सस्ते तेल की बैसाखियों पर चलती डगमगाती व् सुस्त भारतीय अर्थ व्यवस्था :Are Arm Chair Conservative Economists Holding The Economy To Ransom ?
भारतीय अर्थव्यवस्था असल मैं कितनी तेजी से बढ़ रही है यह तो सब जानते हैं परन्तु कोई सशक्त आवाज़ मैं बोल नहीं पा रहा .
यह सच है की आज के आंकड़ों के अनुसार ७.२ % की प्रगति की दर पर भारतीय अर्थ व्यवस्था विश्व की सबसे तेज बढ़ रही अर्थ व्यवस्था है क्योंकि चीन की अर्थ व्यवस्था बीस साल की जादूई प्रगति के बाद थोड़ी सी सुस्त हुयी है .कभी हमसे पीछे रहने वाली चीन की आर्थिक स्थिति आज हमसे छः गुनी आगे है . फिर भी यदि जो भारत के विकास के बारे मैं कहा जा रह है वह वास्तव मैं उतना ही अच्छा होता तो हम आज दिवाली मना रहे होते . परन्तु सच यह है कि जनता को असली उन्नति तो कहीं दीख नहीं रही केवल उसके धिड़ोरों की आवाज़ सुनायी दे रही है .
सबसे पहले निर्यात को ही लें . पिछले एक साल मैं निर्यात मैं लगभग बीस प्रतिशत की गिरावट आई है. चार साल से निर्यात बढ़ नहीं रहा बल्कि आज हम वहीँ हैं ( ३०० बिलियन डोलर) जहां चार साल पहले थे जबकि अमरीकी डोलर के मुकाबले रूपये की कीमत दस प्रतिशत घटी है. इस वर्ष निर्यात और घटने की उम्मीद है और यह २७० बिलिओं डालर तक गिर सकते हैं .इस घटे निर्यात मैं तेल ही नहीं बल्कि स्टील ,केमिकल जेवर , कपडे व् ऐसे कई सामान हैं जिन पर वर्षों से भारत का बोलबाला था .सस्ते तेल के चलते आयात कम हो गया जो हमें बचा रहा है पर हमारी निर्यात की असफलता कहीं अधिक गंभीर है.
पिछले एक वर्ष मन विदेशी ऋण ६.६% बढ़ कर ४७५.८ बिलियन डालर हो गया है.इसलिए हमारे बढे हुए विदेशी मुद्रा के भण्डार भ्रामक हैं .कुछ संतोष बहकावे के आंकड़ों से मिलता है क्योंकि हमारी ऋण व् जीडीपी का प्रतिशत घटा है. परन्तु हमने जीडीपी आंके का नया फोर्मुला बना लिया है जो पहले से डेड प्रतिशत अधिक विकास दिखाता है .आज का ७.२ प्रतिशत विकास दो साल पहले के ५.७ के बराबर है.
हमारी औद्योगिक प्रगति बहुत मंदी हो चुकी है सन २००८ मैं औद्योगिक उत्पादन अर्थव्यवस्था का २९ प्रतिशत था जो अब घट कर २६ प्रतिशत रह गया है .और पिछले एक वर्ष मैं औद्योगिक उत्पादन मात्र ४.२ % ही बढ़ा है . सिर्फ कोयले का उत्पादन की बढ़ोतरी संतोषजनक है .विद्युत् उत्पादन मैं जो प्रगति दर पहले थी वह अब भी है परन्तु औद्योगिक विकास के अभाव मैं बिजली की कमी कम हुयी है.बिजली उत्पादन मैं कोई जादूई बढ़ोतरी नहीं हुई है यदि औद्योगिक विकास दर आठ या दस प्रतिशत हो जाएगी तो बिजली की कमी फिर हो जायेगी. परन्तु अभी स्थिति संतोषजनक है .
परन्तु ग्रामीण भारत की हालत काफी खराब हुयी है .कृषि उत्पादन , जो देश की आधी आबादी को पालता है , सिर्फ १.१% दर से बढ़ा है हालंकि इसमें बारिश की लगातार दुसरे वर्ष कमी का बहुत हाथ था . परन्तु कोई कृषि के विकास की नीतिगत फैसलों की भी तो चर्चा नहीं है .अभिजात्य वर्ग के बाबु पिछले कई वर्षों से कृषि उत्पादन को मात्र दो प्रतिशत की दर से बढ़ने पर चिंतित नहीं हैं .हों भी क्यों की वह मीडिया को महत्त्व देते हैं जो उद्योगपतियों के स्वर मैं बोलता है. कृषि की प्रगति नहीं करने के घातक परिणाम होंगे .वाजपेयी सरकार के पतन मैं भी ग्रामीण भारत का असंतोष बहुत महत्वपूर्ण था. कृषि मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी है.
प्रश्न है की इस सुस्त अर्थव्यवस्था का का इलाज़ क्या है ?
इलाज़ तो सर्व विदित है पर निहित स्वार्थों के ऊपर उठने का सहस कोई नहीं कर पा रहा .
पहली बात तो यह है की कांग्रेस व् आप पार्टी के दुष्प्रचार ने सरकार को एक तरह से अँधेरे कोने मैं धकेल दिया है जिसमें वह राजनीतिक साहस नहीं दिखा पा रही है जिसकी आवश्यकता है .वह अपनी कॉर्पोरेट जगत की पसंद की छवि से दूर रहने के चक्कर मैं एक के बाद एक औद्योगिक जगत के हित के विरोध मैं बढ़ते गए .सच्चाई यह है की हमारी व्यवस्था व् गुणवत्ता इतनी निम्न स्तर की है की उद्योगों को सरकारी सहायता की बहुत आवश्यक है. हमारी जमीन , बिजली , सड़कों मजदूरी इत्यादि इतनी महंगी हैं कि उद्योगों को सस्ती जमीन , कोयला , बिजली , स्पेक्ट्रम इत्यादि दे कर देश का नुक्सान नहीं बल्कि फायदा ही होता है . वाजपेयी जी ने सस्ता स्पेक्ट्रम दे दिया उससे देश को बहुत फायदा हुआ . औद्योगिक सामानों की कीमतें बढ़ा कर हम देश का फायदा नहीं करते हैं .इसी तरह देश के अन्दर की ब्लैक मनी उद्योगों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाती है उस का अत्यधिक पीछा करने से कुछ हासिल नहीं होगा . इमानदारी के नाम पर सीबीआई व् विजिलेंस डरे बाबु उद्योगपतियों को बुरी तरह से निचोड़ रहे हैं . सरकार का हर फैसला औद्योगिक विकास के विरुद्ध हो रहा है .टैक्स आतंकवाद एक बड़ी ख़तरा नहीं उठा पा रहे हैं और बाबु सरकार पर बुरी तरह हावी हो गए हैं . मोदी जी को उद्योगपतियों को विश्वास मैं ले उन्हें मदद देनी होगी नहीं तो देश पिछड़ता ही जाएगा .बाबु तो जोंक है उनपर अत्यधिक विश्वास घातक होगा .
दूसरी समस्या सरकार पर खुदरा व्यापारियों के हावी हो जाने से उत्पन्न हुयी है . दाल को ही लें . दाल के खुदरा व् थोक के भावों मैं आज तीस प्रतिशत का अंतर है जो कभी नौ प्रतिशत होता है . किसान ,जनता व् सरकार को त्रस्त कर खुदरा व्यापरियों की चांदी है . उससे भी अधिक खतरनाक खाद्यानों पर मिलने वाला बैंक लोन है .इसने महंगाई को बेतहाशा बढाया है .यदि हम इसे बंद कर दें तो हम मंहगाई बिना बढ़ाये बैंकों की ब्याज दर आठ प्रतिशत कर सकते हैं और इन्फ्रा स्त्रक्चर के विकास पर पर कहीं अधिक खर्च कर सकते हैं .
इनके अलावा प्रमुख समस्या डरपोक अर्थशास्त्रीयों की है .मंहगाई का निदान उद्योगों के विकास पर रोक लगाना नहीं है. रिअर्व बैंक के गवर्नर व् मोदी जी के आर्थिक सलाहकार कोई खतरा मोल नहीं ले सकते . परवेज मुशारफ ने एक शौकत अज़ीज़ को ला कर पाकिस्तानी अर्थ व्यवस्था को आसमान पर चढ़ा दिया था . हम आज भी मोदी जी के मनमोहन सिंह के प्रगट होने का इन्तिज़ार कर रहे हैं . यदि शुरू मैं मंहगाई को रोकने के लिए वित्तीय घाटा कम करना आवश्यक भी था तो भी अब खाद्यानों के कीमत को रोक कर विकास के लिए सार्वजनिक खर्चा बढाया जा सकता है.
एक लाइन मैं कहें समस्या यह की आर्थिक विकास को तेज करने के लिए चुनी गयी मोदी सरकार सौ अन्य बातों मैं उलझ कर दिग्भ्रमित हो गयी है और उनके लक्ष्य पर ध्यान चूकने से विकास की दिल्ली दूर होती जा रही है.