जनरल वीके सिंह के विरुद्ध भ्रामक प्रचार : मीडिया व् बाबुओं के देश द्रोह की सीमा क्या है
हमारा मीडिया विदेशियों के हाथ बिका हुआ यह तो सब जानते हैं . पर पैसे के लिए यह कितना गिर सकता है यह शायद सब न जानते हों .
जब हमें अपनी पानीपत से चीन तक युद्धों मैं लगातार हार और एक हज़ार साल की गुलामी पर इतना क्षोभ हो की हम उसके कारणों को जान कर मिटाना चाहते हों तब हमें एक बार ठन्डे दिमाग से जनरल वीके सिंह के साथ जो दुर्व्यवहार मीडिया व् बाबुओं ने किया है उसे गौर से सोचना व् समझना चाहिए . देश की लम्बी गुलामी का राज हमें अपने आप समझ आ जाएगा .
जनरल वीके सिंह से पहले हमने जो पाकिस्तान के भूत पूर्व राष्ट्रपति के जो व्यवहार किया उसे सम्झें . जनरल परवेर्ज मुशर्रफ़ आई एस आई के भूत पूर्व अध्यक्ष थे . उनके मन मैं भारत के प्रति नफरत कूट कूट के भरी हुयी थी . जब हमारे प्रधान मंत्री वाजपेयी बस यात्रा पर लाहोर गए तो मुश्ररफ ने सेना प्रमुख के रूप मैं वाजपेयी को सलामी देने से इनकार कर दिया .यह कुटनीतिक प्रोटोकोल कि बड़ी अवमानना थी . पर न तो पकिस्तानी सरकार न ही मीडिया ने उनको बुरा बताया बल्कि वह वहां के हीरो बन गए . उसके बाद जब वह कारगिल युद्ध कर पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन कर भारत आये तो हमारे मीडिया ने चौबिस घंटे उनको ऐसा कवर किया जैसे शायद अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा को भी नहीं किया गया हो. क्या बाबु क्या नेता सब उनके महिमा मंडन मैं पीछे नहीं रहना चाहते थे . सब ने यह भुला दिया कि वह भारत के इतने विरुद्ध थे , उन्होंने वाजपेयी कि लाहौर यात्रा का जबाब कारगिल से दिया था . और हमारा मीडिया कभी उनकी बॉडी लैंग्वेज का विश्लेषण , उनकी पुरानी हवेली का वर्णन उनके पुराने खिदमतगारों का विश्लेषण इत्यादि मैं लगा रहा .
इसके विपरीत हमारा उच्च बाबू वर्ग भारतीय सेनाओं का दुश्मन है. वह सेना को रक्षा मंत्री के नहीं बल्कि बाबुओं के नीचे मानता है . इस को सिद्ध करने के लिए वह किसी भी नीची हद तक जा सकता है . एक रैंक एक पेंशन की सेना की उचित मांग को वह वर्षों से शब्द जाल मैं फंसा रखे है . सेना प्रमुखों को अपमानित करने मैं उसे विशेष आनंद आता है . क्योंकि इससे उसकी शक्ति का सब को पता चल जाता है.
यदि जनरल वीकेसिंह पकिस्तान दिवस पर पाकिस्तानी दूतावास पर जाते हैं और वहां उन्हें वह अलगवादी मिलते हैं जिनसे उन्होंने जिंदगी भर लड़ाई की तो उन्हें क्या करना चाहिए ? यदि जनरल मुशरफ वहां होते तो क्या करते ? इसका उत्तर है कि उन्हें वही करना चाहिए था जो उन्होंने किया . वह दूतावास गए और अपनी सरकार के पाकिस्तानी मित्रता कि चाह को बता दिया . पर जब वहां आतंकवादियों के समर्थक व् अलगाव वादी कश्मीरी दीखे तो उन्होंने उनसे बराबरी की बातचीत करने का बजाय जल्दी से पार्टी सम्मान पूर्वक छोड़ दी . बाद मैं आ कर उन्होंने अपनी व्यथा ट्वीट कर देश को बता दी . क्यों हमारे मीडिया ने उनकी देश भक्ति को न देख व्यर्थ का दुष्प्रचार प्रचार करना शुरू कर दिया . हमारा मीडिया या तो इस्लामिक या पश्चिमी इसाई राष्ट्रों का खरीदा हुआ है .इसलिए यह उनके हितों व् समर्थकों को बचाता है . इसे भारतीय देश भक्त कभी नहीं अच्छे लगेंगे . जब भगत सिंह , राजगुरु व् चंद्रशेखर आज़ाद को स्कूली किताबों मैं आतंकवादी बताया था तो इसने अपनी चप्पी से उसका अनुमोदन किया था .
इसके पहले जब वीकेसिंह सेना प्रमुख थे व् उनका सरकार से अपनी जन्म तिथि का विवाद था तो भी मीडिया ने देश द्रोह की सब सीमाओं को पार करते हुए सेना की एक टुकड़ी की दिल्ली की तरफ आने को सैनिक क्रांति कहती हुयी अखबारों मैं सुर्ख़ियों से छाप दिया . उस झूटे पत्रकार को पद्म भूषण भी दे दिया. उस षड्यंत्रकारी बाबु को पांच साल का संवैधानिक पद दे दिया . सेना को अपने जूते के नीचे रहने की कवायद पूरी हो गयी . यह नहीं की ये उच्च सरकारी बाबू देश द्रोही हैं . पर वह यह नहीं समझते की अपनी जान देना एक आदर्शवादी सैनिक की देश के लिए सबसे बड़ी कुर्बानी है . इसके लिए यदि उसका सम्मान किसी चीज से कम हो गया तो उसकी हार अवश्यम्भावी है. सेना के लिए सम्मान जीवन के लिए ऑक्सीजन की तरह आवश्यक है . सेना की इस सम्मान को बचाना हर राष्ट्र प्रेमी का कर्तव्य है .सैनिकों मैं अभिमान होता है पर वह उनकी सफलता के लिए आवश्यक होता है . जनरल राजनीतिज्ञों व् सिविलियन्स को हेय मानते हैं . वह उनके लिए आवश्यक है . बाबुओं को इसे शिव के विषपान की तरह पी जाना ही श्रेष्ठ होता है . पर इसको समझने के लिए अब भगवान् शिव कहाँ रह गए . अब तो बौनों का युग है ? बौने युग मैं अब लंबा जनरल होना पाप है . उच्च बाबुओं का सेना प्रमुखों को आपस मैं लड़ा कर मंत्रियों के चंदे इकट्ठा कर उनके चहेते बने रहना अच्छी तरह आता है . कोई मंत्री हो वह रक्षा सौदों मैं सेना प्रमुखों से नहीं अटकना कहता . रक्षा सचिवों से उनके पुराने सम्बन्ध होते हैं इसलिए वह उसी की तरफ झुक जाता है .
मीडिया तो अब रखैल है जो पैसा दे दे उसकी मीत है . सेना उसे पैसा क्यों देगी ? उसे पैसा तो देश द्रोही ही देंगे क्योंकि वह किसी हथियार को बेच करोड़ों कमाएंगे . इसलिए मीडिया कभी सेना के भ्रष्टाचार को उजागर करेगा या अब वी के सिंह जैसे इमानदार जनरल आ गए तो उनकी ट्वीट पर दुष्प्रचार करेगा . यमन से भारतियों को निकाल लिया इसका कोई मूल्य नहीं पर बस एक ट्वीट का गाना हर चैनल पर बजेगा . उसे तो सेना पर विश्वास कम करना है जिससे हम अगली लड़ाई हार जाएँ .
हम मीडिया की स्वतंत्रता चाहते है पर देश द्रोह की सज़ा देना भी आवश्यक होता है .
जनरल वीके सिंह का यह अपमान देश द्रोह का षड़यंत्र ही है .