रक्षा सौदे : देश मोदी सरकार से बार बार अग्नि परीक्षा न मांगे : परन्तु रक्षा मैं स्वदेशी चिंतन की आवश्यकता है
रामायण की पुराणी कहानी मैं नए युग के भारत के लिए लिए कैसे शिक्षाएं अन्तर्निहित है , यह हाल की फ़्रांस के हवाई जहाज रेफल के नए सौदे से हुए हो हल्ले मैं दीखती है.
लंका युद्ध के उपरांत जब भगवान् राम ने माता जानकी से अग्नि परीक्षा को कहा तो उन्होंने समाज ,पति के आदर व् सम्मान के लिए सहर्ष स्वीकार कर लिया .परन्तु जब मात्र एक शराबी धोबी के कहने पर दुबारा अग्नि परीक्षा को कहा तो माता जानकी ने अयोध्यापति महाराजा राम को त्यागना ही उचित समझा . भगवान् राम को अंत तक अकेले ही रहना पडा .
बार बार अग्नि परीक्षा नहीं मांगी जाती है .
इसी तरह कोयले के ब्लोकों की सार्वजानिक नीलामी से दो लाख करोड़ रूपये कमा कर और २ जी की नीलामी से एक लाख करोड़ रूपये कमा कर सरकार ने अपनी एक अग्नि परीक्षा दे दी . अब यदि हर बात पर जनता कांग्रेसी धोबी के कहने पर अग्नि परीक्षा मांगेगी तो वही परिणाम होंगे जो इस कहानी मैं अभी बताये गए हैं . सरकार देश की हितेषी है . अब उसका बार बार मीडिया ट्रायल नहीं किया जा सकता . यदि रक्षा मंत्री व् प्रधान मंत्री को फ़्रांस से सरकारी सौदा करना उचित लगता है तो वही करें . इस हवाई जहाज के सौदे मैं तो टेंडर निकल चुका है . रफल जहाज चुना जा चुका है . प्रधान मंत्री को देश हित मैं कार्य करने की स्वतंत्रता होनी कहिये . दसियों चुनाव हार कर कांग्रेस शराबी धोबी की तरह अर्न गल प्रलाप करे तो करे अन्यथा परम्परा तो यह है देश की रक्षा व् विदेश निति सर्व सम्मति से बनती है . इसी लिए प्रधानमन्त्री नर सिंह राव जी ने अटल बिहारी वाजपयी को देश का प्रतिनिधित्व विदेशों में करने दिया था.
भारत को अपनी रक्षा क्रय शक्ति का राजनितिक उपयोग अवश्य करना चाहिए क्योंकि बांग्लादेश युद्ध बिना रूस की सहायता के नहीं जीता जा सकता था.कारगिल युद्ध भी बिना फ़्रांस व् इजराइल की सहायता के नहीं जीता जा सकता था . इसलिए राजनितिक मित्रता भी बहुत आवश्यक होती है.
परन्तु सरकार के इस समर्थन के बाद हम यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे की हमें सरकार की रक्षा नीति पर विदेशी चिंतन हावी लगता है .
अमरीका की नौ सेना कम होती जा रही है . पंद्रह साल मैं उसके युद्ध पोत साठ के दशक से आधे रह जायेंगे . इंग्लॅण्ड पहले ही एक छोटी शक्ति बन चुका है .इससे पश्चिम की नौ सेना शक्ति एशिया तक नहीं पहुंचेगी. चीन बहुत तेजी से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहा है . इस लिए अंतर राष्ट्रिय समुद्र मार्गों को निर्विरोध खुला रखने के लिए शायद अमरीका भारत को अपनी जल सेना बढ़ने को कह रहा है .क्योंकि हमारी तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व के राष्ट्रों से होती है और पाकिस्तान ने चीन को ग्वादार बंदरगाह दे दिया है हमें मैं भी यह ठीक लगता है.
परन्तु अमरीका का चीन से जमीन पर युद्ध का ख़तरा नहीं है .
परन्तु हम तो एक बार सन बासठ में चीन से व् गुप्त काल मैं हूणों से युद्ध हार चुके हैं .भारत की गुलामी स्थल सेना की पराजय की अनंत कहानी है. पहाड़ों पर युद्ध करने में हम बहुत कमजोर हैं . चीन सीमा पर हमारा सड़कों का जाल भी बहुत कम है . चीन तिब्बत तक रेल ला चुका है .रक्षा मंत्री का हाल मैं बनाये गए माउंटेन डिवीज़न के बजट को आधा कर चालीस हज़ार सैनिक करना उचित नहीं लगता . हम सदा से जमीनी युद्ध करते और हारते आये हैं . पर दूर की बातों में हम अब स्थल सेना को बराबर महत्त्व नहीं दे रहे वह अनुचित है . १९६२ की शर्मनाक हार के बाद भी जब संसद पर हमला हुआ और जब मुंबई काण्ड हुआ तो हमारे पास पर्याप्त रक्षा सामग्री नहीं थी और छः महीने सीमा पर रह कर हम पीछे आ गए . जनरल वी के सिंह ने तत्कालीन प्रधान मंत्री को आगाह किया था की भारत के पास टैंक व् तोपों के गोले नहीं हैं .
तोपें हैं पर गोले नहीं ऐसा सरकार ने कैसे हो जाने दिया ? कोई टेंडर की इमानदारी दिखने के लिए ? धिक्कार है इस सोच पर !
सेना मैं बाबूराज देश को डुबो देगा ? रक्षा सचिव किसी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक को बनाना चाहिए जो अपना सारा समय सेना प्रमुखों को नीचा दिखाने मैं न गुजार दे .
सरकार भी यदि देश की रक्षा से अधिक रक्षा सौदों पर यदि ध्यान न दे तो अधिक उचित होगा .
स्थल सेना देश की प्रथम रक्षक है . कमीशन एजेंटों य नव उदित उद्योग पतियों के कहने पर उसके बजट को काटना मूर्खता होगी . देश की रक्षा नीति देश के विशेषज्ञों को वास्तविक खतरों के अनुसार बनानी चाहिए और विदेशी आकाओं , उद्योगपतियों व् बाबुओं की इसमें दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए .
यदि बिना माउंटेन डिवीज़न के बिना हमने पाकिस्तान के अगले हमले पर प्रतिक्रया दी या साउथ चाइना समुद्र मैं दखल दिया तो चीन १९६२ की तरह हमें एक चपत मैं ठंडा कर देगा .
सरकार का हम पूर्ण समर्थन करते हैं पर हम पुनः आग्रह करेंगे की रक्षा सौदों से अधिक देश की रक्षा पर ध्यान दे .

