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भारत मैं स्वदेशी , स्वाबलंबन व् स्वधर्म से कैसे अधिक आर्थिक विकास संभव है ? अंग्रेज़ी मीडिया का दुष्प्रचार

भारत मैं  स्वदेशी , स्वाबलंबन व् स्वधर्म से कैसे अधिक आर्थिक विकास संभव है ? अंग्रेज़ी मीडिया का दुष्प्रचार modi bhagwat
  RKU                                         राजीव उपाध्याय
  आज ( २० फरवरी) को टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने सम्पादकीय मैं मोदी व् बीजेपी स…े आर एस एस  को छोड़ अपना स्वंतंत्र चुनाव प्रचार तंत्र बनाने को कहा है . पिछले आठ महीनों से अंग्रेजी मीडिया यही धुन बजा रहा है.इसके अनुसार मोदी को वोट आर्थिक विकास के लिए दिया था हिंदुत्व के लिए नहीं . इनके लिए हिंदुत्व प्रगति मैं बाधक है .
सबसे पहले हम मोदी जी को याद दिलाएंगे की पहले इन बोलने वालों के पुराने इतिहास को देख लीजिये .सन २००२ से अंग्रेजी मीडिया मोदीजी की धुनाई व् धुलाई मैं संलिप्त था .आखिर तक जब तक हार की आस थी वह मोदीजी का विरोध करता रहा .
अब जब मोदी जी प्रधान मंत्री बन गए तो नौ सौ चूहे खाय के बिलारी चली हज को !
इतने सालों के लालची सेठों व् विदेशी कण्ट्रोल ने अंग्रेजी मीडिया को अत्यंत स्वार्थी,देश द्रोही व् विदेशी भक्त बना दिया है. अब तो सिर्फ इसकी बकवास सुन लेनी चाहिए परन्तु उस पार बहुत ज्यादा विश्वास करना आत्महत्या ही होगी . पिछले चुनावों ने बहुत कम मुसलामानों ने बीजेपी को वोट दिया था और यह दिल्ली की तरह यह हर चुनाव मैं होगा , सिर्फ शर्त यह है कि  मुसलमान अपने वोट से बीजेपी को हरा सके  .इसी प्रकार गोवा को छोड़ कर बहुत कम इसाईयों ने उन्हें वोट दिया था . फिर हिन्दू तो न मुसलमान न ही इसाई विरोधी है. वह तो सिर्फ प्रलोभन से धर्म परिवर्तन के विरुद्ध है.
मोदी जी को भी याद रखना चाहिए कि उनकी पहली राष्ट्रीय पहचान हिन्दू हृदय सम्राट की ही थी. विकास मैं तमिलनाडु समेत कई राज्य गुजरात से आगे ही थे . गुजरात मैं बारह साल उन्हें सिर्फ हिन्दुओं ने जिताया था . no democracy just islam
इस लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के अपरिमित भ्रष्टाचार  से दुखी करीब दस से बारह प्रतिशत कांग्रेसी हिन्दू वोट भी बीजेपी को मिला था जिसकी कांग्रेसी  विचारधारा अवश्य है. पर वह भी हिन्दू राष्ट्रवाद के विरुद्ध नहीं हैं बल्कि सिर्फ कट्टरवाद के खिलाफ हैं . vikaas v garibi hataanaa to har koi chahtaa hai is liye ise to mukhy muddaa banaanaa hi padegaa .
परन्तु मोदी जी व् बीजेपी का कोर वोट बैंक हिंदुत्व का ही है जिसने २००९ मैं भी बीजेपी को नहीं छोड़ा . अटल बिहारी वाजपेयी के गांधीवादी समाजवाद ने बीजेपी को दो सीट की पार्टी बना दिया था जो हिन्दू आशाओं पर तुषारापात से फिर हो सकता है . इस लिए जो अभी पहली बार जात  पात के ऊपर उठ कर जो  हिन्दू एकता बनी है उसे तोड़ना ही देश द्रोहियों की दूरगामी चाल होगी . इस के लिए हर तरह के झूठे सच्चे हथकंडे अपनाएंगे . आर एस एस  बीजेपी की जननी है . मात्री या पितृ द्रोह भारत की संस्कृति नहीं है . हम सब को इससे  सावधान रहना अति आवश्यक होगा. जो भी आज सरकार को आर एस एस , वी एच पी या राम मंदिर के  विरोध करने के लिए प्रेरित कर रहा है उसका असली उद्देश्य हिन्दू एकता को तोड़ना ही है. आर एस एस को छोड़ने वाले औरंगजेब या कंस के वंशज हो सकते है राम या कृष्ण के नहीं .
अंग्रेज़ी मीडिया के पक्षपात के दो उदाहरण देते है .  दो सौ से ज्यादा मंदिरों व् गुरुद्वारों मैं चोरी इत्यादि हुयी है जिस पर अंग्रेजी  मीडिया चुप रहा . सिर्फ तीन चार चर्चों मैं चोरी इत्यादी होने को क्यों इतना बढ़ा चढ़ा के दिखाया गया. हिन्दुओं के मंदिरों की तो लाखों एकड़ भूमि छीन गयी . बिहार मैं मुसलामानों को हिन्दू मंदिरों का अध्यक्ष बना दिया . हिन्दू मंदिरों से हज व् जेरुसलम यात्रा के लिए सब्सिडी दी गयी और सब मीडिया वाले चुप रहे . इसी तरह आंध्र मैं सरकारी अनुदानों के दुरूपयोग से लाखों लोगों को कांग्रेसी राज मैं इसाई  बनाया गया पर मीडिया ने चूं तक नहीं की . सोनिया सरकार ने इसाई मिशनरियों के लिए एक नयी वीसा श्रेणी बना दी किसी को कानों कान खबर नहीं हुई . अरुणांचल पूरा इसाई कैसे बना इस का राज क्यों नहीं खोलते? हमारी गलती है की दस घर वापिसी का ढिंढोरा पीटने लगते हैं . थोथा चना बजे घना !
आज जरा से चंद लोगों की घर वापिसी होने पर मीडिया मैं क्यों आग लग गयी ? यदि इसाई मतांतरण का पूरा सच देश को बताया जाय तो सारा देश इसका विरोध करेगा .
अब मूल प्रश्न पर आते हैं ?
क्या हिंदुत्व या स्वदेशी या स्वाबलंबन की सोच से आर्थिक विकास मैं बढ़ा आती है ?
उत्तर है बिलकुल नहीं !
विदेशी पूँजी निवेश हमसे दस गुना ज्यादा चीन मैं है . चीन ने कभी पश्चिम को अपने आंतरिक मामलों मैं दखल नहीं देने दिया . यहाँ तक कि अभी हाल मैं उसने मस्जिदों के इमामों से सड़कों पर डांस करवाया . पश्चिम के प्रेरित टीनामेन स्क्वायर मैं प्रजातान्त्रिक आन्दोलन को टैंकों से निर्ममता से कुचल दिया . राष्ट्रपति क्लिंटन के साथ गयी हिलारी क्लिंटन ने ज़रा सी महिला व् मानव अधिकारों अधिकारों की बात की तो चीन की प्रेस ने उन्हें वहीं धो दिया . चीन ने अपने इतिहास या संस्कृति से ज़रा भी विदेशी छेड़ छड नहीं होने दी.
क्या इससे चीन मैं पूँजी निवेश कम हुआ ? बिलकुल नहीं !
तो हम क्यों सोचते हैं की भारत मैं हिंदुत्व से या स्वदेशी या स्वाबलंबन से आर्थिक विकास मैं बाधा आयेगी?
वास्तव मैं स्वतंत्र होने के उपरान्त भी हम अपनी हज़ार साल कि मानसिक गुलामी  से कभी निकले ही नहीं . अंग्रेजी परस्त मीडिया व् चंद अंग्रेजी वालों ने हमें आज भी आत्म  विश्वास से हीन कर पश्चिमी संस्कृति का गुलाम बनाया हुआ है जो वैलेंटाइन डे जैसे कुप्रयास कर रही है. हमारा हिन्दू व्यापारी व् उद्योगपति सदा से बहुत प्रगतिशील था व् सारे विश्व से व्यापार करता था . मध्य एशिया , अफ्रीका , अमरीकी महाद्वीप तक हमारा व्यापार था . परन्तु राजा व्यापार मैं कभी दखल नहीं देता था बल्कि उसे सुरक्षा देता था. आज क्यों हम उसके स्वाभिमान व् आत्मविश्वास को नहीं जगा पा रहे और उन पर अंग्रेज़ी बाबु राज थोपे हुए हैं ? यदि टाटा ने आज से सौ से अधिक साल पहले इस्पात का कारखाना भारत मैं लगा लिया ( १९०७) तो आज उनके वंशज आज वह क्यों नहीं कर सकते. स्वाबलंबन के लिए सबसे पहले अपना निर्यात आयात से बीस प्रतिशत अधिक कीजिये और यह बढ़त बनाये रखें.
हमें याद रखना चाहिए कि “भारत पर इतने विदेशी हमले इस लिए हुए क्योंकि भारत सदा से बहुत धनी था . हमारे उद्योग व् व्यापार विश्व का बीस से तीस प्रतिशत व्यापार कण्ट्रोल करते थे . इतना ही हिस्सा चीन का था . यह सच है की यूरोप की वैज्ञानिक व् औद्योगिक क्रांति मैं हम पीछे रह गए . परन्तु अब तो वह भी पुरानी बात हो गयी . अमरीका मैं भी तो औद्योगिक क्रांति शुरू नहीं हुयी थी . जब सन १७८१ मैं जब इंग्लैंड मैं स्टीम इंजन( जेम्स वाट ) की इजाद हुयी थी तब तो अमरीका भी इंग्लैंड की गुलामी से आज़ाद ही हुआ था. वह आज कैसे इतना आगे बढ़ गया ? हमें भी तो आज़ाद हुए सडसठ साल हो गए !
सत्य यह है की १९४७ की यथास्थिति से लाभान्वित बाबु , व्यापारी, साम्यवादी  और विदेशियों के भक्तों के वर्ग ने नए प्रखर राष्ट्रीय चिंतन को प्रारंभ ही नहीं होने दिया . देश को मोदी जी से कुछ प्रखर राष्ट्रवाद की उम्मीद थी सो मीडिया वाले पूरी नहीं होने दे रहे. रोज़ कोई छोटी सी बात का बखेड़ा बना कर सरकार को डराए हुए हैं . धर्मनिरपेक्षता का आर्थिक प्रगति से कोई सम्बन्ध नहीं है. चीन की तरह ही हम भी स्वदेशी , स्वधर्म व् स्वाबलंबन से उतनी ही तेज़ी से विकास कर सकते हैं . इसके लिए विदेशियों के लिए  सिर्फ पूंजी निवेश को अधिक सरल बनाना होगा व् उन्हें अधिक सुविधा व् मुनाफ़ा देना होगा . यह विदेशियों की मदद तकनिकी अनुसंधान ,शिक्षा व् डिजाईन के क्षेत्र मैं भी लेनी चाहिए जिससे हमारे तकनिकी ज्ञान को भी विकसित विदेशियों के सदृश बनाया जा सके. समस्या यह है कि हमारी भ्रष्ट सरकारें चंदों के लिए उनका खून चूसने के लिए सदा तत्पर रहती हैं इस लिए वह हमारे यहाँ नहीं आते . परन्तु पश्चिमी की संस्कृति के अनुकरण से आर्थिक विकास का कोई सम्बन्ध नहीं है. यह दो  अलग बातें हैं. हम अपने आदर्शों ,धर्माचरण ,आत्मविश्वास व् स्वाभिमान से ही जल्दी विकसित हो सकेंगे .
चीन, जापान व् यूरोप के सब देश बिना अंग्रेज़ी के ज्ञान के आगे बढ़ गए . किसी ने अपना धर्म, भाषा या संस्कृति नहीं छोडी . केवल हम ही इस अंग्रेजी संस्कृति की भक्ति के नमूने बचे हैं .
वास्तव मैं मोदी जी से भारतीय सस्कृति रक्षक के जिस विराट रूप की आशा थी वह तो पूरी होना अभी शेष है. संस्कृत के पाठ्यक्रम मैं वापिस लेन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हुआ. हमें आशा है की हिन्दू ह्रदय सम्राट बने रहेंगे और इसके लिए उन्हें किसी धर्म के अनुयायियों को प्रताड़ित नहीं करना होगा क्योंकि हिन्दू किसी की दुःख से कभी सुखी नहीं होता है.
यह भी समझ लिया जाय की हिन्दुओं के आगे बढ़ने से ही देश आगे बढेगा . क्योंकि जब हिन्दुओं की समृद्धि बढ़ेगी तभी मुस्लिम कारीगरों की आमदनी बढ़ेगी. चाहे वह चिकेन का कामवाला  हो या बनारसी साड़ी या नाइ या रिक्शे वाला , हिन्दू प्रगति मैं सब का हित है. अगर यह प्रगति प्रखर राष्ट्रवाद से आनी है तो उसे आने दें . इसका सबसे सुन्दर उदाहरण तो दूर नहीं गुजरात ही मैं देखने को मिल जाएगा जहाँ का मुसलमान बिहारी मुसलमान से कहीं अधिक समृद्ध है.
इस लिए एनडीटीवी व् टाइम्स ऑफ़ इंडिया सदृश मीडिया वालों की हिन्दू विरोधी सलाहों व् बातों का तिरस्कार व् बहिष्कार आवश्यक है . See More
Filed in: Articles, Economy, संस्कृति

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