क्या सरकारी कर्मचारी व् निति आयोग के सदस्य भगवती को हिंदुत्व व् आरएसएस
विरोधी व्यक्तव्य के लिए सार्वजानिक रूप से क्षमा मंगनी चाहिए
राजीव उपाध्याय
पिछले दो दिनों से एनडीटीवी व् कई अखबार…, अमरीका से आयातित अर्थशास्त्री भगवती, जिन्होने अपनी निति कमीशन मैं नियुक्ति होते ही एक घोर हिंदुत्व व् आर एस एस विरोधी व्यक्तव्य दे दिया , जिसके अनुसार आरएसएस का हिंदुत्व का सांस्कृतिक अजेंडा देश के आर्थिक विकास मैं बाधा पहुंचा सकता है . इस बयान को तुरंत भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता विरोधी टीवी चैनलों ने ,जिसमें एनडीटीवी अग्रणी है , बढ़ा चढ़ा के प्रसारित करना शुरू कर दिया . टीवी एंकर बरखा दत्त ने तो यहाँ तक कहा की हमें भगवती की ज्यादा और भागवत की कम जरूरत है !
पिछले नौ महीनों मैं सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के मात्र तीन सार्वजानिक कदम लिए हैं . पहला अनधिकृत रूप से माध्यमिक शिक्षा मैं विदेशी भाषा जर्मन को संस्कृत की जगह पढ़ाना रोकना था .कुछ भगत सिंह इत्यादि को आतंकवादी कहने वाले कुछ वाक्य पाठ्य क्रम से निकाले और अभी एक आयुर्वेद व् योग मंत्रालय या विभाग खोलने की बात शुरू हुयी है . यह सरकार तो अपना राम मंदिर व् धारा ३७० का अजेंडा पहले ही भुलाई हुयी है . इसमें तो मदरसों को अपने पहले बजट मैं कांग्रेस से ज्यादा राशि आवंटित कर दी . हिंदुत्व का तो इसमें नामो निशान भी नहीं दीखता .इस सरकार के किस काम से भगवती जी को आर्थिक विकास मैं रुकावट प्रतीत हुयी ?
एक बात और है . यदि हमारे धर्मनिरपेक्षता के आधार इंग्लैंड मैं आज भी ब्लासफेमी कानून है .इसके अंतर्गत इस्सयियत के खिलाफ आज भी बोलना जुर्म है . परन्तु इससे इंग्लैंड के विकास मैं तो कोई बाधा नहीं आई . तो इस देश की अस्सी प्रतिशत जनता जिस मैं विशवास रखती हो वह हिन्दू संस्कृति कैसे इसके विकास मैं बाधक हो सकती है .संस्कृति का विकास मैं उपयोग करना आना चाहिए जो आयातित अर्थशास्त्रियों को नहीं आता .
वास्तव मैं यह एक विशुद्ध राजनितिक बयान था जो भगवती जी ने अपने अमरीकी आकाओं को खुश करने के लिए दिया लगता है . शायद उनके बयानों से ओबामा या अमरीका के जोशुआ मिशनरी खुश हो जाएँ जो सदा से मोदी विरोधी रहे हैं . . भगवती जी को याद रहे कि अब वह एक वेतन पाने वाले भारतीय सरकारी कर्मचारी हैं .
बीजेपी विरोधियों का काम उसी के सरकारी कर्मचारियों ने करना शुरू कर दिया ?
क्या हर सरकारी कर्मचारी को राजनीती मैं दखलंदाजी की घातक छूट है ?आरएसएस की दोहरी सदस्यता पर एक बार १९८० मैं जनता सरकार गिर चुकी है . उसके बाद खुलम खुल्ला आरएसएस के साथ बीजेपी पार्टी बनी . स्वयं प्रधान मंत्री , गृह मंत्री व् कई अन्य मंत्री आज भी आरएसएस के सदस्य हैं .भगवती जी ने अपने पहले व्यक्तव्य मैं यदि अपने देश के त्वरित आर्थिक विकास के बारे मैं विचार रखे होते तो समझ आता . फिर चुनाव आयोग के तरह निति आयोग एक संयुक्त संस्था है जिसके श्री भगवती अध्यक्ष भी नहीं हैं . चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों की तरह उन्हें अपने विचार पहले निति कमीशन के अन्य सदस्यों के समक्ष रखने चाहिये . कमीशन को सर्व सम्मति वाले प्रारूप को सरकार को भेजना चाहिए . सार्वजानिक रूप से अकेले बयानबाजी का उन्हें अधिकार नहीं है .
विरोधी व्यक्तव्य के लिए सार्वजानिक रूप से क्षमा मंगनी चाहिए
राजीव उपाध्याय
पिछले दो दिनों से एनडीटीवी व् कई अखबार…, अमरीका से आयातित अर्थशास्त्री भगवती, जिन्होने अपनी निति कमीशन मैं नियुक्ति होते ही एक घोर हिंदुत्व व् आर एस एस विरोधी व्यक्तव्य दे दिया , जिसके अनुसार आरएसएस का हिंदुत्व का सांस्कृतिक अजेंडा देश के आर्थिक विकास मैं बाधा पहुंचा सकता है . इस बयान को तुरंत भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता विरोधी टीवी चैनलों ने ,जिसमें एनडीटीवी अग्रणी है , बढ़ा चढ़ा के प्रसारित करना शुरू कर दिया . टीवी एंकर बरखा दत्त ने तो यहाँ तक कहा की हमें भगवती की ज्यादा और भागवत की कम जरूरत है !
पिछले नौ महीनों मैं सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के मात्र तीन सार्वजानिक कदम लिए हैं . पहला अनधिकृत रूप से माध्यमिक शिक्षा मैं विदेशी भाषा जर्मन को संस्कृत की जगह पढ़ाना रोकना था .कुछ भगत सिंह इत्यादि को आतंकवादी कहने वाले कुछ वाक्य पाठ्य क्रम से निकाले और अभी एक आयुर्वेद व् योग मंत्रालय या विभाग खोलने की बात शुरू हुयी है . यह सरकार तो अपना राम मंदिर व् धारा ३७० का अजेंडा पहले ही भुलाई हुयी है . इसमें तो मदरसों को अपने पहले बजट मैं कांग्रेस से ज्यादा राशि आवंटित कर दी . हिंदुत्व का तो इसमें नामो निशान भी नहीं दीखता .इस सरकार के किस काम से भगवती जी को आर्थिक विकास मैं रुकावट प्रतीत हुयी ?
एक बात और है . यदि हमारे धर्मनिरपेक्षता के आधार इंग्लैंड मैं आज भी ब्लासफेमी कानून है .इसके अंतर्गत इस्सयियत के खिलाफ आज भी बोलना जुर्म है . परन्तु इससे इंग्लैंड के विकास मैं तो कोई बाधा नहीं आई . तो इस देश की अस्सी प्रतिशत जनता जिस मैं विशवास रखती हो वह हिन्दू संस्कृति कैसे इसके विकास मैं बाधक हो सकती है .संस्कृति का विकास मैं उपयोग करना आना चाहिए जो आयातित अर्थशास्त्रियों को नहीं आता .
वास्तव मैं यह एक विशुद्ध राजनितिक बयान था जो भगवती जी ने अपने अमरीकी आकाओं को खुश करने के लिए दिया लगता है . शायद उनके बयानों से ओबामा या अमरीका के जोशुआ मिशनरी खुश हो जाएँ जो सदा से मोदी विरोधी रहे हैं . . भगवती जी को याद रहे कि अब वह एक वेतन पाने वाले भारतीय सरकारी कर्मचारी हैं .
बीजेपी विरोधियों का काम उसी के सरकारी कर्मचारियों ने करना शुरू कर दिया ?
क्या हर सरकारी कर्मचारी को राजनीती मैं दखलंदाजी की घातक छूट है ?आरएसएस की दोहरी सदस्यता पर एक बार १९८० मैं जनता सरकार गिर चुकी है . उसके बाद खुलम खुल्ला आरएसएस के साथ बीजेपी पार्टी बनी . स्वयं प्रधान मंत्री , गृह मंत्री व् कई अन्य मंत्री आज भी आरएसएस के सदस्य हैं .भगवती जी ने अपने पहले व्यक्तव्य मैं यदि अपने देश के त्वरित आर्थिक विकास के बारे मैं विचार रखे होते तो समझ आता . फिर चुनाव आयोग के तरह निति आयोग एक संयुक्त संस्था है जिसके श्री भगवती अध्यक्ष भी नहीं हैं . चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों की तरह उन्हें अपने विचार पहले निति कमीशन के अन्य सदस्यों के समक्ष रखने चाहिये . कमीशन को सर्व सम्मति वाले प्रारूप को सरकार को भेजना चाहिए . सार्वजानिक रूप से अकेले बयानबाजी का उन्हें अधिकार नहीं है .
उन्हें यह भी पता होना चाहिए की इरान मैं शाह के समय आर्थिक प्रगति चरम पर थी . तब भी वहां सांस्कृतिक असंतोष के कारण क्रान्ति हो गयी . सोनिया गाँधी के शासन मैं भारत मैं हिंदुत्व का दूर दूर तक निशान नहीं था तो क्या भारत मैं विकास का चरमोत्कर्ष हो गया ? इस देश की एक आत्मा है जिसे विदेश मैं उनके सरीखे लोग भूल चुके हैं . इसलिए अब सिर्फ उन्हें अपना दिया हुआ सरकारी काम करना चाहिए व् चुप रहना चाहिए . अन्यथा वह बीजेपी की २०२३ की हार ही सुनिश्चित कर रहे हैं .
कमीशन मैं बिना किसी को अपने साथ लिए और अकेले अप्रासंगिक रूप से हिंदुत्व व् आरएसएस को विकास मैं बाधा कह कर उन्होंने अपने पद की गरिमा को हानि पहुंचाई है .
इसके लिए उन्हें सार्वजानिक रूप से माफ़ी मंगनी चाहिए . See More