के पी एस गिल , एक जांबाज़ अद्वितीय देश भक्त : ‘Supercop’ K P S Gill passes away at 82
आज जब मैंने लन्दन मैं बैठे रीडिफ़ पर केपीएस गिल के निधन की खबर पढी तो मेरा दिल श्रद्धा से भर गया . दुःख तो नहीं हुआ क्योंकि मैंने एक साल पहले उनको सहारा देकर बिठाते व् उठते हुए देखा था और मैं समझ गया था कि प्रकृति के नियम शेर व् गीधडों के लिए एक से ही होते हैं .वैसे अब हमारे कागजी शेरों और बौनों के देश मैं श्रद्धा उपजाने वाले चरित्र इतने कम रह गए हैं की दिल ने बड़े लोगों की मौतों पर दुःखी होना भुला सा दिया है .परन्तु श्री के पी एस गिल एक अपवाद थे . यह भी अच्छा लगा की उनकी मौत ८२ वर्ष की उम्र मैं प्राकृतिक कारणों से हुई न की जनरल वैद्य की तरह किसी आतंकी की गोली से .सरकार इस देश भक्त को अंत तक पूरी सुरक्षा दे सकी यह खुशी की बात है .
मेरी उनसे कई बार एक एक घंटे तक उनके घर मुलाकात हुयी . उनको अपने जीवन की दो कालों का बहुत अभिमान था , एक पंजाब के डी जी पी व् दुसरे असम के चीनी हमले के समय एस एस पी . उनकी पंजाब की आतंकवाद से जूझने की कहानियां सुनके बहुत अच्छा लगता था . इन कहानियों मैं विशेष होती थीं हिन्दुओं का पंजाब से पलायन रोकने मैं सफलता और पुलिस के परिवार के सदस्यों की ह्त्या के बाद पोलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए किये गए गैर कानूनी ,साह सिक परन्तु व्यवहारिक कदम . हालांकि आज भी उनकी मौत के उपरान्त भी मैं उन्हें सार्वजनिक नहीं कर सकता परन्तु जिस खतरे का उन्होंने सामना किया वह अनेकों को डिगा देता . उनको बहुत दुःख था की सरकार ने परम देश भक्त एस एस पी संधू की जेल की सज़ा नहीं रोकी बल्कि आत्मग्लानि मैं उन्होंने आत्म ह्त्या कर ली .गुजरात मैं भी यही हुआ .सेना के मेजर गोगोई व् एक अन्य अधिकारी के साथ भी यही हुआ जा रहा है .
श्री गिल ने जोश मलीहाबादी के एक शेर को अपने लेख मैं लिखा था .
बुजदिलों के इश्क मैन्शैदा मुझे क्यों कर दिया
इस नामर्दों के देश मैं पैदा मुझे क्यों कर दिया .
.वास्तव मैं न्यायालयों या दफ्तरों के बाबुओं को अंदाज़ ही नहीं होता की आतंकवाद से लड़ना मृत्यु से खेलना होता है . सिर्फ किताबी मानवाधिकारों की बात पढ़ कर दिए फैसले देश के लिए घातक सिद्ध होते हैं . जिनके पैर न फटी बिवाई तिन जानि न पीड़ पराई !
श्री गिल का स्वभाव वीरों का था . उन्हें नौ से पाँच की नौकरियां पसंद नहीं थी . पंजाब के बाद वह उप राज्यपाल नहीं बल्कि कश्मीर का डीजीपी बनना चाहते थे . मुझे पूर्ण विश्वास है की यदि उन्हें कश्मीर का डीजीपी बना दिया जता तो आज कश्मीर इतनी बड़ी समस्या नहीं होता .
उनका औरतों को लेकर न्यायालयों मैं किया गया अपमान खेद जनक था . हमारे बाबुओं का अभिमान व् गुरूर आकाश से भी ऊँचा होता है .अन्यथा एक छोटी साधारण सी घटना को इतना तूल देना कहाँ तक उचित था .उचित होगा की उनकी मौत के बाद भी बाबु जनता से क्षमा मांगे . इसी तरह जनरल मानिक शाह की फील्ड मार्शल की पेंशन नहीं दी गयी थी क्योंकि कैबिनेट सेक्रेटरी से किसी जनरल की तनख्वाह ज्यादा नहीं हो सकती .देश का पिछड़ने के कारण ढूँढने नहीं पड़ते बल्कि अखबारों से ही बाबुओं के चरित्र गाथाओं से जग विदित हो जाते हैं .
आज देश ने अपना एक सपूत खो दिया है . इश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति दे .सरकार को उनकी यद् मैं किसी पोलिस ट्रेनिंग संस्थान का नाम उनकी स्मृति से जोड़ देना चाहिए .
‘Supercop’ K P S G न्यायालय ill passes away at 82 – rediff
Former Punjab director general of police K P S Gill passed away at the age of 82 due to cardiac arrhythmia at the Sri Ganga Ram Hospital in New Delhi on Friday.
As per doctors, Gill was suffering from end-stage kidney failure and significant ischemic heart disease. He was recovering from peritonitis.
Popularly known as the ‘Lion of Punjab’, Gill served twice as the DGP of Punjab and is credited for wiping off Khalistan terrorism from Punjab.
He received the Padma Shri award, India’s fourth-highest civilian honour, in 1989 for his work in the civil service and has also served as the security advisor to Chhattisgarh government in 2006.
Gill was known as ‘supercop’ for his extraordinary work in Punjab, when he was serving as the DGP of Punjab from 1988 to 1990 and then again from 1991 until his retirement from the Indian Police Service in 1995.
During former prime minister Indira Gandhi’s regime, Gill commanded Operation Black Thunder to flush out militants hiding in the Golden Temple in 1998.
Apart from his contribution in Punjab, he also worked for the Chhattisgarh government as a security adviser to help control Naxal activities in 2006.
Gill joined the Indian Police Service in 1958 and retired in 1995.
Apart from working for the Indian Police Service, Gill was also an author, editor, speaker, consultant on counter-terrorism, president of the Institute for Conflict Management and president of the Indian Hockey Federation.
After the allegations of corruption, the Indian Olympic Association suspended the IHF indefinitely on April 28, 2008.