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केन्द्रीय विद्यालय के पाठ्य क्रम से संस्कृत हटाने के षड्यंत्रकारियों को तुरंत गिरफ्तार कर दण्डित करो

केन्द्रीय विद्यालय के पाठ्य क्रम से संस्कृत हटाने के षड्यंत्रकारियों को तुरंत गिरफ्तार कर दण्डित करो
राजीव उपाध्याय sanskrit teacher
यदि नौकरशाही की सता के दुरूपयोग की पराकाष्ठा देखनी हो तो बिना संसद या सरकार के अनुमोदन के केन्द्रीय विद्यालय के पाठ्य क्रम से संस्कृत हटा …कर जर्मन भाषा डालनेको देखो. और तो और  देश के बिना जाने यह रोग पांच सौ केन्द्रीय विद्यालयों मैं आज सत्तर हजार छात्रों को ग्रसित कर चुका है. भारत सरकार के नियमों के अनुसार त्रि भाषा फोर्मुले मैं तीसरी भाषा संविधान के आठवें अनुच्छेद की भाषाओँ मैं से एक हो सकती थी . केन्द्रीय विद्यालयों मैं हिंदी , इंग्लिश व् संस्कृत पढाई जाती थी .संस्कृत के विकल्प मैं छात्र कोई भी भारतीय भाषा ले सकते थे पर विदेशी भाषा नहीं . कई जगह क्षेत्रीय  भाषाएँ भी पढ़ाई जाती हैं . कुछ राज्यों मैं इंग्लिश के बदले और किसी विदेशी भाषा का प्रावधान भी है परन्तु वहां भी वास्तव मैं शिक्षक सिर्फ अंग्रेजी के ही होते हैं . परन्तु केंद्र के शिक्षा नीति मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है . किसी देश द्रोही सिरफिरे अफसर ने संस्कृत के स्थान पर जर्मन भाषा सिखाने के लिए जर्मनी के गोथे संस्थान से करार कर लिया और उसने आनन् फानन मैं सात सौ शिक्षक भी मुहैया करा दिए . सारे देश मैं अचानक इस षड्यंत्र से संस्कृत हटाई जाने लगी . कुछ संस्कृत के शिक्षकों ने इसका विरोध भी किया पर उनकी आवाज नक्कार खाने मैं तूती  की आवाज़ सी दब गयी. जर्मन भाषा सीखने मैं कोई बुराई नहीं है. यह यूरोप की एक प्रमुख भाषा है और इसको सीखने से देश को यूरोप की संस्कृति को समझने मैं बहुत आसानी होगी. इसी के समकक्ष फ्रेंच , स्पेनिश भाषाएँ  भी हैं . यह भी विश्व मैं कई देशों मैं बोली जाती हैं . परन्तु किसी यूरोपीय देश मैं विदेशी भाषा को यहाँ तक की इंग्लिश को भी राष्ट्रीय  भाषा के ऊपर स्थान  नहीं मिलता. यहाँ तक की मात्र बीस लाख आबादी वाले स्लोवेनिया देश मैं भी इंग्लिश नहीं बल्कि वहां की अपनी भाषा ही प्रमुख है जिसे वहां के निवासियों के अलावा कोई नहीं बोलता, चीन , रूस , सारा यूरोप अपनी भाषा मैं उन्नती कर सकता है परन्तु हमारे काले अँगरेज़ बिना अंग्रेजी के अपने को गूंगा समझते हैं . kendriya vidyalay
अब तो एक सीमा और पार कर दी . अंग्रेजी के साथ साथ एक और विदेशी भाषा सीखो पर भारतीय व् यूरोपीय भाषाओँ की जननी , देव भाषा संस्कृत नहीं . किसने इन अफसरों को देश की त्रिभाषा नीती से खिलवाड़ करने की आज्ञा दी . उनको तुरंत निलंबित किया जाय और शीघ्र ही नौकरी से बर्खास्त किया जाय .इसके अलावा उनपर सरकारी सेवा नियमोंके उल्लंघन के अलावा आपराधिक मामला भी चलाया जाय  क्योंकी उन्होंने सत्तर हजार छात्रों का भविष्य दांव पर लगाया है . जर्मनी के चंसलर ने मोदी जी से भी बात की है. एक देश द्रोही ने अंतर राष्ट्रिय समस्या बैठे बिठाए खडी कर दी . यह भविष्य मैं ऐसी भूल की पुनरावृति नहीं करने के लिए आवश्यक है. परन्तु वास्तव मैं हो सकता हो की उन्होंने शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल के कहीं फाइल पर दस्तखत ले लिए हों . इतनी बड़ी गलती करने की जुर्रत नौकरशाहों मैं नहीं हो सकती . इसके पीछे  कोई भारतीय  संस्कृति से वास्तव मैं घोर घृणा करने वाला ही हो सकता है . शक की सुई सिर्फ एक कोंग्रेसी  महिला पर ही टिकती है जिसे संस्कृत व्यर्थ की भाषा लगती होगी . बिना दोषी अफसरों का तुरंत निलंबन करने से सब सच सामने नहीं आ पायेंगे . इस सच्चाई जानने के लिए यह आवश्यक है की दोषी अफसरों को निलंबित कर उनपर तुरंत आपराधिक मला दर्ज करने के लिए यह केस सीबीआई को दिया जाय . See More
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