फ्रांस की कार्टून पत्रिका पर जान लेवा हमला , मकबूल फ़िदा हुसैन के नंगे हिन्दू देवियों के चित्र व् पी के फिल्म के शिवजी के दृश्य : दोहरे मापदंडों की पराकाष्टा
सात जनवरी को फ्रांस की एक कार्टून पत्रिका चार्ल्स देबोह के चित्रकारों को चुन चुन के गोली से मार दिया क्योंकि उन्होंने पैगम्बर मोहम्म्द के कार्टून बनाये थे . कुल बारह लोगों की इसमें जान गयी और बाद मैं कुछ यहूदियों को बंधक बना लिया जिनकी भी जान गयी .
प्रश्न है की कलात्मक अभिव्यक्ति की सीमा कहाँ तक है ?
तो इस सीमा के भारतीय संस्करण जिसमें एक मुसलमान कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने पारवती को बैल से सम्भोग करते हुए , नग्न सीता को रावण की जांघ पर बैठे हुए व् दुर्गा की नग्न तस्वीरों को बना कर भारत भर मैं प्रदर्शित किया . और उसी कलाकार ने पैगम्बर की बहन फातिमा को बहुत सुशिल ढंग से प्रस्तुत किया . नीचे दिए लिंक पर पूरा लेख पढ़ें .हमारे मीडिया ने इस कला की स्वतंत्र अभिव्यक्ति करार दे दिया . फिल्म पी के के शिवजी के दृश्य अत्यंत फूहड़ थे . उसमें पाकिस्तानी मुसलामानों का महिमामंडन किया गया . हिन्दू स्वामियों को चोर सिद्ध किया और बहुत कुछ हिन्दू आस्था पर आक्षेप किया . इसके पहले भी फिल्म सिंहं – २ मैं एक स्वामी के पीछे लात मारते हुए दृश्य थे . वह भी कला करार दी गयी . लीला सेमसन जो की सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष हैं उन्हें शिवजी के दृश्य कलात्मक लगते हैं . परन्तु उसी सेंसर बोर्ड की पास की हुयी फिल्म ‘ विश्व रूपम को चेन्नई व् कई प्रदेशों मैं सर्टिफिकेट के बावजूद भी प्रदर्शित नहीं करने दिया जाता .
पश्चिम की उदारवादी संस्कृति मैं ‘ ब्लासफेमी ‘ कानून के बावजूद इसा के विरुद्ध फिल्म बनाने की अनुमति दे दी जाती है . वहां ईसा के प्रेम संबंधों पर भी उपन्यास लिखे जाते हैं . इसलिए उन इसाई देशों मैं पैगम्बर मोहमद को कोई विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता .वहां अभिव्यक्ति के दोहरे मापदंड नहीं है .
इसके विरुद्ध सऊदी अरेबिया मैं रामायण का घर में भी पाठ करने पर पुलिस पकड़ लेती है . वहां विदेशियों को भी हाथ ढकने पर मजबूर किया जाता है जबकि वही मुसलमान लन्दन , पेरिस इत्यादि मैं बुर्का पहनना चाहते हैं और हलाल मांस खाना चाहते हैं क्योंकि वहां धार्मिक आज़ादी है . सऊदी अरेबिया मैं आप चालीस साल भी रह लें पर आपको नागरिकता नहीं दी जायेगी . शादियों पर भी सख्त कानून हैं . इसके विरुद्ध पश्चिमी देशों की शरणार्थियों के प्रति उदारवादी नीतियों का झूटा फायदा उठा कर वहां पर बसने वाले मुसमानों की जनसंख्या खतरनाक रूप से बढ़ रही है.
फिर फ्रांस की घटना पर एक प्रश्न और है . किसे सज़ा देने का अधिकार है . भारत मैं मकबूल फ़िदा हुसैन के विरुद्ध अनेकों केस अदालतों मैं डाले गए . सज़ा देने का अधिकार किसी सभी देश मैं अदालतों को होता है . हर किसी को गोली चलने का अधिकार नहीं हो सकता .
इस्लामिक देशों को अपने दोहरे माप डंडों को छोड़ना होगा . वह पश्चिम की उदारवादी संस्कृति को पीछे धकेलना चाह रहे हैं . पश्चिम ने यह संस्कृति गलीलियो कोपरनिकस सरीखे अनेकों वैज्ञानिकों की बलि दे कर पाई है .यदि वह इसमैं सफल हो गए तो बहत बड़ी त्रासदी होगी . इश्वर का अस्तित्व एक धारणा है , एक विश्वास है परन्तु अकाट्य सत्य नहीं . ऋषि चार्वाक सरीखे नास्तिकों व् अनीश्वरवादी भी जीने के उतने ही अधिकारी है जितने ईश्वरवादी के . हमारे यहाँ भी महाराष्ट्र मैं नास्तिकों ने सीमा का उल्लंघन किया था पर सभी ढंग से हर किसी को सुसंस्कृत ढंग से अपना पक्ष रखने का अधिकार है . इससे विशवास बढ़ता है घटता नहीं .. भारत मैं पैसे के बल पर इसाई संस्कृति का प्रचार किया जा रहा है . परन्तु इसके विरोध को आतंक तक नहीं ले जाना चाहिए . सरकारों को अभिव्यक्ति की सीमानिधारण व् शालीनता पर अधिक जोर देना चाहिए . विशेषतः प्रजातंत्र मैं अभिव्यक्ति की आजादी बहुत आवश्यक है .
पर विश्व मैं इस्लामी दोहरे मापदंडों का उन्मूलन आवश्यक है .
नीचे दो लिंक दिए जा रहे हैं . इन्हें कंप्यूटर के ब्रउज़र मैं दल कर आप फ्रांस व् हुसैन के चित्रों को देख सकते हैं और उनका तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं . जिनके यह नहीं आता उनके लिए तीन चित्र जो एक चार्ली पत्रिका का है, दूसरा हुसैन का है और तीसरा फिल पिके का है नीचे दिखाए जा रहे हैं .
चार्ली कार्टून http://9gag.com/gag/aqZE5Qv
हुसैन के आपत्तिजनक चित्र http://www.hindujagruti.org/activities/campaigns/national/mfhussain-campaign/
चार्ली का कार्टून
हुस्सैन के सीता रावण व् हनुमान के चित्र