अवरुद्ध औद्योगिक व् आर्थिक विकास : सरकार की आर्थिक नीतियों मैं परिवर्तन की आवश्यकता
सरकार के लाख प्रयास व् कथनों के बावजूद देश का औद्योगिक विकास अवरुद्ध है . पिछले वर्ष की औद्योगिक विकास दर मात्र २.५ प्रतिशत है. निर्यात तेजी से गिर कर अब मात्र २७० बिलयन डालर रह गया है जो की २०१२ –१३ मैं ३१२ बिलियन डालर था .
नयी अच्छी नौकरियां हवा मैं ही हैं हकीकत नहीं . इंजीनियरिंग व् एमबीए की सीटें खाली ली जा रही हैं . जब नौकरियां ही नहीं तो महँगी पढाई क्यों कोई करेगा. नयी नौकरियां नए औद्योगिक निवेश से उत्पन्न होती हैं . निवेश के लिए तभी कोई आगे आयेगा जब उसे फायदा दीखे . अभी दबे स्वर मैं उद्योगपति सरकार की विफलता की बात कर रहे हैं . पिछले निवेश के गैस, कोयले व् बिजली की से बर्बाद होने से दूध के जले अब छाछ को फूंक रहे हैं .वह अपनी पूँजी देश मैं निवेश करने को तैयार नहीं हैं . स्वदेशी निवेश दस लाख करोड़ से घट कर तीन लाख करोड़ रह गया है . माल बिक ही नहीं रहा . दिल्ली हो या मुंबई , बंगलोर हो या गुडगाँव , हर शहर मैं लाखों घर बिना बिके खड़े हैं . अब तो अमरीका व् चीन समेत विश्व के अनेक देश हमारे ७.५ % की विकास दर के दावों को खुल्लम खुल्ला चुनौती दे रहे हैं .रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन भी इसको सच नहीं मान पा रहे . बातें ही सिर्फ बड़ी हो रही हैं बाकि धरातल पर कुछ नहीं बदला. विकास के आंकड़े मुद्रा लोन के आशाओं पर आधारित है जिसके सफल उपयोग का कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है. बांग्लादेश की तरह अभी कोई वास्तविक क्रांति इन ऋणों से नहीं आई है .प्रश्न यह की आर्थिक जड़ता के तथ्य तो झुठलाये नहीं जा सकते . विकास के सरकारी दावों पर एक कविता याद आती है.
जमीन पर रही धुल उडती ही वैसी , गगन मैं चमन खिल लिया तो हुआ क्या .
देश तेजी से औद्योगिक मंदी की ओर बढ रहा है और सरकार बेखबर है . उसे राजनितिक लाभ के सिवा कुछ नहीं दीख रहा .
प्रश्न यह है की गुजरात मैं अपनी अभूतपूर्व आर्थिक विकास की सफलता पर निर्वाचित होने वाले प्रधान मंत्री अचानक कहाँ गुम हो गए .क्यों वह असहाय देश के अवरुद्ध औद्योगिक विकास को चुप चाप सहने को मजबूर हैं .
इसका उत्तर राजनितिक है. कांग्रेस व् विपक्ष ने नयी सरकार बनते ही मोदी जी को कॉर्पोरेट जगत का प्रधान मंत्री बताना शुरू कर दिया . केजरीवाल ने उन पर अम्बानी का मित्र होने के आरोप जड़ दिए . सरकार को भूमि अधिग्रहण पर पीछे हटना पडा . जीएसटी बिल भी पास नहीं करवा पाई . औद्योगिक मजदूरी के कानूनों को बदलने के प्रयास देश व्यापी मजदूर संगठनों की हड़ताल ने रोक दिया . इन कानूनों को बदले बिना देश मैं चीन सरीखी विकास दर या विदेशी निवेश आना संभव नहीं था. दिल्ली की चुनावी हार के बाद प्रधान मंत्री अपनी स्वतः विकास वादी प्रवृति को छोड़ कर साम्यवादियों के गढ़ मैं चले गए .वह कांग्रेस से लोक लुभावन नीतियों मैं प्रतिस्पर्धा करने लगे . कांग्रेस को सिर्फ उसके बेइंतहा बेईमानी और कमर तोड़ महंगाई पर हरा सकते हैं . इसलिए देश की सरकार पारदर्शिता व् इमानदारी का कवच पहन कर महंगाई रोकने की सफलता की तलवार से चुनावी रण मैं लड़ने के लिए के लिए मजबूर हो गयी .
सरकार की इन्ही मजबूरियों ने देश के आर्थिक व् औद्योगिक विकास का सत्यानाश कर दिया. आज उद्योगों को सहानभुती के मरहम की आवश्यकता है अहंकारी बाबुओं के उत्पीडन की नहीं .सरकार यदि बिना बिके घरों के लिए सात प्रतिशत की ऋण दर तीन साल के लिए कर दे तो लाखों घर बिक जायेंगे .इसी तरह कारों व् अन्य वाहनों पर ऋण दर तीन साल के लिए कम कर देनी चाहिए .कोयले व् गैस की कमी से जो नए कारखाने बंद बड़े हैं उन के ऋण पर ब्याज माफ़ कर देना चाहिए क्योंकि सरकार कोयला उपलब्ध करने मैं असमर्थ रही है .स्पेक्ट्रम को अति महंगे दाम पर बेच कर सारी टेलिकॉम कम्पनियां बर्बाद हो गयी हैं . टैक्स वाले उन्हीं चंद लोगों को दबा कर ज्यादा टैक्स ले रहे हैं .यह सारे राजनितिक लोक लुभावन फैसले उद्योगों व् विकास को डुबो रहे हैं और नया निवेश बंद है .
अमरीका जब आर्थिक मंदी मैं डूबा तो ओबामा ने एक राहत पैकेज की तुरंत घोषणा कर दी. हमारे उद्योग भी विश्व मंदी व् कांग्रेस के कुशासन की मार से जूझ रहे हैं . परन्तु हम उनकी मदद के बजाय उन्हें और निचोड़ रहे हैं .
जब देश की ज़मीन मंहगी है , बिजली व् यातायात मंहगा है ,मजदूरी अधिक है , ब्याज़ा अधिक् है तो नए कारखाने कैसे फायदा कमाएंगे . बिना फायदे के कौन पूँजी निवेश करेगा .कैसे हमारा माल अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मैं चीन से प्रतिस्पर्धा करेगा . नए उद्योगों की आर्थिक सफलता सरकार को सुनिश्चित करनी होगी अन्यथा पूँजी निवेश नहीं होगा. बिना निवेश के विकास नहीं होगा.
सच यह है की ब्लैक मनी का रूप विकराल हो गया था . विदेशों मैं भारतीय पूंजी बहुत देश को बदनाम कर रही थी . परन्तु सच यह भी है की ब्लैक मनी देश के विकास के लिए आवश्यक भी थी .इससे इन सब आसमान छूती लागत कीमतों के बावजूद भारतीय माल कुछ तो बिकने लायक होता था . सस्ती ज़मीन या स्पेक्ट्रम या खानें देना देश के औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक था. इतनी कानूनी कठिनाइयों मैं बिना सरकारी प्रोत्साहन के उद्योग नहीं चल सकते .इस दिल्ली व् बिहार की चुनावी हार ने सरकार को लौट कर फिर उन्ही पुरानी समाजवादी नीतियों पर ला पटका जिससे देश १९९२ मैं दिवालिया हो चुका था. इस लिए आश्चर्य नहीं होगा की कुछ वर्षों मैं हम पुनः दिवालियेपन की ओर चल पड़ें .
यह नहीं है की मोदी जी यह सब जानते न हों पर उनके आर्थिक सलाहकार अहंकारी , दब्बू व् बुद्धिहीन हैं . उनमें औद्योगिक विकास सुनिश्चित कर कांग्रेस से लड़ने की राजनितिक क्षमता नहीं है . वह उद्योगों की कठिन परिस्थिति मैं रहत देने की हिम्मत भी नहीं रखते . निर्यात बढ़ने की कोई नीति नहीं है. ये वित्त मंत्रालय की बुद्धिहीन चापलूसों की जमात देश को डुबो देगी . किसी को नहीं पता की निर्यात व् औद्योगिक विकास को कैसे बढायें . बस सब चापलूसी से अपनी कुर्सी बचाए हुए हैं .
क्योंकि कोई कांग्रेस का वह भ्रष्ट शासन दुबारा नहीं चाहता इसलिए मोदीजी सुरक्षित हैं परन्तु देश का त्वरित आर्थिक विकास एक सपने से अधिक कुछ नहीं है.
यह साहसहीन व् अज्ञानीयों की सरकार चीन से आर्थिक बराबरी का तो सपना भी न देखें तो अच्छा होगा .