5:32 pm - Tuesday November 23, 1706

क्या बाबुओं का मकडजाल मोदी सरकार को औद्योगिक व् आर्थिक विकास मैं यूपीए -१ से फिस्सडी बना रहा है ? Modi govt yet to match UPA’s economic record

क्या बाबुओं का मकडजाल मोदी सरकार को औद्योगिक व् आर्थिक विकास मैं यूपीए -१ से फिस्सडी बना रहा है ?
RAJIV UPADHYAYRKU

आज जब सरकार का आधा काल पूरा हो चुका है , उसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन आवश्यक है .
देश की जनता असंतुष्ट नहीं है .उसे नित नए घोटालों की खबर नहीं पढनी पढ़  रही है .

परन्तु भारत की जनता को मोदी सरकार से गुजरात के जैसे आर्थिक विकास की आशा थी. तेल की कीमत कम हो जाने से यह आशा बहुत प्रबल हो गयी थी .इसके लिए जनता त्याग करने को तैयार थी जैसा की उसने पिछले एक महीने से बैंकों की लाइनों मैं दम तोड़ कर सिद्ध कर दिया.वह आशा तो आज भी बरकरार है परन्तु अब यह साफ़ दीख रहा है की वित्त मंत्रालय के बड़े बाबुओं की जमात मोदी सरकार को औद्योगिक और आर्थिक विकास मैं यूपीए – १ से फिस्सडी ही सिद्ध कर देगी .यह सच है की बाबु बिना विकास के सरकार की लोक प्रियता बरकरार रखने मैं सफल सिद्ध हो रहा . इसके लिए वह नयी नयी काठ की हांडियां चढ़ा रहा है . कभी नोट बदल देता है तो कभी स्वच्छ भारत का शगूफा छोड़ देता है नहीं तो विकास के आंकड़े बदल देता  है .हर नए शगूफे से जनता पिछ्ला शगूफा भूल जाती है .परन्तु सच यह है की पिछले ढाई वर्षों मैं न तो उद्योग और न ही कृषि न ही बड़ी आर्थिक मैं कोई प्रगति हुयी है .
जनता सोनिया राज की भयावह भ्रष्टाचार से इतनी त्रस्त  है की वह मोदी सरकार के अवरुद्ध औद्योगिक , कृषि व् आर्थिक विकास पर प्रश्न नहीं कर रही है और शायद अगले चुनाव मैं मोदी जी को जीता भी दे .पर क्या देश ने बीस सालों का रिकॉर्ड तोड़ बहुमत सरकार को सिर्फ झुनझुने देने के लिए दिया था .मोदी जी की गुजरात की आत्मा क्या इस विफलता पर तडपेगी  नहीं ?
इस मामले मैं मोदी जी के बाबु लालू यादव के उस दम्भी बयान से प्रेरणा ले रहे हैं की वोट का विकास से क्या सम्बन्ध है ?
चुनाव तो लालू ने भी तीन बार जीता था और पंद्रह साल मैं बिहार का सर्वनाश कर दिया था .क्या वह किसी की प्रेरणा हो सकते हैं ?
अब जब वित्त मंत्रालय के बाबुओं के सारे हथकंडे फ़ैल हो गए हैं मोदी जी को सोचना चाहिए की उनका बाबुओं पर अत्यधिक विश्वास उनकी विफलताओं का सबब तो नहीं बन रहा . बाबु जन्म से यथास्थिति का उपासक होता है .कोई क्रांति न उसे भाती है न ही उसके सामर्थ्य मैं है .

लंका विजय के उपरांत भगवान् राम ने भी लक्ष्मण को ज्ञान के लिए रावण के पास भेजा था .मोदी जी कम से कम भगवान राम से तो प्रेरणा ले सकते हैं .

पूर्व प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव जी ने देश का सोना गिरवी  रखने वाली परिस्थतियों मैं एक अल्पसंख्यक सरकार की सरकार की बागडोर संभाली थी और पांच वर्षों मैं देश की काया बदल दी थी .उन्होंने बाबुओं को शासन नहीं सौंपा था बल्कि एक मनमोहन सिह को ढूंढा था जिसने देश की आर्थिक परिभाषा ही बदल दी .इसी तरह राजीव गाँधी ने एक सैम पित्रोदा को ढूंढा था जिसने देश की टेलेफोन व्यवस्था बदल दी . नेहरु जी ने होमी भाभा को ढूंढा था जिसने भारत को एक परमाणु शक्ति बनने  का मार्ग प्रशस्त कर दिया . इंदिरा गाँधी जी ने एक सेठना को ढूंढा था जिसने भारत को अंततः एक स्पेस की शक्ति बना दिया .स्वयं मोदी जी ने अजित दोवाल को चुन सुरक्षा की परिभाषा बदल दी .
यहाँ तक की सेना के पृष्ठभूमि से आये पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशरफ ने आई एम् एफ से शौकत अज़ीज़ को ला कर पाकिस्तान की अभूत पूर्व आर्थिक प्रगति करा दी  .

अब मोदी सरकार को ढाई साल बीत गया है .नीचे के लेख से यह सिद्ध हो जाता है की यदि इस रफ़्तार से
चलेगी तो मोदी सरकार औद्योगिक व् वास्तविक आर्थिक विकास  की रेस मैं  यूपीए-१  से बुरी तरह हार जाएगी . हम तो चीन से आगे निकलने का सपना देख रहे थे उसे अब क्यों भूल गए .

बात चुनाव जीतने वाले शगुफों की नहीं है बल्कि गीता के स्वान्तः सुखाय की है . क्या एक प्रचंड बहुमत वाली सरकार जिसका मुखिया इमानदार व् प्रगति शील हो देश का औद्योगिक विकास नहीं कर सकती क्योंकि उसने आर्थिक विकास की लगाम बूढ़े व् थके हाथों मैं सौंप दी है जिसे कोई नया काम नहीं कर आता ?

मोदीजी को अपने पूर्व प्रधान मंत्रियों की तरह बाबुओं के मकडजाल से बाहर निकल कर वास्तविक आर्थिक  प्रतिभा की खोज करनी चाहिए और नरसिम्हा राव व् परवेज़ मुशर्रफ़ की तरह उसे क्रांति लाने  का मौक़ा देना चाहिए .

यदि इस ईश्वरीय चमत्कार के बहुमत की सरकार से औद्योगिक विकास नहीं हुआ तो देश किसकी ओर आशा से देखेगा .

रेडिफ के नीचे के लेख को पढ़ें

Modi govt yet to match UPA’s economic record

Experts say it will now be tough for the Modi government to catch up with the UPA’s economic record owing to the shock induced by the currency demonetisation.
Krishna Kant/Business Standard reports.

The Narendra Modi government needs to grow the economy at twice the speed in its second term to catch up with the economic performance of the previous United Progressive Alliance-II government and even faster if it wishes to trounce UPA-I’s record.

For example, the manufacturing sector needs to grow at a compounded annual growth rate (CAGR) of 4.2% in the remaining three years of the Modi government’s tenure — nearly twice the 2.2% growth recorded in the first two years.

The government needs even more catch-up in the farm sector.

Agriculture production needs to grow at an annualised rate of 5.6%.

Agriculture production, including food grains and cash crops, has declined at an annualised rate of 2.1% during FY14-16.

Exports need to jump 70% in the next three years to match the growth recorded during UPA-II and make up for a decline in merchandise exports and a flat growth in services exports during Modi’s first two years.

The combined exports of goods and services declined at an annualised rate of 4.7% during FY14-16 against 9.1% CAGR growth during UPA-II.

Gross Domestic Product is the only macro-economic variable where the Modi government has matched the performance of the previous government.

GDP at constant prices has grown at a CAGR of 7.1% during Modi’s first two years in line with 7.2% GDP growth during the five years of UPA-II.

The Modi government, however, has to work harder to translate the headline growth into income growth for individuals.

Unlike the previous government, faster GDP growth has not translated into income buoyancy for individuals.

The personal disposable income had grown at a CAGR of 9% during Modi’s first two years, down from 13.6% growth during the whole five years of UPA-II.

It needs to grow at an annualised rate of 16.8% over the next three years to allow the Modi government to match the income buoyancy provided by the UPA-II regime.

Personal disposable income (PDI) is the share of GDP that accrues to household and individuals as their personal income.

It is calculated by deducting government taxes and duties, public-sector savings and corporate retained earnings from national income but adding government subsidies.

National income is GDP plus income from abroad.

In FY15, PDI accounted for 73.4% of the GDP at current prices, down from 76% a year ago and UPA-II regime’s average ratio 78%, according to data from the Central Statistical Office.

The PDI figure for FY16 is calculated by taking the average ratio in the past two financial years.

Experts say it will now be tough for the Modi government to catch up with the UPA’s economic record owing to the economic shock induced by the currency demonetisation.

“Earlier, there was hope that the Modi government might catch up with the previous government’s economic performance and eventually surpass it in its remaining term. This now looks challenging given the economic dislocation induced by currency demonetisation,” says Dhananjay Sinha, head of institutional equity at Emkay Global Financial Services.

He estimates that demonetisation could potentially lead to a 300 basis-point decline in GDP growth over the next 6 to 12 months, translating into potential output loss of Rs 4 lah crore to Rs 5 lakh crore.

This will pull down macro-economic and business variables, making it challenging for the government to maintain growth momentum.

Others, however, remain hopeful and pin their hopes on the long-term gains from demonetisation.

“The government still has a chance to outdo UPA’s economic record. I expect big gains from demonetisation, allowing the government to push the growth pedal in the second half of its tenure,” says G Chokkalingam, founder and CEO of Equinomics Research & Advisory.

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