सान्दीपनि ऋषि
http://www.simhasthujjain.in/ujjain-introduction/prominent-figures/sandipani-rishi/?lang=hi
सान्दीपनि, जिसका अर्थ ‘देवताओं के ऋषि’ है, भगवान कृष्ण के गुरु थे। सान्दीपनि उज्जैन के एक संत/ मुनि/ ऋषि थे। सान्दीपनि मुनि का आश्रम उज्जैन रेलवे स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। आश्रम के समीप ‘अंकपट’ है। इसके प्रति लोगों में ऐसा विश्वास है कि यहाँ भगवान कृष्ण अपनी लेखन पट्टिका को साफ किया करते थे। इस आश्रम के पास एक पत्थर पर 1 से 100 तक गिनती लिखी है और ऐसा माना जाता है कि यह गिनती गुरु सान्दीपनि द्वारा लिखी गई थी। आश्रम के पास ही गोमती कुंड है, जिसके विषय में कहा जाता है कि पवित्र गोमती नदी का आह्वान इस कुण्ड में श्री कृष्ण ने किया था, जिससे उनके वृद्ध गुरु को अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा न करनी पड़े।
गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहते हुए दोनों भ्राता श्री कृष्ण और बलराम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। इनके साथ ही सुदामा भी आश्रम में रहते हुए शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, जहाँ श्री कृष्ण और सुदामा मित्र बने थे। शिक्षा पूरी करने के पश्चात श्री कृष्ण और बलराम गुरु सान्दीपनि से गुरु दक्षिणा माँगने की प्रार्थना की। ऋषि ने दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र को माँग लिया, जो समुद्र के प्रभास क्षेत्र में विलुप्त हो गया था।
दोनों भाई प्रभास क्षेत्र में गये और उन्हें पता चला कि शंखासुर नामक राक्षस ऋषि पुत्र को ले गया है, जो समुद्र के नीचे पवित्र शंख में रहता है, जिसे ‘पाँचजन्य’ कहते हैं। दोनों भाइयों ने राक्षस का वध कर ‘पाँचजन्य’ में चारों ओर ऋषि पुत्र को खोजा। ऋषि पुत्र को उसमें न पाकर वे शंख लेकर यम के पास पहुँचे और उसे बजाने लगे।
यम ने दोनों भ्राताओं की पूजा करते हुए कहा,”हे सर्वव्यापी भगवान, अपनी लीला के कारण आप मानव स्वरूप में हैं। मैं आप दोनों के लिए क्या कर सकता हूँ?”
श्री कृष्ण ने कहा,’हे महान शासक, मेरे गुरु पुत्र को मुझे सौंप दीजिये, जो अपने कर्मों के कारण यहाँ लाया गया था।’
अपने गुरु को श्री कृष्ण ने उनका जीवित पुत्र सौंपा। श्री कृष्ण शंखासुर से पाँचजन्य ले आये। श्री
कृष्ण ने पाँचजन्य के साथ अर्जुन के देवदत्त शंख को बजाया, जो महाभारत के आरम्भ का प्रतीक था।
http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%9C%E0%A4%A8_(%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0)
पंचजन सागर का एक दैत्य था, जिसे शंखासुर नाम से भी जाना जाता था। कृष्ण ने अपने गुरु संदीपन को गुरु दक्षिणा में गुरु पुत्र को वापस लाने का वचन दिया था, जो सागर में डूबकर मृत्यु को प्राप्त हो गया था। पंचजन राक्षस की तलाश में श्री कृष्ण सागर में उतरे और उन्होंने उसका वध किया। गुरु संदीपन के आश्रम में कृष्ण-बलराम और सुदामा ने वेद-पुराण का अध्ययन प्राप्त किया था। कृष्ण को अद्वितीय मान गुरु दक्षिणा में संदीपन ने कृष्ण से मांगा कि उनका पुत्र प्रभास में जल में डूबकर मर गया था, वे उसे पुनजीर्वित कर दें। बलराम और कृष्ण प्रभास क्षेत्र के समुद्र तट पर गए और सागर जल से कहा कि वे गुरु के पुत्र को लौटा दें। सागर ने उत्तर दिया और बोला कि यहाँ पर कोई बालक नहीं है। सागर ने बताया कि पंचजन नामक सागर दैत्य, जो शंखासुर नाम से भी प्रसिद्ध है, उसने सम्भवतया बालक को चुरा लिया होगा। कृष्ण बालक की खोज में सागर में उतरे, दैत्य को तलाशा और उसे मार डाला। दैत्य का उदर चीरा तो कृष्ण को वहाँ पर कोई बालक नहीं मिला। शंखासुर के शरीर का शंख लेकर कृष्ण और बलराम यम के पास पहुँचे। यमलोक में शंख बजाने पर अनेक गण उत्पन्न हो गए। यमराज ने कृष्ण की माँग पर गुरु पुत्र उन्हें लौटा दिया। वे बालक के साथ गुरु संदीपन के पास गए और गुरु पुत्र के रूप में गुरु को गुरु दक्षिणा दी।[1]
Read more at: http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%9C%E0%A4%A8_(%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0)
साभार bhartdiscovery.org