क्या उपेक्षित वेतनभोगी मध्यम वर्ग की सुध ली जायेगी : बिना नयी नौकरी ,बढ़ते टैक्स , बढ़ती खाद्यानों की महगाई की मार से पीड़ित वर्ग

क्या उपेक्षित वेतनभोगी मध्यम वर्ग की सुध ली जायेगी : बिना नयी नौकरी ,बढ़ते टैक्स , बढ़ती खाद्यानों की महगाई की मार से पीड़ित वर्ग पूर्णतः उपेक्षित

राजीव उपाध्याय rp_RKU-150x150.jpg

सरकार के विकास के दावे व्यापरियों के लिए तो ठीक हैं क्योंकि उनका किसान से खरीद से बेचने का मार्जिन बढ़ रहा है और इसलिए उनका मुनाफ़ा बढ़ रहा है .इसी तरह सस्ते चीनी माल बेच कर वह लाभान्वित हो रहे हैं . उनको टैक्स भी नहीं देना पड़ता क्योंकि उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट ले देकर मुनाफा नहीं के बराबर दिखा देते हैं . नोट बंदी भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायी . उनकी तो उन्नती सरकारी नीतियाँ सुरक्षित कर रहीं हैं . गरीब तो वोट बैंक है आखिर मैं हर सरकार उसके लिए कुछ करेगी . उनकी मजदूरी बढ़ ही जायेगी क्योंकि उसे तो उन्हें खुद ही तय करना है . रिक्शा ,बाल कटाई या प्रेस करने के दाम तो हर साल बढ़ ही जाते हैं . किसान के लिए भी सरकार चिंतित तो है ही .

जो चुप चाप पिस रहा है और सरकार से पूर्णतः उपेक्षित है वह वेतन भोगी मध्यम वर्ग है .उसकी चहुँ ओर से पिसाई हो रही है .पहले तो जीएसटी उसकी कीमतों को बढ़ा रहा है . खाद्यान के दाम सट्टे के चलते बढ़ रहे है . सर्विस टैक्स पहले नहीं था अब हर चीज़ पर है . वह तो आय कर भी देता है और सर्विस टैक्स भी देता है . व्यापारी और किसान आय कर नहीं देते . वकील , डॉक्टर , चार्टर्ड अकाउंटेंट बहुत कम टैक्स देते हैं .उद्योगपति सारा लाभ पुनः निवेश कर टैक्स से बच जाते हैं .

सिर्फ वेतन भोगी माध्यम वर्ग सरकार की हर नयी स्कीम से और टैक्स देने लगता है . इसे स्वच्छता या शिक्षा या कोई और सेस कह लें सब वेतन भोगी को झेलनी पड़ती है . सिनेमा के टिकट के बढ़ते दाम या बिजली या रेल का किराया , स्कूल व् कोलेज की बढ़ती फीस भी उसे ही सबसे अधिक मारती है . उसका अपने मनोरंजन पर खर्च बहुत कम हो गया है .अब पिक्चर या रेस्टोरेंट जाना बहुत कम हो गया है .बूढों को भी घटी ब्याज दरों से आय मैं बहुत कमी हो गयी है .अस्पतालों व् दवाओं की कीमत तो कम नहीं हुयी है .पिछले कुछ वर्षों मैं वेतन भोगी माध्यम वर्ग का जीवन स्तर काफी गिरा है .

पिछले चार सालों से नयी नौकरियों का अकाल पड़ गया है .अब तो पढ़ाई के लिए लिया गया कर्जा भी चुकाना मुश्किल हो रहा है . सॉफ्टवेर की नौकरियां भी कम हो रही हैं . अब तो सब इंजिनियर दस से बीस हज़ार की नौकरियों मैं लग रहे हैं . सरकार पर व्यापारी वर्ग का कब्ज़ा है . वह तो अपने छोटे उद्योग लगाने की बात सोचता है . गरीब का बच्चा तो पढ़ कर नौकरी करता था सो अब मिलती नहीं . इसलिए अब एमबीए और इंजिनियर की पढाई कम हो गयी है . कोचिंग की बड़ी फीस व् लोन चुकाना ही मुश्किल हो गया है . इस वर्ग को अपने उद्योग न तो लगाने हैं न उसके पास पूंजी या अन्य क्षमता है . इनमें शुरू मैं घाटा होता है . गरीब का लड़का तो बैंक का क़र्ज़ चुका ही नहीं पायेगा . इसलिए सरकार के झूठे विकास के दावों से उसका कोई सरोकार नहीं है . नयी गाड़ियां व् घर अधिकांशतः  व्यापारी व् कम टैक्स देने वाले लोग खरीद रहे हैं . स्कूल मास्टर , डाकिया , नर्स , कम्पाउण्डर तो अब किसी के कृपापात्र ही नहीं रहे न कोई उनकी सुध ले रहा है .पहले बच्चे को पढ़ा कर बड़ा आदमी बनाने की उम्मीद तो थी अब वह भी नहीं रही .

पहले सरकारें सब वर्गों का ख्याल रखती थी . मध्यम वर्ग क्योंकि मुखर होता था इसलिए कम वोट होने पर भी उसे उपेक्षित नहीं किया जाता था . अब सिर्फ व्यापारी वर्ग को पुचकारा जा रहा है . उसे सस्ते लोन हों या ज्यादा मुनाफ़ा हो हर तरफ फायदा ही फायदा है .

क्या सरकार वेतन भोगी मध्यम वर्ग का भी कुछ ख्याल करेगी ?

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