मुशर्रफ करें तो रास लीला , नवाज़ शरीफ करें तो कैरक्टर ढीला : शांति प्रयासों की पाकिस्तानी विडम्बना
मुंबई और पठानकोट के गुस्से के बीच कभी कभी पाकिस्तान की प्रजातांत्रिक सरकार पर दया आती है .
उनकी हालत बहादुरशाह ज़फर जैसी है जो अँगरेज़ रेजिडेंट से मिर्ज़ा ग़ालिब की जेल की सज़ा भी कम नहीं करवा पाए . उनके रक्षा मंत्री को सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ की अध्यक्षता वाली कैबिनेट मीटिंग मैं बैठना पड़ता है क्योंकि प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ बीमार थे . पूर्व राष्ट्राध्यक्ष ज़रदारी सेनाध्यक्ष के विरुद्ध कथित टिप्पणी के लिए देश निकाला भुगत रहे हैं और उनकी पार्टी के मीटिंग्स दुबई मैं होती हैं .
संसद पर हमले के बाद पर जब दोनों ओर सीमा पर सेनाएं तनी हुयी थीं तो काठमांडू की मीटिंग मैं भाषण के बाद मुशर्रफ अचानक पीछे मुड़े और वाजपयी जी से गरम जोशी से हाथ मिलाया . वाजपेयी जी ने भी ‘ बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले ‘ सोचते हुए मुशर्रफ के कारगिल के दुष्प्रयास को भुला दिया . कहते हैं की अब तक के सब प्रयासों मैं वह वार्ता दौर सबसे अधिक मान्य था .
पाकिस्तानी सेना किसी प्रजातांत्रिक प्रधान मंत्री को टिकने ही नहीं देती . प्रधान मंत्री भुट्टो को फांसी दिलवा दी . उनकी पुत्री व् प्रधान मंत्री बेनजीर भुट्टो को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता कर पद से हटा दिया . प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ को मुशर्रफ ने जेल मैं डाल दिया और उनके प्राण बचाने के लिए भारत,सऊदी अरेबिया इत्यादि अनेक देशों ने प्रयास किये . अब की बार नवाज़ शरीफ के प्रचंड बहुमत को नकारते हुए एक मुल्ला कादरी व् व् इमरान खान को सेना बढ़ावा दे रही है और नवाज़ शरीफ भारी बहुमत के बावजूद भी सेनाध्यक्ष द्वारा निकाले जाने की चिंता मैं डूबे रहते होएँ . कहते हैं नवाज़ शरीफ को भी जिया के समय सेना ही कभी लाई थी . अब पनामा लीक्स के चलते उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं . भ्रष्टाचार तो पाकिस्तानी सेना मैं कौन कम है पर समरथ के न दोष गोसाईं .
सेना सम्मान के लिए सिर्फ युद्ध और जीत की बात सोचती है. अयुब खान ने १९६५ की लड़ाई छेडी , याहया खान ने बँगला देश व् १९७१ की लड़ाई छेड़ी , जिया ने अफ़ग़ानिस्तान के युद्ध के चलते सिर्फ पंजाब मैं विद्रोह करवाया . मुशर्रफ ने कारगिल की लड़ाई कर ली .पाकिस्तान हर युद्ध मैं हारा परन्तु पाकिस्तानी सेना कुछ सीखना ही नहीं चाहती और अब भी लाल किले पर झंडे का ख्वाब देखती है .. मालदीव व् भूटान पिछले साठ साल से बिना हथियारों के सुरक्षित हैं परन्तु पाकिस्तान इतने परमाणु बम्ब व् मिस्साइलों से भी सुरक्षित नहीं हैं . पाकिस्तानी सेना देश का रिश्वत का खून शुरू से चूस चूस कर आदमखोर हो गयी है. अब वह अपने देश को जोंक की तरह छोड़ेगी नहीं . अब वह चीन पाकिस्तानी रहदारी की सड़कों के आस पास की सारी ज़मीन हथिया लेना चाहती है .
सेना के विपरीत , जनतांत्रिक सरकार देश की आर्थिक प्रगति व् गरीबो के लिए सोचती है . जनतंत्र का आधार वोट ही है .क्योंकि उसे सत्ता के लिए उनके वोट चाहिए होते हैं इसलिए जनतांत्रिक सरकार का सारा ध्यान जनता की भलाई करने पर लगा रहता है . परन्तु जनतंत्र मैं चुनावी खर्चे के लिए भ्रष्टाचार बढ़ जाता है .हर पाकिस्तानी नेता जानता है की अब उसे भारत से खतरा नहीं है बल्कि भारत से कुछ मदद ही मिलेगी. पर भारत से दोस्ती होते ही सेना बेरोजगार हो जायेगी . बेनजीर को सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया .वाजपेयी जी लाहोर गए तो कारगिल हो गया . जब राष्ट्रपति ज़रदारी ने भारत से सम्बन्ध सामान्य करने का प्रयास किया तो आई एस आई ने मुंबई काण्ड करवा दिया .उसके बाद किसी की भारत से दोस्ती की बात करने के हिम्मत नहीं हुयी . मोदी जी लाहौर से लौटे तो पठानकोट हो गया .
इतनी बार कट लेने के बावजूद भी हर नयी भारत सरकार जनहित मैं पकिस्तान से दोस्ती की बात शुरू कर देती है. ‘बीच बीच वाघा पर मैं मोमबत्ती जलवा लो और अमन का तमाशा भी होता रहता है .’
प्रश्न है की भारत यह सब जान कर भी क्या करे ?
सामान्य ज्ञान तो मित्रता को ही कहता है .इसलिए हम मोदीजी को गलत तो नहीं कह सकते परन्तु पठानकोट के बाद पाकिस्तानी सेना का प्रचार तंत्र नवाज शरीफ को गद्द्दार व् देश द्रोही सिद्ध करने पर तुला हुआ है. उनके भारत से व्यापार संबंधों की दुहाई दे रहा है .बिलावल भुट्टो ने उन्हें कश्मीर के चुनाव मैं‘ मोदी का यार ‘ कह दिया . पनामा लीक के बाद वह एक महीने दिल के ओपेराशन के लिए लन्दन चले गए . आ कर जान बचाने के लिए अचानक उनका कश्मीर प्रेम फूट पडा . फिर तो उन्होंने सेना से अधिक कश्मीर प्रेम दिखला कर सेनाध्यक्ष से बराबरी कर ली .राहिल शरीफ इस समय पकिस्तान मैं अत्यंत लोक प्रिय हैं क्योंकि उन्होंने ‘ जैरबे अजब ‘ अभियान चला कर जनता की सुरक्षा बढ़ा दी . पिछले सेनाध्यक्ष कियानी यह नहीं कर पाए थे . ऊपर से इनके भाई को निशाने हैदर सर्वोच्च वीरता का पदक मिला था . मुशर्रफ उनको शायद तख्ता पलट की सलाह दे रहे हैं . इस लिए नवाज़ शरीफ ने अपने को कश्मीर का राग जोर से अलाप कर देश भक्त सिद्ध कर दिया . अब राहिल शरीफ का कार्य काल बढाने का समय आ रहा है . नवाज़ नया सेनाध्यक्ष चाहते हैं .इसलिए कश्मीर की बांसुरी अभी बजाते रहेंगे .
भारत क्या करे ?
वही जो मोदी जी कर रहे हैं . बलूचिस्तान , कराची व् सिंध का आइना पकिस्तान को दिखाते रहो .शोले के धर्मेन्द्र की तरह वह एक मारे तो तुम तीन मारो. परन्तु जिस दिन मौक़ा मिले सम्बन्ध सामान्य कर लो .
परन्तु शैतानी पाकिस्तानी सेना के मुंबई सरीखे प्रयास पर तहस नहस करने की क्षमता रखो. क्योंकि पकिस्तान से
‘ भय बिन प्रीत न होत गोसाईं ‘