Menace That Consumes Kashmir : आतंकी रोग जो कश्मीर को खाए जा रहा है
वहाबी जमातों की फैलाई हुयी शिक्षा और स्वार्थी अलाग़वादियों की आजादी की मृग मरीचिका कश्मीर की जनता को खाए जा रही है. कानूनी तौर पर भारत का केस प्रबल है. अंग्रेजों ने राजा को चुनने का हक दिया था की वह हिंदुस्तान का हिस्सा बनेगा या पकिस्तान का. महाराजा हरिसिंह ने भारत मैं विलय का फैसला लिया . रही बात मुसलमानों के घटी मैं बाहुल्य की तो भारत मैं करोड़ों मुसलमान हैं . कश्मीरियों मैं कोई सुरखाब के पर नहीं लगे हैं जो उन्हे आजादी दी जाय . देश की किस जनता को आज़ादी मांगने का अधिकार है . बलूचिस्तान पाकिस्तान मैं विलय नहीं चाहता था परन्तु पाकिस्तान ने हमला का उसे हथिया लिया क्योंकि भारत को लगा की इतनी दूर की भूमि को वह सुरक्षित नहीं रख पायेगा . उसकी बात पाकिस्तान य अलगवादी नहीं करते.
नेहरु जी के समय से जो ढुलमुल नीती चल रही है उसके दुष्परिणाम दीख रहे हैं . अलगवादी नकाब पहन कर सरकार चला रहे हैं . बंदुक से सब राजनेता डरते हैं . अंततः ढके आतंकवाद से कश्मीर से पंडित निकाल दिए गए . अलगवादीयों ने ऐठ कर पैसा उगाहना सीख लिया . देश ने सस्ते राशन बाँट कर भी देख लिया और पैसा दे कर भी देख लिया . आज कश्मीर पर हम दुगना खर्च करते हैं और लात भी खाते हैं .दुखद वास्तविकता यह है की कश्मीरी आतंकवाद से पनप रहे अलगवाद का कोई राजनितिक समाधान नहीं है .
इस लिए सस्ती सौ प्याज या सौ कोड़े की दोनों ही सज़ा भोगने से अच्छा है की हम राजनितिक समाधान की बात भूल जाएँ . कश्मीर का इजराइल वाला समाधान ही संभव है. परन्तु इसको लागू करने के लिए जगमोहन सरीखा राज्यपाल चाहिये और इंदिरा गाँधी जिसा दृढ़ता .