भगत सिंह और चंद्रशेखर को आतंकवादी मानने वाले सब मार्क्सवादियों को जन संस्थानों से हटाओ व् भारतीय संस्कृति पर गौरव करने वालों को लाओ !
यदि हम यह विश्लेषण करें की कैसे पिछले साठ वर्षों मैं भारतीयों का अपनी संस्कृति पर विश्वास व् श्रद्धा मैं क्यों कमी आई है तो उसमें मार्क्सवादियों के शैक्षणिक व् वैचारिक संस्थानों पर एकाधिपत्य एक प्रमुख कारण है .
जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो उसके नेता विदेशों में उस काल के पढ़े हुए थे जब पूँजी वाद को शोषण का पर्याय व् साम्यवाद को प्रगति शीलता का पर्याय मना जाता था . परन्तु नेहरु जी इतने विद्वान् व् प्रभावशाली अवश्य थे कि उन्होंने पूर्व और पश्चिम को मिला कर एक नयी समाजवाद व् गुट निरपेक्षता की परिकल्पना को साकार कर के दिखा दिया . परन्तु वह सब भारत की लम्बी पराधीनता से इतने त्रस्त थे की उन्होंने बिना विश्लेषण के हिन्दू संस्कृति को भारत की गुलामी का दोषी करार दे दिया . इसलिए देश के सांस्कृतिक विभाग पर पूरा वर्चस्व साम्यवादियों को दे दिया .इसलिए देश के समाजवाद पर भी साम्यवादी चिंतन हावी हो गया .और धीरे धीरे उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी के काल मैं तो इसकी पराकाष्ठा हो गयी .और हिन्दू संस्कृति को विकृत व् देश के विकास मैं अवरोध दिखा दिया गया . इसी समय मैं हिन्दू त्योहारों की छुट्टियों मैं कमी व् पाठ्य पुस्तकों से राम, कृष्ण इत्यादि को पाठों को हटा दिया गया . हिन्दू परम्पराओं मैं छेड़ छाड और संविधान मैं अवांछित संशोधन कर धर्मनिरपेक्षता को डालना इसी मानसिकता का प्रयास था .
उनके वंशजों ने इसी देश के दुर्भाग्य को और आगे बढाया और रूस के बजाय पश्चिम की संस्कृति को बढाने के पीछे इसाइयत के प्रसार व् धर्म परिवर्तन को सरकारी संरक्षण दिया जिमें आन्ध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री वी एस आर रेड्डी की भूमिका प्रमुख थी . सोनिया गाँधी के कार्यकाल मैं आर्थिक प्रगति का लाभ लेते हुए अल्पसंख्यकों को सबसे पहले देश के आर्थिक संसाधनों का मालिक घोषित कर दिया . उधर भारतीय संस्कृति की अवमानना को और आगे बढ़ाते हुए पाठ्य पुस्तकों मैं भगत सिंह व् चन्द्र शेखर को आतंकवादी घोषित कर दिया और भाड़े के इतिहासकारों ने औरंगजेब को धर्म निरपेक्ष व् ग़जनी को मात्र लुटेरा घोषित कर दिया .
इस पूरे काल मैं भारतीय संस्कृति को निकृष्ट सिद्ध कर नयी पीढी को पश्चिम की अंधी पूजा मैं झोंक दिया . हमारे पास जापान की तरह अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए आर्थिक प्रगति व् स्वाबलंबी होने का भी विकल्प था परन्तु छुपी हुयी औपनिवेशवादी शक्तियां हमारे आत्मविश्वास को गिराती रहीं और आज मोदी जी सरे जग मैं घूम लिए परन्तु विदेशी निवेश जहां का तहां है . देश के पास आर्थिक स्वाबलंबन का कोई विकल्प नहीं है .यद्यपि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने परमाणु बम्ब के बाद लगे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद आठ प्रतिशत की विकास दर हासिल कर ली थी जो आज की दस प्रतिशत के बराबर है .
यह देश के स्वदेशी चिंतन व् अभियान की देन थी .
आज भी सिर्फ स्वदेशी चिंतन ही त्वरित आर्त्थिक विकास दे सकता है .स्वदेशी अभियान की सफलता के लिए देश की संस्कृति व् इतिहास पर श्रद्धा आवश्यक है . अँगरेज़ आज भी अपनी धरोहर के प्रति आदरवान है . सिर्फ हम हैं जो औरंगजेब की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का बोझ आज भी उठाये हुए हैं और राम , कृष्ण या होली व् दिवाली के पाठ को पुस्तकों मैं डालने से डरते हैं .
इसलिए इन औरन्ग्ज़ेबियों की चिंता किये बिना जिन्हें भगत सिंह व् चंद्र्त्शेखर आतंकवादी लगते हों उन्हें तुरंत सार्वजानिक संस्थानों से निकाल देना चाहिए जिससे वह देश का वातावरण और विषाक्त न कर सकें .
पर हमारे मीडिया जिस पर विदेशियों का आधिपत्य है , वह मात्र खरोंच को ह्त्या कह कर शोर मचाने व् चिल्लाने मैं पारंगत है . उद्देश्य साफ़ है की चींटी के काटने पर इतना रोओ की मां हर समय तुम्हें उठाये रहे . इनका इलाज़ भी आवश्यक है क्योंकि यह देश की छवि व्यर्थ मैं खराब कर रहे हैं . यह मीडिया पश्चिम की संस्कृति की बेहतरी दिखाने मैं ही अपनी सफलता मानता है .छद्म धर्मनिरपेक्षता के हटने पर इसके अवरोध के निवारण का रास्ता भी ढूंढना होगा .
परन्तु भारतीय संस्कृति को उसका नैसर्गिक शीर्ष स्थान दिलाना अब और टालना उचित नहीं होगा .