गत वर्ष की धीमी औद्योगिक व् आर्थिक प्रगति : सीमायें ,कारण व् निवारण : वाजपेयी व् मनमोहन सरकार के अनुभवों की सीख
आज करे सो अब कर — — — कल प्रलय हो जाएगी बहुरी करेगा कब ? राजीव उपाध्याय
चित्र अनेकों लेखों से सधन्यवाद उद्धृत हैं
बीजेपी या कांग्रेस का प्रचार तंत्र कुछ भी क्यों न कहे , देश की जनता जानती है की गत वर्ष मैं मंहगाई व् बेईमानी तो कम हुयी है पर जिस त्वरित आर्थिक प्रगति की उम्मीद थी वह नहीं हुयी . न ही विदेशी निवेश बहुत बढ़ा , न नए उद्योग बहुत लगे लगे और न ही बहुत नयी नौकरियां बनी परन्तु बिजली की स्थिति मैं अवश्य सुधार हुआ है . देश की जनता का मंहगाई कुछ कम होने से व् बेईमानी पर लगाम लगने से अभी भी मोदी जी पर भरोसा है . परन्तु अब इस भरोसे की सीमा भी पास आने लगी है और इसे सरकार का कोइ झूठा प्रचार नहीं बचा पायेगा . परन्तु इस रफ़्तार पर त्वरित औद्योगिक व् आर्थिक विकास दो साल दूर दीख रहा है जो बहुत अधिक है .
इसलिए अब जनता को सच्चाई को स्पष्ट बताने व् समझने का समय आ गया है .`
वर्ष के प्रारंभ में , जीत के बाद , मोदी सरकार के पास दो विकल्प थे . या तो पहले मंहगाई रोक लो या आर्थिक प्रगति को तेज कर लो .परन्तु आर्थिक प्रगति को ज्यादा तेज करने के लिए कुछ प्रमुख कानूनों मैं बदलाव आवश्यक था . राज्य सभा मैं मात्र पैसठ के लगभग सीटों से उन कानूनों मैं बदलाव संभव नहीं था . दूसरे दस प्रतिशत की मंहगाई की दर से कीमतें जिस रफ़्तार से बढ़ रहीं थीं उससे जनता त्राहि त्राहि कर रही थी और विदेशी संस्थाओं से निवेश या ऋण भी संभव नहीं था क्योंकि भारत की अर्थ व्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का विश्वास उठ गया था . . इस लिए सरकार ने मंहगाई को रोकने को प्राथमिकता दी . अंतरराष्ट्रीय तेल के मूल्यों मैं कमी के कारण सरकार काफी हद तक मंहगाई को रोकने मैं सफल हो गयी . इससे जनता को भी कुछ राहत मिली . विदेशों मैं भी हमारी साख कुछ बढ़ी . परन्तु इसके लिए मुद्रा के प्रसार पर रोक लगानी पड़ी और रिज़र्व बैंक ने ब्याज दर मैं कटौती नहीं की . अपनी इस सफलता के कारण बीजेपी को कई राज्यों मैं चुनावी सफलता भी मिली .
परन्तु औद्योगिक प्रगति व् पूंजी निवेश शुरू नहीं हो पाया . यदि मोदी सरकार का प्रथम वर्ष व् मनमोहन सिंह सरकार के प्रथम वर्ष ( २००९) की आर्थिक प्रगति की तुलना करें तो नीचे दिए चित्र से स्थिति स्पष्ट हो जाती है .
इससे दीखता है कि आर्थिक व् औद्योगिक विकास को छोड़ कर शेष अन्य विषयों मैं मोदी सरकार की एक वर्ष की प्रगति मनमोहन सिंह सरकार के अत्यधिक सफल वर्ष के बराबर ही है . इसलिए स्थिति को एक तरह से संतोषजनक माना जा सकता है क्योंकि मनमोहन सिह की सरकार अपने प्रथम कार्य काल आर्थिक प्रगति मैं बहुत सफल थी . परन्तु २०१४ मैं वह अपने पतन की चरम सीमा पर थी जैसा की आगे लेख मैं स्पष्ट हो जाएगा .
वाजपेयी सरकार को १९९९ मैं ३.९ % की विकास दर व् ८.२६ % की महंगाई धरोहर मैं मिली थी . इसे पांच वर्षों के प्रयास से आर्थिक प्रगति की दर ८.३ % , औद्योगिक प्रगति की दर ८ प्रतिशत व् मंहगाई को मात्र ३.८ % करने मैं सफलता मिली . इस दौरान छः करोड़ नयी नौकरियां बनी जो मनमोहन सरकार के दिनों मैं घाट कर १.४ करोड़ रह गयी . देश प्रगतिशील व् खुश हाल दीख रहा था . परन्तु इन सब सफलताओं के बाद भी वाजपेयी सरकार चुनाव हार गयी . इसका मुख्य कारण गाँव मैं गरीबों तक खुश हाली का नहीं पहुंचना था . बीजेपी के वोट कम नहीं हुए न ही कांग्रेस के वोट बढे पर बीजेपी हार गयी ( बीजेपी ८.५ करोड़ , कांग्रेस १० करोड़ ) पर वाजपेयी जी हार गए . बीजेपी आज भी इस हार को पचा नहीं पायी है.
मनमोहन सरकार ने पहले पांच सालों मैं भारतीय अर्थ व्यवस्था को विकास के चरमोत्कर्ष पर ला दिया . आर्थिक विकास दर सन २००८ मैं ८.५ % और २००९ मैं १० % हो गयी .
हो गयी . देश विदेश मैं भारत की अर्थ व्यवस्था के डंके बजने लगे . विदेशी निवेश वाजपेयी सरकार के समय मात्र $ ४ बिलियन सबध कर सन २०११-१२ मैं ४६ बिलियन डालर गया .
परन्तु मनमोहन सरकार के आर्थिक विकास से नयी नौकरियां नहीं बढ़ी . इस दौरान सी डब्लू जी घोटाला खुल गया उसके बाद जो घोटालों की लहर आयी उसने सोनिया गाँधी को बहुत असुरक्षित कर दिया . जनता के घटते विश्वास को कम करने की आशा मैं उस समय उनकेअज्ञानी व् दुर्बुद्धि वाले सलाहकारों ने मनमोहन सिंह के ज्ञान व् अनुभवको दरकिनार कर एक दुर्योधन सरीखी वोट खरीदने की नीति शुरू कर दी . तो जो मुफ्त की चीज़ें बाँटने का सिलसिला शुरू हुआ उससे अर्थ व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी जिसका अंदाजा निम्न लिखित आंकड़ों से लगाया जा सकता है .
१. मंहगाई लगातार दस प्रतिशत की दर पर चली गयी . सन २००९ से २०१४ तक औसत मंहगाई लगभग नौ से दस प्रतिशत रही .
२. भ्रष्टाचार के अतिरिक्त इस मंहगाई का मुख्य कारण था कि जो सब्सिडी अर्थ शास्त्री मनमोहन को एक आँख नहीं भाति थी वह उन्ही के राज मैं वाजपेयी जी के काल मैं ४४३२७ करोड़ से बढ़ कर २,३१,५८४ करोड़ हो गयी . यह सब्सिडी सकल घरेलु उत्पादन का १.६ से बढ़ कर २.६ % हो गयी जब की देश का रक्षा का बजट मात्र 1.74 % है . सब्सिडी देश के रक्षा के बजट से बड़ी व् आर्थिक प्रगति के लिए प्राण घातक हो गयी . रोज़ कभी मनरेगा तो कभी फ़ूडी सब्सिडी या बढ़ी खाद्यान दरें की घोषणा होने लगी . फेक्टोरियों के लगाने की कीमत और उनके उत्पादन की वार्षिक कीमत की दर ४ से बढ़ कर ६.६ हो गयी .
इस लिए भारत मैं फैक्ट्री लगाना इतना मंहगा हो गया कि भारतीय उद्योगपति भारत के बजाय विदेशों मैं करने लगे . वाजपेयी के समय सन २००३ से विदेशों मैं भारतीय निवेश ३५ गुना बढ़ गया और अब तक २४१ बिलियन डॉलर हो गया . सन 2011-12 मैं भारत मैं निवेश 46 बिलियन डॉलर और भारतियों द्वारा विदेशों मैं निवेश 30 बिलियन डॉलर हो गया . इसकी पराकाष्ठा गत वर्ष हो गयी जब भारत मैं निवेश २४.३ बिलियन डॉलर था और भारतियों द्वारा विदेशों मैं निवेश ३८ बिलियन डॉलर हो गया . इनमें से कुछ टाटा सरीखा देश हित मैं भी था . परन्तु पहली बार भारत मैं आने वाली पूँजी से भारत से बहार जाने वाली पूँजी ज्यादा हो गयी . भारतीय उद्योगपति थाईलैंड मैं फैक्ट्री लगाने की सोचने लगेया चीन से उत्पादन करने के विकल्प तलाशने लगे . भारत मैं प्राइवेट निवेश जो पहले ४३ % की दर से बढ़ा था घट कर मात्र १.४ % रह गयी . दूसरा प्रभाव सड़कों बिजली परियोजनाओं पर हुआ . बिजली के कारखाने बन कर भी कोयले के अभाव मैं चल नहीं रहे थे . सब तरफ बदहवासी थी और देश का आर्थिक विकास अन्धकार के कुँए मैं डूब गया .
एक हारते हुए जुआरी की तरह बदहवास कांग्रेस ने बचने के लिए एक के बाद एक लोक लुभावनीस्कीमों की जो घोषणा की उससे अर्थ व्यवस्था पूरी तरह टूट गयी .
३. इस दौरान दरी कांग्रेस ने रिश्वत लेकर भी उद्योगपतियों को जान बचाने के लिए रिश्वत के केसों मैं फंसाना शुरू कर दिया . कुछ उद्योगपति तो देश छोड़ कर भागने के लिए मजबूर हो गए . भारत मैं इन परिस्थितियों मैं कौन उद्योग लगाता ?
मोदी सरकार की समस्या :
मोदी सरकार को राज्यों के चुनाव जीतने थे इसलिए वह सब्सिडी भी कम नहीं कर सकी . मनरेगा जैसी व्यर्थ की स्कीमें चलती रहीं . जब सब्सिडी कम नहीं हो सकती थी तो मंहगाई को रोकने के लिए ब्याज दर कम नहीं कर सकती थी . उद्योगों को सस्ता कर्जा या ज़मीन देना आज भी असंभव है . मनमोहन की सर्वोत्तम विकास दर बेतहाशा मुद्रा स्फीति से पैदा की गयी थी और मंहगाई उसकी कीमत थी . इस दुविधा का वर्तमान सरकार के पास कोई समाधान नहीं था . इसलिए उसने किसी तरह मंहगाई पहले कम कर ली .
पर आज भी न तो भारत मैं चीज़ें बिक रही है , न ही ज़मीन मिल रही है न ही सस्ती पूँजी मिल रही है . तिस पर सरकार का ही आयकर विभाग मौके की नजाकत को बिना समझे सरकार को मुश्किलों मैं डाल रहा है . सर्व शक्तिमान वित्त मंत्री अपनी वकीली तार्किक बुद्धि से काम कर रहे हैं . उनको सरकार की घटती हुयी साख व् अविश्वास का भान ही नहीं है और वह विपक्ष से मीडिया या संसद की बहस जीतने को बड़ा मानने लगे .
प्रधान मंत्री देश के औद्योगिक पतन को असहाय से देख रहे हैं हालाँकि प्रयास बहुत हो रहे हैं . .
पर अब स्थिति नाजुक हो गयी . जनता का विश्वास बहुत तेज़ी से घाट रहा है . प्रधान मंत्री को सरकारी बाबुओं व् वकीलों के चुंगुल से मुक्त हो कर शीघ्र प्रभावी आर्थिक कदम उठाने होंगे . सोने के आयात को बंद कर ऊर्जा का साधनों जैसे कोयला गैस इत्यादि आयात करें . बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता पर चलायें . ब्याज दर अब तुरंत घटाएं पर खाने की चीज़ों का आयात थोड़े दिनों के लिए बढा दें जिससे मांग बढ़ने पर उनकी कमी न हो . प्याज , चीनी इत्यादि पाकिस्तान से खरीद लें . चीनी व् खाने के तेल का भण्डार इकट्ठा कर लें . इनकी मांग पहले बढ़ेगी .कम से कम दो साल के लिये बैंकों को खाद्यानों के लिए क़र्ज़ देना बंद करवाएं जो इंदिरा गाँधी के ज़माने से बंद था .सरकार दो वर्षों के लिए उद्योगों को हिम्मत कर सरकारी ज़मीन दिलाये . नए उद्योग लगाने कीकीमत करनी ही पड़ेगी . पांच साल तक सस्ता मजदूर ठेके पर रखना भी कछ नए उद्योगों के लिए अनुमोदित करना पडेगा .
जब तक सरकार सब्सिडी कम नहीं करेगी मंहगाई में कमी व् औद्योगिक विकास एक साथ नहीं बढेगा .
प्रश्न है की अटल बिहारी वाजपेयी कि हार के बाद बीजेपी अब डरती है . पर कांग्रेस की झूट का पर्दा फाश करना अब अत्यधिक आवश्यक हो गया है . अभी और कुछ महीने जनता मोदी जी का विश्वास कर लेगी . यदि और कुछ महीने बीत गए तो सरकार अपना विश्वास पूरी तरह खो देगी और चाह कर भी यह नहीं कर पाएगी .
मोदी जी सहस करें , परवेज़ मुशर्रफ़ के शौकत अज़ीज़ या मनमोहन सरीखे विद्वान् को वित्त मंत्रालय सौंपिये
काल करे सो आज कर आज करे सो अब , कल परलय हो जाएगी बहुरी करेगा कब !