तरफ़ वाली सीमा में दस वर्ग किलोमीटर के दायरे में 343 मस्जिदें, 300 मदरसे बने हैं जबकि नेपाल की तरफ़ 282 मस्जिदें और 181 मदरसों का निर्माण हुआ है। ये मदरसे और मस्जिदें सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारी मात्रा में धन प्राप्त करती हैं। इनके मुख्य प्राप्ति स्रोत इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक (जेद्दाह) और हबीब बैंक (कराची) हैं, इनका साथ देने के लिये नेपाल की हिमालयन बैंक ने अपनी शाखायें विराटनगर और कृष्णानगर में भी खोल दी हैं। यह तो सर्वविदित है कि नेपाल के रास्ते ही भारत में सर्वाधिक नकली नोट खपाये जाते हैं, यहाँ दाऊद की पूरी गैंग इस काम में शामिल है जिसे ISI का पूरा कवर मिलता रहता है।

पश्चिम बंगाल और असम में स्थिति और भी खराब हो चुकी है। 2001 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 28% तथा आसाम में 31% तक हो चुकी है। अरुण शौरी जी ने इंडियन एक्सप्रेस के अपने कालम में लिखा है कि – 1951 में भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10% थी, 1971 में 10.8%, 1981 में 11.3% और 1991 में लगभग 12.1%। जबकि 1991 की ही जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में मुस्लिम जनसंख्या 56%, नदिया में 48%, मुर्शिदाबाद में 52%, मालदा में 54% और इस्लामपुर में 60% हो चुकी थी। बांग्लादेश से लगी सीमा के लगभग 50% गाँव पूरी तरह से मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। असम में भी सीमावर्ती जिले पूरी तरह से हरे रंग में रंगे जा चुके हैं, ऐसे में किसी बाहरी आक्रमण के वक्त हमारे सुरक्षा बल बुरी तरह से दो पाटों के बीच फ़ँस सकते हैं, और न तो तब न ही अभी हमारे परमाणु शक्ति होने का कोई फ़र्क पड़ेगा। जब आक्रमणकारियों को “लोकल सपोर्ट” मिलना शुरु हो जायेगा, तब सारी की सारी परमाणु शक्ति धरी रह जायेगी।

आँकड़े बताते हैं कि 24 परगना और दिनाजपुर से लेकर बिहार के किशनगंज तक का इलाका पूरी तरह से मुस्लिम बहुल हो चुका है। 1991 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल की कुल 7 करोड़ जनसंख्या में से लगभग 2.8 करोड़ मुस्लिम थे जिसमें से भी 1.2 करोड़ तो सिर्फ़ सीमावर्ती जिलों में रहते हैं। बंगाल और बिहार का यह गंगा-हुगली के किनारे का महत्वपूर्ण इलाका लगभग पूरी तरह से मुस्लिम देश की तरह लगने लगा है। ऐसे में देश की सुरक्षा कितनी खतरे में है यह आसानी से समझा जा सकता है। कुल मिलाकर उभरने वाली तस्वीर बेहद चिंताजनक है, 24 परगना से शुरु करके, नदिया, मुर्शिदाबाद, मालदा, दिनाजपुर, रायगंज, इस्लामपुर, किशनगंज (बिहार), सिलिगुड़ी, दार्जीलिंग, न्यू-जलपाईगुड़ी, कूच बिहार और आसाम में प्रवेश करते ही धुबरी, ग्वालपाड़ा, बोंगाईगाँव, कोकराझार और बारपेटा… एक बेहद सघन मुस्लिम बहुल इलाका पैर पसार चुका है।

“द पायनियर” में प्रकाशित संध्या जैन के लेख “इंडियाज़ कैंसर वार्ड” के मुताबिक, अरुणाचल के पूर्व IGP आर के ओहरी पहले ही इस सम्बन्ध में चेतावनी जारी कर चुके हैं कि पश्चिम एशिया से लेकर बांग्लादेश तक एक “इस्लामी महाराज्य” बनाने की एक व्यापक योजना गुपचुप चलाई जा रही है (“मुस्लिम बंगभूमि”(?) की माँग एक बार उठाई जा चुकी है)। बांग्लादेश के मानवाधिकार कार्यकर्ता सलाम आज़ाद कहते हैं कि “तालिबान की वापसी” के लिये बांग्लादेश सबसे मुफ़ीद जगह है। बांग्लादेश में हिन्दुओं और उनकी महिलाओं के साथ बदसलूकी और ज्यादतियाँ बढ़ती ही जा रही हैं और वहाँ की सरकार को भी इसका मूक समर्थन हासिल है। (बांग्लादेश दुनिया का एकमात्र देश होगा जो उसकी आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत के खिलाफ़ ही सोचता है, आखिर यह कौन सी भावना है और किस प्रकार की मानसिकता है?) नॉर्थ-ईस्ट स्टूडेण्ट ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन समुज्जल भट्टाचार्य बताते हैं कि असम के लगभग 49 आदिवासी इलाके बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण अल्पमत में आ गये हैं और घुसपैठियों की यह छाया अरुणाचल, नागालैण्ड, मणिपुर और मेघालय तक फ़ैलती जा रही है। वैसे भी भारत “एक विशाल धर्मशाला” है जहाँ कोई भी, कभी भी, कहीं से भी अपनी मर्जी से आ-जा सकता है, यह गाँधीवादियों का भी देश है और करुणा की जीती-जागती मिसाल भी है जहाँ घुसपैठियों को राशन कार्ड और मतदाता परिचय पत्र भी दिये जाते हैं, कांग्रेस का एक सांसद तो भारत का नागरिक ही नहीं है, और 8000 से अधिक पाकिस्तानी नागरिक वीसा अवधि समाप्त होने के बाद भारत में कहीं “गुम” हो चुके हैं, है ना हमारा भारत एक सहनशील, “धर्मनिरपेक्ष” महान देश???। जब आडवाणी गृहमंत्री थे तब इस समस्या के हल के लिये उन्होंने एक विशेष योजना बनाई थी जो कि यूपीए सरकार के आते ही ठण्डे बस्ते में डाल दी गई।

2001 की जनगणना के अनुसार लगभग 1.6 करोड़ बांग्लादेशी इस समय भारत में अवैध निवास कर रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार लगभग 3 लाख बांग्लादेशी प्रति दो माह में भारत मे प्रवेश कर जाते हैं। अगस्त 2000 की सीमा संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 13 लाख से अधिक बांग्लादेशी इस समय अकेले दिल्ली में मौजूद हैं। ये “भिखारी” लोग भारत की अर्थव्यवस्था के लिये बोझा तो हैं हीं, देश की सुरक्षा के लिये भी बहुत बड़ा खतरा हैं, लेकिन वोटों के लालच में अंधे हो चुके कांग्रेस और वामपंथियों को यह बात समझायेगा कौन? भारत-बांग्लादेश की 2216 किमी सीमा पर तार लगाने का काम बेहद धीमी रफ़्तार से चल रहा है और मार्च 2007 तक सिर्फ़ 1167 किमी पर ही बाड़ लगाई जा सकी है, पैसों की कमी का रोना रोया जा रहा है, जबकि देश के निकम्मे सरकारी कर्मचारियों और सांसदों के वेतन पर अनाप-शनाप खर्च जारी है। पश्चिम बंगाल की 53 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक की स्थिति में आ चुके हैं, अब ऐसे में भला कौन सी राजनैतिक पार्टी उनसे “पंगा” लेगी? रही बात हिन्दुओं की तो वे कभी एक होकर वोट नहीं दे सकते, क्योंकि उन्हीं के बीच में “सेकुलर” नाम के जयचन्द मौजूद रहते हैं। पश्चिम बंगाल की 294 सीटों में से 45 मुस्लिम हैं, जबकि 5 मंत्री हैं, इसी प्रकार 42 लोकसभा सीटों में से 5 पर मुस्लिम सांसद हैं, ऐसे में सरकार की नीतियों पर इनका प्रभाव तो होना ही है। यूपीए सरकार को समर्थन देने के एवज में वामपंथियों ने वोट बैंक बनाने के लिये इस क्षेत्र का जमकर उपयोग किया।

 

 

 

“मुगलिस्तान” के लक्ष्य में सबसे पहले पश्चिम बंगाल और असम का नाम आयेगा। ऐसे कई इलाके “पहचाने” गये हैं जिन्हें “मिनी पाकिस्तान” कहा जाने लगा है, असम में पाकिस्तानी झंडे लहराने की यह घटना कोई अचानक जोश-जोश में नहीं हो गई है, इसके पीछे गहरी रणनीति काम कर रही है, मुगलिस्तान का सपना देखने वालों को इस पर प्रतिक्रिया देखना थी, और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने यह कहकर कि “ये कोई पाकिस्तानी झंडे नहीं थे…” इनका काम और भी आसान बना दिया है। भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके को मुख्य भूमि से जोड़ने वाली छोटी सी भूमि जिसे “चिकन नेक” या “सिलीगुड़ी कॉरीडोर” कहा जाता है, इनके मुख्य निशाने पर है और इस ऑपरेशन का नाम “ऑपरेशन पिनकोड” रखा गया है, जिसके मुताबिक बांग्लादेश की सीमा के भीतर स्थित 950 मस्जिदों और 439 मदरसों से लगभग 3000 जेहादियों को इस विशेष इलाके में प्रविष्ट करवाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि यह “चिकन नेक” या सिलिगुड़ी कॉरीडोर 22 से 40 किमी चौड़ा और 200 किमी लम्बा भूमि का टुकड़ा है जो कि समूचे उत्तर-पूर्व को भारत से जोड़ता है, यदि इस टुकड़े पर नेपाल, बांग्लादेश या कहीं और से कब्जा कर लिया जाये तो भारतीय सेना को उत्तर-पूर्व के राज्यों में मदद पहुँचाने के लिये सिर्फ़ वायु मार्ग ही बचेगा और वह भी इसी जगह से ऊपर से गुजरेगा। इतनी महत्वपूर्ण सामरिक जगह से लगी हुई सीमा और प्रदेशों में कांग्रेस इस प्रकार की घिनौनी “वोट बैंक” राजनीति खेल रही है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक होता है वहाँ धार्मिक स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र होता है, लेकिन जहाँ भी मुस्लिम बहुसंख्यक होता है वहाँ इनमें से कुछ भी नहीं पाया जाता, और आजादी के बाद पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर, नागालैण्ड और त्रिपुरा के कुल मिलाकर 20 से अधिक जिले अब मुस्लिम या ईसाई बहुसंख्यक बन चुके हैं, लेकिन “सेकुलर” नाम के प्राणी को यह सब दिखाई नहीं देता।

अपने लेख “डेमोग्राफ़ी सर्वे ऑन ईस्टर्न बॉर्डर” में भावना विज अरोरा कहती हैं, “

जिस समय भारत का विभाजन हुआ उसी वक्त मुस्लिम नेता पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को पाकर पूरी तरह खुश नहीं थे, उस वक्त से ही “अविभाजित आसाम” उनकी निगाहों में खटकता था और वे पूरा उत्तर-पूर्व पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। मानुल-हक-चौधरी, जो कि जिन्ना के निजी सचिव थे (और बाद में असम में मंत्री भी बने) ने 1947 में जिन्ना को पत्र लिखकर कहा था कि “कायदे-आजम आप मुझे सिर्फ़ 30 साल दीजिये मैं आपको आसाम तश्तरी में सजाकर दूँगा…” उसी समय से “पूरे उत्तर-पूर्व में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाओ” अभियान चलाया जा रहा है, जो कि अब विस्फ़ोटक स्थिति में पहुँच चुका है, जबकि देश के साथ-साथ असम में भी अधिकतर समय कांग्रेस का शासन रहा है। इसीलिये जब अनुभवी लोग कहते हैं कि कांग्रेस से ज्यादा खतरनाक, वोट-लालची और देशद्रोही पार्टी इस दुनिया में कहीं नहीं है तब उत्तर-पूर्व और कश्मीर को देखकर इस बात पर विश्वास होने लगता है। आज की तारीख में असम के 24 में 6 जिले मुस्लिम बहुसंख्यक हो चुके हैं, 6 जिलों में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 40 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है, अभी 126 विधानसभा सीटों में से 54 पर मुस्लिम वोट ही निर्णायक हैं, कुल 28 से अधिक मुस्लिम विधायक हैं, और चार मंत्री हैं। स्वाभाविक सी बात है कि मुस्लिम समुदाय (स्थानीय और बांग्लादेश से आये हुए मिलाकर) राज्य में नीति-नियंता बन चुके हैं। इन घुसपैठियों ने असम के स्थानीय आदिवासियों को उनके घरों से खदेड़ना शुरु कर दिया है और असम में आये दिन आदिवासी-मुस्लिम झड़पें होने लगी हैं। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का पूरा संरक्षण इन लोगों को प्राप्त है, और यह “भस्मासुर” एक दिन इन्हीं के पीछे पड़ेगा, तब इन्हें अकल आयेगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

लगभग यही हालात नागालैण्ड में हैं, जहाँ दीमापुर जिले में बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद बहुत बढ़ चुकी है। रिक्शा चलाने वाले, खेतिहर मजदूर, ऑटो-चालक अब बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुख्य काम बन चुके हैं, इन्होंने नगा खेत मालिकों पर भी अपना रौब गाँठना शुरु कर दिया है। आये दिन चोरी, लूट, तस्करी, नशीली दवाईयों का कारोबार जैसे अपराधों में बांग्लादेशी मुस्लमान लिप्त पाये जाते हैं, लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। राजधानी कोहिमा, मोकोकचुंग, वोखा, जुन्हेबोटो, फ़ेक, मोन और त्सुएनसांग इलाकों में भी ये पसरते जा रहे हैं।

एक बार नागालैण्ड के मुख्यमंत्री एस सी जमीर ने कहा था कि “बांग्लादेशी मुसलमान हमारे राज्य में मच्छरों की तरह फ़ैलते जा रहे हैं…”, कुछ साल पहले नगा छात्रों ने इनके खिलाफ़ मुहिम चलाई थी, लेकिन “अज्ञात” कारणों से इन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी। खतरनाक बात तो यह भी है कि नगा विद्रोहियों और उल्फ़ा-बोडो संगठनों के कई कैम्प बांग्लादेश के इलाके में चल रहे हैं और जब भी बांग्लादेशी मुसलमानों पर कोई कड़ी कार्रवाई करने की बात की जाती है तब बांग्लादेश की ओर से धमकी दी जाती है कि यदि भारत में रह रहे (आ-जा रहे) बांग्लादेशियों पर कोई कार्रवाई हुई तो हम इनके कैम्प बन्द करवा देंगे। दीमापुर के स्थानीय अखबारों के छपी खबर के अनुसार किसी भी मुस्लिम त्यौहार के दिन कोहिमा और दीमापुर के लगभग 75% बाजार बन्द रहते हैं, इससे जाहिर है कि व्यापार और अर्थव्यवस्था पर भी इनका कब्जा होता जा रहा है।

विस्तारित और बड़ी योजना – मुगलिस्तान की इस संकल्पना को साकार करने के लिये एक साथ कई मोर्चों पर काम किया जा रहा है, देश के एक कोने से दूसरे कोने तक गहरी मुस्लिम जनसंख्या का जाल बिछाया जा रहा है। केरल राज्य में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 25% तक पहुँच चुकी है, आये दिन वहाँ संघ कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहते हैं। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों (दोनों ही इन मुस्लिम वोटों के सौदागर हैं), ने अब्दुल मदनी जैसे व्यक्ति को छुड़वाने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। मलप्पुरम जिला काफ़ी पहले मुस्लिम बहुल हो चुका है और इस जिले में लगभग हरेक संस्थान में शुक्रवार को छुट्टी मनाई जाती है (रविवार को नहीं) और सरकारें चुपचाप देखती रहती हैं। पड़ोसी दो जिले कोजीकोड और कन्नूर में भी हिन्दुओं की हत्याओं का दौर चलता रहता है, लेकिन दोनों ही पार्टियाँ इसे लेकर कोई कार्रवाई नहीं करतीं (ठीक वैसे ही जैसा कि कश्मीर में किया गया था)।

मुगलिस्तान की इस योजना में फ़िलहाल नक्सलवादियों और चर्च की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। जब नक्सलवादी और चर्च मिलकर आंध्रप्रदेश से नेपाल तक एक विशाल “लाल गलियारा” बना लेंगे उस वक्त तक भारत नामक सत्ता बहुत कमजोर हो चुकी होगी, जाहिर है कि इस खेल में हिन्दुओं को ही सबसे अधिक भुगतना पड़ेगा, फ़िर कब्जे के लिये अन्तिम निर्णायक लड़ाई इस्लामी कट्टरपंथियों, मिशनरी-ईसाई और वाम-समर्थित नक्सलवादी गुटों में होगी, तब तक पहले ये लोग एक साथ मिलकर भारत और हिन्दुओ को कमजोर करते रहेंगे, आये दिन बम विस्फ़ोट होते रहेंगे, हिन्दुओं, हिन्दू नेताओं, मन्दिरों पर हमले जारी रहेंगे, आदिवासियों और गरीबों में धर्म-परिवर्तन करवाना, जंगलों में नक्सलवादी राज्य स्थापित करना, मुस्लिम आबादी को पूर्व-नियोजित तरीके से बढ़ाते जाना इस योजना के प्रमुख घटक हैं। दुःख की बात यह है कि हम कश्मीर जैसे हालिया इतिहास तक को भूल चुके हैं, जहाँ यह नीति कामयाब रही है और लाखों हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं और अमरनाथ की एक छोटी सी जमीन के लिये भारत सरकार को नाक रगड़नी पड़ती है। लेकिन इस मुगलिस्तान के योजनाकारों को भारत में बैठे “सेकुलरों”, “बुद्धिजीवियों”, “कांग्रेस”, NDTV-CNNIBN जैसे चैनलों पर पूरा भरोसा है और ये इनका साथ वफ़ादारी से दे भी रहे हैं… बाकी का काम हिन्दू खुद ही दलित-ब्राह्मण-तमिल-मराठी जैसे विवादों में विभाजित होकर कर रहे हैं, जो यदि अब भी जल्दी से जल्दी नहीं जागे तो अगली पीढ़ी में ही खत्म होने की कगार पर पहुँच जायेंगे…

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