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प्रेरणा स्रोत कौन : याकूब मेमन या अब्दुल कलाम : भारतीय मुसलामानों का अक्षम व् खतरनाक नेत्रित्व

प्रेरणा स्रोत कौन : याकूब मेमन या अब्दुल कलाम : भारतीय मुसलामानों का अक्षम व् खतरनाक नेत्रित्व

Rajiv UpadhyayRKU

30  जुलाई का दिन एक ऐतहासिक दिन था .

इस दिन दिवंगत राष्ट्रपति डा अब्दुल कलाम व् आतंकवादी याकूब मेमन का अंतिम संस्कार  था .

प्रश्न है की इनमें से कौन  भारतीय मुसलामानों का वासतविक   प्रेरणा स्रोत  था ?

किसकी मृत्यु का मुस्लिम समाज को ज्यादा सदमा लगा ?

चौकाने वाला उत्तर है याकूब मेमन !…

याकूब मेमन की लाश को ले जाते हुए रास्ते पर चित्र मैं मुसलामानों की भीड़ देखिये ? यह उनकी वास्तविक मानसिकता है .yakub-ambulance coffin

दूसरी ओर अब्दुल कलाम आधुनिक काल मैं राष्ट्र के सबसे चहेते राष्ट्रपति होते हुए , एक अत्यंत गरीब परिवार से अपने बल बूते से उठे हुए , देश के सबसे संवेदन शील पदों पर आसीन हुए व्यक्ति को तो युवा मुस्लिम व् मुस्लिम समाज को तो पलकों पर बिछा लेना चाहिए था . पर ऐसा उनकी मृत्यु पर नहीं हुआ . कोई अपार शोकग्रस्त नहीं था . दूसरी ओर अब घोर आतंकवादी याकूब मेमन  की  पत्नी को राज्य सभा का सदस्य बनाने की मांग भी उठने लगी है . देश की मुस्लिम परस्त पार्टियां यदि यह कर देती हैं तो यह ऐसा भयंकर अपराध होगा की सदियों तक देश इसका खामियाजा उठाता रहेगा  . एक आतंकवादी जिसने २५७ बेगुनाह लोगों को मरवाया उसके प्रति संवेदना व्यक्त करना भी एक राष्ट्रद्रोह  है . यदि वह आत्मसमर्पण भी करता तो उसके गुनाह कम नहीं हो जाते . उसने आत्मसमर्पण abdul kalam members-of-the-military-staff-carrying-the-coffinनहीं किया था . उसको फांसी देना तो स्वाभाविक न्याय था. उसके नाम को  तो गब्बर सरीखे मुसलमान बच्चों को डराने के लिए उपयोग करना चाहिए . जिससे वह आतंकवाद की ओर नहीं बढ़ें . यदि मुसलमान वास्तव मैं आतंकवाद को अपने समाज से निकालना चाहते हैं तो ओवैसी सरीखे नेताओं को ज़हर की तरह मानें . क्योंकि उनके व्यक्तव्य कहीं न कहीं समाज मैं याकूब के कृत्यों से घृणा कम करते हैं . बल्कि एक तरह से शहीद बना कर उसका महिमामंडन करते हैं . मुंबई काण्ड के लगभग सारे आरोपी मुसलमान हैं . हिन्दू आरोपी कस्टम व् अन्य विभागाधिकारी हैं जिन्होंने रिश्वत ले कर आर डी एक्स को आने दिया . इस काण्ड मैं अधिकाँश मरने वाले भी हिन्दू थे . अस्ली  नेता को मुसलमानो से गलती स्वीकारते हुए  भविष्य मैं आतंकवाद से दूर   रहने को कहा होता . पर उसके लिये गांधी का चौरा चौरी जैसा साहस चहिये . वह आज किस मुसलमान नेता मै है ?

वास्तव मैं मुसलमानों मैं बदला लेना एक स्वाभाविक धर्म मना जाता है . बदला न लेना एक कायरता का प्रतीक है. पृथ्वी राज जैसी क्षमा , दया न उनका आदर्श  है व उनके चरित्र मैं ऐसी आदतें कम लोगों मैं पाई जाती है . यदि मुसलामानों को ओवैसी सरीखे ओर हिन्दुओं को दिग विजय सिंह सरीखे नेता मिलते हैं तो इसका दोष उनकी संस्कृति को ही जाता है . ओवैसी जैसे नेता मुसलमानो को अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेने को नहीं कह सकते न ही उन्हें आतंवाद से दूर रहने को कह सकते पर उनको भेदभाद की बैटन से भड़का सकते हैं और दिगविजय सिंह सरीखे  नेता युवा  राहुल  को लालच वश  बरगला कर जामिआ  मिलिया  या आजमगढ़  ले जाते है तो यह हिन्दुओं के  चरित्र का दोष ही माना जयेगा .

वह भी तो मुसलामानों को आतंकवाद से दूर रहने को नहीं कह पाते .

बल्कि खेद होगा यदि हमारे अवतार भी बौने निकल गए .

तुम अब्दुल कलाम बनोगे या अफज़ल याकूब डगर

एक बात है मुझे पूछनी फूल बनोगे या पत्थर ?

( सुभद्रा कुमारी चौहान से क्षमा पूर्वक )

 

( गुगल हिनदि मै कुछ परिवरतन हुए है )

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