पञ्च सितारा एक्टिविस्ट व् न्यायलय द्वारा कार्यपालिका व् संविधान का अतिक्रमण : क्यों प्रधान मंत्री ने ठीक समय चेताया है.
१९९३ में सर्वोच्च न्यायलय ने सेना व् पाकिस्तानी समर्थित आतंकियों के बीच जब हजरतबल मैं लड़ाई चल रही थी और उसे घेर रखा था तो यह आदेश दिया की घेरे हुए आतंकियों को कम से कम १२०० कैलोरी का खाना पहुंचाया जाय . तो क्या कल सीमा पर या मुंबई हमले के दौरान सेना आतंकियों को मारे या उनकी रक्षा के लिए खाने पहुंचाए . सर्वोच्च न्यायलय का ऐसे आदेश देना देश की सुरक्षा को ख़तरा पहुंचा सकता है क्योंकि उसे नहीं मालूम हो सकता की आतंकी कितने हथियारों से लेस है .यदि खाना देने आये सैनिकों को वह मार देते तो कौन जिम्मेवार होता . राजा कस्तूरी रंगन को अफज़ल खान ने खाने के न्योते पर ही दबा कर मारा था.
कल के प्रधान मंत्री के न्यायाधीशों को दिए गए भाषण का देश द्रोही व् बिकाऊ मीडिया तो गलत मतलब ही प्रसारित करेगा ही क्योंकि उसके विदेशी आकाओं को मोदी जी फूटी आँख नहीं भाते .परन्तु देश के प्रबुद्ध लोगों का कर्तव्य है की इस विषय का अध्ययन कर पिछले कुछ वर्षों मैं जो न्याय प्रणाली मैं कार्यपालिका व् संविधान के अतिक्रमण से विसंगतियां आ गयीं है उन्हें दूर किया जाय .इसमें विदेशी जासूसी संस्थाओं के समर्थित पांच सितारा एक्टिविस्ट का भी बड़ा हाथ है . देश ने प्रधान मंत्री पर विश्वास व्यक्त कर उन्हें एक जिम्मेवारी दी है जिसका निर्वाह करने देना देश की सब संस्थाओं का काम है.
कुछ फैसलों का समय बीत जाने के कारण आज निष्पक्ष पुनर्विचार सम्भव है . अमरीका व् यूरोप जो प्रति व्यक्ती हम से बीसियों गुना अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं वह नहीं चाहते कि भारत व् चीन तेल य कोयले से बिजली बनायें . अन्य तरीकों से बिजली बनाना महंगा भी है और उनकी तकनीक मैं व्यापक आयात करने की आवश्यकता है . इसलिए उनकी गुप्त संस्थाओं ने जल बिजली परियोजनाओं के विरोध के लिए परोक्ष सहायता देना प्रारंभ कर दिया . उस पञ्च सितारा जन आन्दोलन को विस्थापितों समर्थन मिलना तो अवशम्भावी था . अख़बारों व् टीवी चैनलों को रंग रंग कार्यक्रम मैं अनशनकारियों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करने का मौक़ा मिल गया .वे भी तो इसी तरह की वित्तीय सहायता पाते रहते हैं .
नर्मदा डेम का निर्माण की स्कीम सन १९८० की है . सन १९८९ मैं मेधा पाटकर व् अरुंधती रॉय का नर्मदा बचाओ आन्दोलन प्रारंभ हुआ . सन १९९१ मैं उन्हें कोई विदेशी अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार भी दे दिया गया . फस्वरूप सन १९९४ मैं विश्व बैंक ने इसके निर्माण के लिए आर्थिक सहायता देनी बंद कर दी. अंततः नर्मदा बांध का निर्माण सर्वोच्च न्यायलय ने १९९९ मैं रोका और बाद मैं उसकी उंचाई ८० मीटर से बढ़ा कर ८८ मीटर करने की अनुमति दी . फिर सन २००० मैं ऊँचाई ८८ मीटर से बढ़ा कर ९० मीटर करने की अनुमति दी .उसके बाद सन २००२ मैं कार्य रोक दिया गया और फिर ९५ मीटर ऊँचाई बढ़ने की अनुमति दी . सन २००४ मैं फिर ११० मीटर ऊँचाई बढ़ने की अनुमति दी . सन २००६ मैं फिर कार्य रोक दिया गया व १२१.९ मीटर उंचाई बढाने की अनुमती दी गयी . अंततः सन २०१४ मैं पूरी ऊँचाई १३४ मीटर का निर्माण करने की अनुमती दी गयी.
प्रश्न है की चीन ने २६००० डेम बना कर पूरी जल विद्युत् शक्ति का उपयोग कर लिया . वहां इन पञ्च सितारे स्वयं सेवी संस्थाओं को देश द्रोह नहीं करने दिया जाता .और हमने एक बाँध को बनाने की मात्र अनुमति देने मैं पंद्रह वर्ष गंवा दिए . यही हाल वाजपेयी जी की सन २००३ की ५०००० मेगावाट जल बिजली परियोजना की स्कीम का हुआ . सुवर्णश्री नदी की परियोजना पर सर्वोच्च न्यायलय ने नहीं रोका तो नॅशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रोक दिया . अब तो काम करने वाली एक सरकार और रोकने वाले हज़ार हो गए हैं . तिस पर सरकारी कर्मचारियों को न्यायलय का आदेश न मानने पर दण्डित करना शुरू कर दिया है .
यह ‘ग्रीन ‘, ‘ मानवाधिकार’, समाज कल्याण इत्यादि जन लुभावक नाम विदेशी जासूसी संस्थाएं पूरे प्रयोग मैं लातीं हैं जिससे जनता को भ्रमित किया जा सके . जब परमाणु विद्युत् घर रूस की सहायता से तमिलनाडु मैं बन रहा था तो फिर कोई पञ्च सितारा अभियान पश्चिमी ताकतों ने उसे रोकने की लिए छेड़ दिया .धर्म परिवर्तन के लिए आदिवासियों को भड़काया जता है . आंध्र मैं वाई एस आर रेड्डी काल मैं ऐसी ही संस्थाओं से निरे चर्च बनवा लिए गए .
इस तरह के अनेक उदाहरण मिल जायेंगे और विदेशी पुरुस्कारों से देशद्रोह का महिमामंडन शुरू हो गया है .
अब एक अन्य तरह के अतिक्रमण को लें . दिल्ली मैं सर्वोच्च न्यायालय ने इकतरफा आदेश दिया की बस व् तिपहिये स्कूटर सीएनजी गैस से चलायें जाएँ . दिल्ली इस के लिए तैयार नहीं थी . बसों का चलना बंद हो गया . छात्र आन्दोलन हुए . जो अच्छे परिणाम आये वह अपनी जगह हैं परन्तु बाद मैं सुनने मैं आया की न्यायाधीश सभरवाल के लड़के की अकेली गैस किट की एजेंसी थी और उसे इससे अत्यधिक फायदा हुआ. इसका सत्यापन तो नहीं हुआ पर जनता मैं अख़बारों से यह खबर बहुत फ़ैली थी . अगर कुछ अच्छे परिणाम भी आये हों परन्तु यह निति निर्धारण का कार्य सर्वोच्च न्यायलय का नहीं था . ऐसे ही लोह अयस्क के खनन पर रोक की बात है .यह सब कार्य पालिका के क्षेत्र मैं सर्वोच्च न्यायलय का अतिक्रमण था हालाँकि इसके कई कारण भ्रष्टाचार ने भी दिए थे .
एक अन्य नया पहलु सौइयों टीवी चैनलों के आ जाने से एक मीडिया ट्रायल का है . वह तो अपनी टीआरपी के लिए खबर को मसालेदार बनाते जाते हैं पर इससे सरकार व् न्याय प्रक्रिया अत्यधिक प्रेशर मैं आ जाती है. एक उदाहरण लें . प्रधान मंत्री राजीव गाँधी व् पंजाब के मुख्य मंत्री के के हत्यारों को तो फांसी नहीं देने दी गयी न ही नोइडा के नरभक्षी पंधेर को अभी फांसी हुयी पर निर्भया बलात्कार काण्ड के हत्यारों को फांसी देने का मीडिया के चलते बहुत दबाब है .उनका कृत्य भी बहुत बुरा था पर नरभक्षी व् प्रधान मंत्री की ह्त्या से अधिक जघन्य नहीं था. टीआरपी की खोज मैं देश हित बहुत पीछे छूट जाता है ..एक अन्य नया पहलु सौइयों टीवी चैनलों के आ जाने से एक मीडिया ट्रायल का है . इससे सरकार व् न्याय प्रक्रिया अत्यधिक प्रेशर मैं आ जाती है.
संविधान मैं न्याय पालिका , कार्य पालिका व् संसद के अलग क्षेत्र थे . न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का अधिकार था .जबसे मिली जुली कमजोर सरकारों का युग आया है न्यायपालिका ने संसद व् कार्यपालिका के कार्य क्षेत्र मैं दखल देना शुरू कर दिया है . समय आ गया है की वह भी समझें की मिली जुली सरकारें एक विकृति थीं . अब जनता ने पहली बार एक सशक्त सरकार को चुना है. यदि इस सरकार को यदि पञ्च सितारा एक्टिविस्ट के चलते काम नहीं करने दिया गया तो फिर देश को विकास का मौक़ा कब दुबारा मिलेगा यह पता नहीं .न ही सरकार फैसले लेने मैं अक्षम है .इसलिए अपने क्षेत्र के फैसले इसे ही लेने दिए जाएँ .
कोई न्यायलय पर राजनितिक दबाब बनाने को नहीं कह रहा अपितु मीडिया व् पञ्च सितारा एक्टिविस्ट के दबाब मैं अन्यथा वकीलों की तरफ से दबाब मैं न आ कर संविधान के तीन अंगों को अपने निर्धारित कार्य सुचारू रूप से करने का मौक़ा दिया जाना चाहिए . हमें अपनी न्याय व्यवस्था पर गर्व भी है और बहुत आशा भी .
प्रधान मंत्री की अपील सामयिक एवं चिंतन योग्य है .