झंडा बनाम भाषा :क्या चुनावों के लिए देश को विघटित करने की साज़िश हो रही है; अचानक पुराने व् देशद्रोही विघटनवादी तत्व क्यों सक्रीय हो गए हैं
वैसे तो यह आशा की जाती है की आम्भी ,मीरजाफर व् जयचंद की करतूतों से हज़ार साल गुलाम रहे देश का कोई पढ़ा लिखा नागरिक देश की एकता व् अखंडता से खिलवाड़ नहीं करेगा . परन्तु पिछले सप्ताह यह आशा भी धुल धूसरित हो गयी . देश के एक राज्य कर्नाटक ने अपने लिए एक नया झंडा बनाने के लिए कानूनी जांच के लिए एक समिति बना दी . वहां अन्तराष्ट्रीय ख्याति वाले बंगलौर शहर मैं पहली बार मेट्रो स्टशन पर हिंदी के नाम पटल पर कालिख पोत दी . उधर लन्दन मैं ९०००० सीट वाले स्टेडियम मैं ए आर रहमान का एक प्रोग्राम आयोजित हुआ . लन्दन /वेम्बले मैं श्री लंकन व् तमिल आबादी बहुत कम है . बहुत सारे सारे बॉलीवुड संगीत प्रेमी भारतीय पाकिस्तानियों व् बांग्लादेशियों ने महंगे टिकेट खरीद लिए . प्रोग्राम मैं अनेकों तमिल गानों से अधिकाँश जनता को मजा नाहीं आया और वह स्टेडियम छोड़ कर चल दी .अगले दिन सोशल मीडिया ने इसे उत्तर भारतियों का तमिल से द्वेष सिद्ध कर उसकी बुराई शुरू कर दी . यदि आयोजक तमिल गानों के बारे मैं खुल कर बता देते तो शायद यह नहीं होता . परन्तु हिंदी भाषियों के बिना वेम्बले स्टेडियम भरा भी नहीं जा सकता था इस्ल्ये आयोजकों ने दोनों भाषाओं के गाने रखे परन्तु हिंदी /उर्दू/ बंगाली भाषियों को मज़ा नहीं आया .यह भी नहीं पता की क्या तमिल लोगों को प्रोग्राम अच्छा लगा ?
यह एक आयोजकों की अल्प बुद्धि या अनुभव का अभाव था या कुछ लालच था . इसे भाषा के विरोध से जोड़ने का कोई औचित्य नहीं है.परन्तु अब इस पर भाषा विरोध और हिंदी थोपने की रोटियाँ सेकी जा रही हैं.
इसके पहले अखलाक , गौ रक्षकों के झूठे अत्याचारों की दास्तानें , आमिर खान के असहिष्णुता के कारण देश छोड़ने के विचार की कहानी बहुत दिन चली . वन्दे मातरम पर बहस भी इसी तरह की कहानी थी .
सबसे शर्मनाक तो हिन्दू आतंकवाद की रचना व् आतंकवादी इशरत जहां के लिए आई बी के अधिकारियों पर केस करना था .
इससे यह साफ़ है की देश द्रोह की पुरानी परिभाषा अब चुनावी बेशर्मी की लहर मैं डूब चुकी है .
अब तो कोई भी वोट दिलाने वाला हथकंडा जायज है. मुश्किल यह है की मोदी जी ने केजरीवाल की इमानदारी व् कांग्रेस की गरीबी हटाओ व् समाजवाद को बीजेपी के साथ जोड़ दिया .हिन्दू मुस्लिम विघटन से चुनाव जीतना अब संभव नहीं है .जातिवाद क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना लिया . इसलिए अब राष्ट्रीय पार्टियों को नए मुद्दों की तलाश करनी पड़ रही है . क्योंकि बड़े नए मुद्दे हैं ही नहीं इसके लिए नए मुद्दों के राष्ट्रीय सुरक्षा व् एकता के हित मैं न होना नयी राजनितिक मर्यादाओं मैं कोई महत्व नहीं रखता .
यह सच है संविधान मैं राज्यों का झंडा प्रतिबंधित नहीं है . पर संविधान मैं गोबर खाना भी तो प्रतिबंधित नहीं है .राष्ट्र हित तो तुलसीदासजी की भाषा मैं कहें तो ‘हित अनहित पशु पक्षी जाना’ है.
सब जानते हैं की देश को जोड़ने वाली चीज़ें जैसे राष्ट्रीय ध्वज , राष्ट्रगान , भारत माता , इत्यादि एकही हो सकती हैं अनेक नहीं .प्रश्न यह की इस सब की अब जरूरत क्यों पडी ? इसका एक मात्र कारण बीजेपी का इमानदारी व् गरीब प्रेम को अपना अजेंडा बनाना है .
सरकार को साहस कर देश द्रोह को चुपचाप सह कर प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए और इस नए सांप का सर शुरू मैं ही कुचल देना चाहिए .