पुनर्जन्म की मान्यता से जुड़े रहस्य… from Dharmsansar webdunia : Reincarnation , Studies and Evidence

पुनर्जन्म की मान्यता से जुड़े रहस्य… from Dharmsansar webdunia

महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे कुंतीनंदन! तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं। तुझे नहीं याद होने के कारण तेरे लिए यह संसार नया और तू फिर से आसक्ति पाले बैठा है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। -गीता 2/22
अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है।

यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम पुनर्जन्म के सिद्धांत को नहीं मानते हैं। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिन्दू, जैन और बौद्ध ये तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। योरप और भारत में ऐसे ढेरों किस्से मिल जाएंगे जिनको अपने पिछले जन्म की याद है। विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है, लेकिन वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है। पूर्व जन्म के कई वृत्तांत पत्र-पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित हुए हैं। इस विषय पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं और बहुत सी फिल्में भी बनी है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पायथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। दुनिया की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं भी पुनर्जन्म में विश्वास करती थीं।

जानिए पुनर्जन्म जानने की विधि…

हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा कि गीता में कहा गया है।

वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता है। उपनिषदकाल में पुनर्जन्म की घटना का व्यापक उल्लेख मिलता है। योग दर्शन के अनुसार अविद्या आदि क्लेशों के जड़ होते हुए भी उनका परिणाम जन्म, जीवन और भोग होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार ‘अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः।’ पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इंद्रियों तथा विषयों से संबंध जुड़े रहते हैं। न्याय दर्शन में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएं हैं। पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती है तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह फिर जन्म लेती है।

पुनर्जन्म पर कई लोगों और संस्थाओं ने शोध किए हैं। ओशो रजनीश ने पुनर्जन्म पर बहुत अच्छे प्रवचन दिए हैं। उन्होंने खुद के भी पिछले जन्मों के बारे में विस्तार से बताया है। हालांकि आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब ‘रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी’ लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताब माना गया है।

वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है। उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अनुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स में संजोते हुए लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित-सी है।

इसी प्रकार बेंगलुरु की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा इस विषय पर शोध किया गया था। उन्होंने अपने इस शोध को एक किताब का रूप दिया जिसका नाम है- ‘श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ कैसेज इन इंडियास।’ इस किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।

इसी प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब ‘परलोक और पुनर्जन्मांक’ में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है जिससे पुनर्जन्म होने की पुष्टि होती है। वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ ने एक किताब लिखी है, ‘पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।’ इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ के अलावा उक्त दो किताबें जरूर पढ़ना चाहिए।

पंच तत्वों का स्थूल शरीर और मन : हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बाद में कुछ है, जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा। आत्मा कभी नहीं मरती।
जन्म और मृत्यु के बीच में जिंदगी मानी गई है लेकिन जिंदगी तो मरने के बाद भी जारी रहती है। जन्म और मृत्यु के बीच जो सबसे बड़ी कड़ी है वह है आत्मा। आत्मा शरीर में है तो संसार है और आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया, तो पारलौकिक संसार है। विज्ञान के लिए जन्म और मृत्यु के बीच की कड़ी आत्मा सबसे उलझा रहस्य है।

इस आत्मा से जब स्थूल शरीर छूट जाता है या इसका स्थूल शरीर जलकर नष्ट हो जाता है, तब भी उसके पास दो चीजें बच जाती हैं जिसे मन और सूक्ष्म शरीर कहते हैं। शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इस मन में उसकी बुद्धि, सभी स्मृतियां और अनुभव संरक्षित रहते हैं। मृत्यु के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहकर अगले जन्म मिलने का इंतजार करते रहती है।

इस इंतजार में कुछ आत्मा भूत बनकर भटकती है, तो कुछ गहरी सुषुप्ति अवस्था में रहती है, कुछ पितृलोक चली जाती है और कुछ देवलोक। लेकिन सभी को फिर से धरती पर पुन: किसी पशु, पक्षी या मनुष्य की योनि प्राप्त करने के लिए लौटना होता। जिसके जैसे कर्म और विचार उसको मिलते हैं, वैसी योनि। जन्म, मृत्यु और फिर से जन्म का यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। मोक्ष प्राप्त आत्मा ब्रह्मलोक में स्थिर रहती है।

कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है।

जिस प्रकार इस संसार में आपाधापी और धक्का देकर अवसर छीन लेने की होड़ है उसी प्रकार सूक्ष्म जगत में धक्का देकर दुष्टात्मा श्रेष्ठ गर्भ छीन लेती है जिससे कोई दुष्ट चरित्र व्यक्ति किसी कुलीन और संस्कारित परिवार में जन्म ले लेता है, कोई गाली-गलौज करने वाला बालक अच्छे और कुलीन गर्भ में जन्म ले लेता है वहीं किसी असभ्य कुसंस्कारित माता के गर्भ से कोई शांत बालक जन्म ले लेता है।

आपको यह भी जानना चाहिए कि आत्मा मृत्यु के तुरंत बाद नया जन्म नहीं लेती है। कुछ सालों के बाद जब स्थिति अनुकूल होती है तभी आत्मा नए शरीर में प्रवेश करती है।

पुनर्जन्म और ज्योतिष : कहते हैं कि कुंडली में आपके पिछले जन्म की स्थिति लिखी होती है। यह कि आप पिछले जन्म में क्या थे। कुंडली, हस्तरेखा या सामुद्रिक विद्या का जानकार व्यक्ति आपके पिछले जन्म की जानकारी के सूत्र बता सकता है।
ज्योतिष के अनुसार जातक के लग्न में उच्च या स्वराशि का बुध या चंद्र स्थिति हो तो यह उसके पूर्व जन्म में सद्गुणी व्यापारी (वैश्य) होने का सूचक है। किसी जातक के जन्म लग्न में मंगल उच्च राशि या स्वराशि में स्थित हो तो इसका अर्थ है कि वह पूर्व जन्म में क्षत्रिय योद्धा था।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है, जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो।

ज्योतिष धारणा के अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश माना जाता है। पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं, यह खुद का जीवन देखकर जाना जाता सकता है।

हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाजा या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे, जब तक कि वह फूटता नहीं है। हो सकता है इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें।

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