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प्रारंभ में एक ही वर्ण था हंस वर्ण। एक ही वेद था प्रणव वेद। प्रणव अर्थात ॐ। मानव का जन्म कई बार हुआ और मानव जाति कई बार धरती से लुप्त हो गई। फिर वापस कैसे उत्पन्न हुई? यही है धरती और धर्म का रहस्य। वेद-पुराणों में धरती की कहानी 5 कल्पों में कही गई है- महत कल्प, हिरण्यगर्भ कल्प, ब्रह्मा कल्प, पद्मकल्प और वराह कल्प। यहां जो हिन्दू धर्म की कहानी बताई जा रही है वह वराह कल्प की है। यह कल्प लगभग 14,000 विक्रम संवत पूर्व शुरू हुआ था, जो अभी जारी है। हिन्दू धर्म का इतिहास कई कल्पों की गाथा है इसलिए वेद और पुराणों में मानव और जीव उत्पत्ति की अलग-अलग गाथाएं मिलेंगी। प्रत्येक कल्प में मानव की उत्पत्ति के कारण और वातावरण अलग-अलग रहे हैं इसीलिए भ्रम की उत्पत्ति होती है। मानव एक ओर जहां धरती के क्रम विकास की उत्पत्ति है तो दूसरी ओर उसे परमेश्वर की इच्छा से देवताओं ने रचा है। इस तरह दोनों ही तरह के मानव इस धरती पर थे जिनमें आपस में संबंध बने। ब्रह्मा ने कुछ ऐसे भी मानव बनाए थे, जो आज के मानव से कहीं ज्यादा विशालकाय (लगभग 30-40 फुट) होते थे, लेकिन भगवान शिव ने उस जाति का संहार कर दिया। क्यों किया? क्योंकि वे उत्पाती और अधर्मी हो गए थे। विस्तार पूर्वक जानिए : ब्रह्म काल : किस तरह जन्मा मानव? क्रम विकास का संक्षिप्त विवरण: ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई यह विज्ञान के लिए आज भी बड़ा सवाल बना हुआ है, लेकिन वेद और पुराणों में इसे कई तरह से कई गाथाओं से समझाया गया है। पुराण मानते हैं कि धरती पर ब्रह्म का साकार प्रकाशस्वरूप में जन्म, सृष्टि उत्पत्ति, जीव उद्भव आज से 4,32,15,886 वर्ष पूर्व हुआ। * प्रारंभिक काल को पुराणों में शैशवकाल कहा गया है तब अम्दिज, अंडज, जरायुज सरीसृप (रेंगने वाले) जीव, केवल मुख वाले और वायुयुक्त जीव होते थे। * इसके बाद कीटभक्षी, हस्तपाद, नेत्र-श्रवणेन्द्रियोंयुक्त जीवों की उत्पत्ति हुई। कहना चाहिए कि समुद्र से कुछ जीव निकलकर पतंगों के समान धरती पर फैले, फिर वे झाड़ पर चढ़े और फिर वे उड़ना सीख गए। इसी तरह छोटे-छोटे जीवों ने सूखी धरती पर रहना सीखा। इस काल को पुराणों में कुमार काल कहा गया। * जो जीव धरती पर फैले थे, लाखों साल में उन्होंने नई प्रजातियों को जन्म दिया और विकासक्रम में वे वन्य संपदाभक्षी, भ्रमणशील, आखेटक, गुहावासी, जिज्ञासु, अल्पबुद्धि के जीव बने। उन्हीं में जंगली मानवों की कई प्रजातियां थीं, जो गुफा या वृक्षों पर रहती थीं और वृक्षों को ही अपने जीवन का आधार मानती थीं। सभी वन्य संपदाभक्षी थे। जिज्ञासु होने के साथ ही मानव ने रहस्यों को जानने की कोशिश की। यहीं से धर्म की शुरुआत हुई। इस काल को पुराणों में किशोर काल कहा गया। * लाखों सालों में जंगली मानव ने सभ्य होने की ओर कदम बढ़ाया और उन्होंने वृक्षों पर निर्भरता को छोड़कर कृषि कार्य, गोपालन किया तो दूसरी ओर कुछ मानवों ने मांसभक्षण सीखा। बस यहीं से लोगों के भेद होना शुरू हो गया और नैतिकता व अनैतिकता के बारे में सोचा जाने लगा। यही धार्मिक आधार पर समाज की शुरुआत थी। इस काल को पुराणों में युवावस्था का काल कहा गया। *युवावस्था के काल के बाद मानव धीरे-धीरे अतिविलासी, क्रूर, चारित्रहीन, लौलुप और यंत्राधीन रहते हुए साथ ही सभ्य भी बनने लगा था। अब यहीं से सभ्यता और असभ्यता की लड़ाई शुरू हुई। * वराह कल्प में अवतारवाद की कहानी यही बताती है कि किस तरह मानव विक्रासक्रम में आगे बढ़ा। यह मानव चेतना के विकास की कहानी है। जारी… –अनिरुद्ध (WD)
जैन धर्म में 12 कल्प बताए गए हैं:- सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतव, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इस प्रकार ये बारह कल्प हैं। हिन्दुओं में भी कई कल्प बताएं हैं लेकिन प्रमुख पांच कल्पों में गाथा को समेटने का प्रयास पुराणकारों ने किया है। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, शिव आदि पदों पर अलग-अलग कल्पों में अलग देवता विराजमान होते हैं। मत्स्य पुराण में 30 कल्पों की चर्चा हैं: श्वेत, नीललोहित, वामदेव, रथनतारा, रौरव, देवा, वृत, कंद्रप, साध्य, ईशान, तमाह, सारस्वत, उडान, गरूढ़, कुर्म, नरसिंह, समान, आग्नेय, सोम, मानव, तत्पुमन, वैकुंठ, लक्ष्मी, अघोर, वराह, वैराज, गौरी, महेश्वर, पितृ। महत कल्प : इस काल के इतिहास का विवरण मिलना मुश्किल है। बहुत शोध के बाद शायद कहीं मिले, क्योंकि इस काल के बाद प्रलय हुई थी तो सभी कुछ नष्ट हो गया। लेकिन पुराणकार मानते हैं कि इस कल्प में विचित्र-विचित्र और महत् (अंधकार से उत्पन्न) वाले प्राणी और मनुष्य होते थे। संभवत: उनकी आंखें नहीं होती थीं। हिरण्य गर्भ कल्प : इस काल में धरती का रंग पीला था इसीलिए इसे हिरण्य कहते हैं। हिरण्य के 2 अर्थ होते हैं- एक जल और दूसरा स्वर्ण। हालांकि धतूरे को भी हिरण्य कहा जाता है। माना जाता है कि तब स्वर्ण के भंडार बिखरे पड़े थे। इस काल में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ, हिरण्यवर्णा लक्ष्मी, देवता, हिरप्यानी रैडी (अरंडी), वृक्ष वनस्पति एवं हिरण ही सर्वोपयोगी पशु थे। सभी एकरंगी पशु और पक्षी थे। ब्रह्मकल्प : इस कल्प में मनुष्य जाति सिर्फ ब्रह्म (ईश्वर) की ही उपासक थी। क्रम विकास के तहत प्राणियों में विचित्रताओं और सुंदरताओं का जन्म हो चुका था। जम्बूद्वीप में इस काल में ब्रह्मर्षि देश, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मलोक, ब्रह्मपुर, रामपुर, रामगंगा केंद्र आदि नाम से स्थल हुआ करते थे। यहां की प्रजाएं परब्रह्म और ब्रह्मवाद की ही उपासना करती थी। इस काल का ऐतिहासिक विवरण हमें ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्मकल्प : पुराणों के अनुसार इस कल्प में 16 समुद्र थे। पुराणकारों अनुसार यह कल्प नागवंशियों का था। धरती पर जल की अधिकता थी और नाग प्रजातियों की संख्या भी अधिक थी। कोल, कमठ, बानर (बंजारे) व किरात जातियां थीं और कमल पत्र पुष्पों का बहुविध प्रयोग होता था। सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की नारियां पद्मिनी प्रजाएं थीं। तब के श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति आज के श्रीलंका जैसी नहीं थी। इस कल्प का विवरण हमें पद्म पुराण में विस्तार से मिल सकता है। वराहकल्प : वर्तमान में वराह कल्प चल रहा है। इस कल्प में विष्णु ने वराह रूप में 3 अवतार लिए- पहला नील वराह, दूसरा आदि वराह और तीसरा श्वेत वराह। इसी कल्प में विष्णु के 24 अवतार हुए और इसी कल्प में वैवस्वत मनु का वंश चल रहा है। इसी कल्प में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने नई सृष्टि की थी। वर्तमान में हम इसी कल्प के इतिहास की बात कर रहे हैं। वराह पुराण में इसका विवरण मिलता है। अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से लगभग 5,500 वर्ष पूर्व हुआ था। *हिन्दू धर्म की कहानी में हमने यह समझने का प्रयास किया है कि आखिर हम कितने पुराने इतिहास की चर्चा कर रहे हैं और आखिर इसका प्रारंभ कहां से है। हिन्दू धर्म की कहानी शुरू करने के पहले जरूरी है कि यह स्पष्ट हो जाए कि हम कहां से शुरू करें? यह कि हम धर्म की शुरुआत कहां से मानें। * आज से लगभग 15 हजार विक्रम संवत पूर्व ब्रह्मा की सृष्टि हुई थी। कैसे? पुराण कुछ कहते हैं और वेद कुछ। लेकिन क्या सिर्फ 15-16 हजार वर्ष पूर्व ही ब्रह्मा ने सृष्टि की थी? नहीं, तब ब्रह्मा की सृष्टि क्या है? दरअसल, ब्रह्मा की सृष्टि उनके ही कुल का विस्तार था। ये थे ब्रह्मा के प्रमुख 10 पुत्र जिन्होंने धरती पर कुल का विस्तार किया- 1. अत्रि, 2. अंगिरस, 3. भृगु, 4. कंदर्भ, 5. वशिष्ठ, 6. दक्ष, 7. स्वायम्भु मनु, 8. कृतु, 9. पुलह, 10. पुलस्त्य। अखंड भारत के लोग, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, ईसाई या सिख, जैन या बौद्ध सभी उक्त 10 ऋषियों की संतानें हैं। इतना स्पष्ट होने के बाद अब हम शुरू करेंगे हिन्दू धर्म की रोचक कहानी। जारी…